सास-ससुर ने बच्चों को संभाला तो दीपाली ने सपनों को दिया पंख, बनी पहली लोको पायलट

रिपोर्ट- शिखा श्रेया

रांची. एक कहावत है ‘जो बाहर की सुनता है वह बिखर जाता है, जो अंदर की सुनता है वह संवर जाता है’. दुनिया की बातें ना सुनकर, अपने दिल की बात मानकर झारखंड की राजधानी रांची की दीपाली अमृत ने अपने सपनों को पंख दिया. आज वह रांची रेल मंडल की पहली महिला लोको पायलट हैं. दो बच्चों की मां बनने के बाद अपने सपने को पूरा करने वाली, घर की बहू से ट्रेन चलाने का टास्क पूरा करने वाली दीपाली ने लोकल18 से खास बातचीत में अपने संघर्ष की कहानी साझा की.

दीपाली ने बताया कि ट्रेन चलाते हुए उन्हें 17 साल हो चुके हैं. 2014 से वह लोको पायलट हैं. लोकल18 से बातचीत में दीपाली ने कहा कि कभी सोचा नहीं था कि लोको पायलट बन भी पाऊंगी. बचपन से जब भी ट्रेन में चढ़ती थी तब मन में रोमांच पैदा होता था. ट्रेन के रफ्तार पकड़ने के साथ ही सोचती थी कि काश मैं भी कभी इतनी स्पीड में ट्रेन चला पाती. लेकिन फिर शादी हो गई और सपने धुंधले होते चले गए. लोगों ने कहा भी कि अब दो बच्चे हो गए, घर परिवार में ध्यान दो. लेकिन दिल कहता था कि मैं कुछ कर सकती हूं.

पति व सास ससुर का रहा विशेष सहयोग
दीपाली बताती हैं कि उनके दो बच्चे हैं और दोनों कॉलेज में पढ़ रहे हैं. दो बच्चे हो जाने के बाद पति ने उनसे कहा था कि तुम्हें लोको पायलट के सपने को पूरा करने के बारे में सोचना चाहिए. पहले तो दीपाली ने इनकार किया, कहा- इतनी जिम्मेदारी के साथ इसे पूरा करना मुश्किल है. लेकिन पति के साथ-साथ फिर सास-ससुर और ससुराल के अन्य लोगों ने भी हौसला बढ़ाया. दीपाली ने लोकल18 को बताया कि मेरी सास व देवरानी दोनों बच्चों को संभालती थीं, पति जरूरत के सारे सामान लाकर देते थे.

दो-तीन घंटे की ही नींद ले पाती थी
लोकल18 के साथ अपने संघर्षों के दिन की कहानी साझा करते हुए दीपाली बताती हैं कि कई बार तो ऐसा होता था कि केवल दो-तीन घंटे की नींद लेकर रहना पड़ता था. क्योंकि पढ़ाई के साथ-साथ घर की जिम्मेदारी भी थी. आखिरकार वह दिन भी आया जब लोको पायलट के तौर पर सेलेक्शन हुआ, लेकिन मुश्किलें कम नहीं हुई थीं. ट्रेनिंग के लिए जाना होता था. सुबह में ट्रेनिंग के पहले बच्चों को स्कूल छोड़कर उनके लिए ब्रेकफास्ट बनाना, फिर ट्रेनिंग से घर लौटकर परिवार वालों को देखना. चुनौतियों से भरा काम था. लेकिन मुझे पता था कि सफलता त्याग मांगती है.

उन्होंने आगे बताया कि आज मैं लोको पायलट के तौर पर मालगाड़ी से लेकर एक्सप्रेस ट्रेन तक चला चुकी हूं. पहली ट्रेन मैंने रांची से नामकुम तक चलाई थी, वह मेरे लिए सपने सच होने जैसा था. आज मैं दूसरी महिलाओं को भी यही कहती हूं कि कई बार महिलाएं सोचती हैं कि बच्चे हो गए, तो करियर खत्म हो गया. ऐसा नहीं है. सपने पूरे करने की कोई उम्र नहीं होती. बस मन में लगन और कड़ी मेहनत चाहिए.

Tags: Local18, Ranchi news, Women Loco Pilot, Womens Success Story

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *