साल 1985, दिन रविवार, समय शाम साढ़े चार बजे सूनी हो जाती थीं गलियां, जब आता था दूरदर्शन का यह धारावाहिक

साल 1985, दिन रविवार, समय शाम साढ़े चार बजे सूनी हो जाती थीं गलियां, जब आता था दूरदर्शन का यह धारावाहिक

39 साल पुराने दूरदर्शन के सीरियल के आज भी है कई दीवाने

नई दिल्ली:

बात 1980 के दशक की है. उन दिनों मनोरंजन सिर्फ या तो रेडियो से आता था या फिर दूरदर्शन से. बात बच्चों की करें तो वह कॉमिक्स भी एक अनोखी दुनिया में कदम रखते थे. एक ऐसी ही कॉमिक्स थी चंदा मामा. इस कॉमिक्स कई रहस्यमय कहानियां आती थीं. इसी में एक कहानी आती थी विक्रम और बेताल की. कहानी हर बार अधूरी रह जाती थी. लेकिन विक्रम और बेताल की जुगलबंदी ऐसी थी कि हर बार बहुत ही बेसब्री के साथ इसका इंतजार रहता. अब सोचिए कॉमिक्स ये दो कैरेक्टर उस दौर के हम बच्चों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुके थे. फिर अगर यह पात्र टीवी पर नजर आते तो क्या गजब होता? बस यही गजब उस समय हुआ जब 1985 में विक्रम और बेताल सीरियल टीवी पर आया. कहानी से जुड़े कई राज खुल गए. बेताल के सवाल और विक्रम के जवाब और फिर बेताल का फिर उसी पेड़ पर टंग जाना, सब बहुत ही कमाल था. इस सीरियल की दीवानगी ऐसी थी कि इसके आते ही गलियों में सन्नाटा हो जाता था, और बच्चे और बड़े बेताल की डरावनी हंसी के बावजूद टीवी के आगे से उठने का नाम नहीं लेते थे.

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विक्रम और बेताल टेलीविजन सीरीज डीडी नेशनल यानी दूरदर्शन पर 1985 में शुरू हुई थी. इसको 1988 में रामायण के बाद दोबारा टेलीकास्ट किया गया था. विक्रम और बेताल सीरियल की कहानी को बेताल पचीसा से उठाया गया था, जिसमें राजा विक्रमादित्य और बेताल की कहानी को बहुत ही दिलचस्प अंदाज में बताया गया था. टीवी सीरियल में विक्रम का किरदार अरुण गोविल ने निभाया जबकि बेताल के किरदार में सज्जन दिखे. यह सीरियल 13 अक्तूबर, 1985 से 6 अप्रैल, 1986 तक रविवार को शाम साढ़े चार बजे आया करता था. यह हम बच्चों को वो समय हुआ करता था, जिसमें डर के साथ बेताल के सवाल का भी इतंजार रहता था. यह डर भी रहता था कि अगर विक्रम जवाब नहीं दे पाया तो उसके सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे और जवाब दे दिया तो बेताल फिर से उसी पेड़ पर चला जाएगा. 

विक्रम और बेताल के एपिसोड

विक्रम और बेताल की प्रेरणा बेताल पचीसी को बताया जाता है, जिसे 11वीं शताब्दी के कश्मीरी कवि सोमदेव भट्ट ने लिखा था. इसमें विक्रम एक ऋषि के कहने पर पेड़ पर टंगे एक बेताल को लेने आता है. बेताल को विक्रम अपने वश में करता है और उसे लेकर चल पड़ता है. रास्ता लंबा होने की वजह से बेताल विक्रम को कहानी सुनाता है और कहता है कि वह बोलेगा नहीं, अगर वह बोला तो वह वापिस अपने पेड़ पर चला जाएगा. लेकिन वह सवाल भी पूछता है और जवाब नहीं देने पर उसका भयानक नतीजा भी बताता है. इस तरह यह सीरियल और कहानी कमाल की बन पड़ी थी. आज भी आ जाए तो छोड़े नहीं छूटती है. 

दूरदर्शन सीरियल विक्रम और बेताल के प्रोड्यूसर रामानंद सागर थे. वही रामानंद सागर जिन्होंने बाद में रामायण बनाई और इसमें विक्रम यानी अरुण गोविल को राम का किरदार दिया. इसके कुल 26 एपिसोड हैं. इसके कई एपिसोड यूट्यूब पर देखे जा सकते हैं. इस सीरियल में अरुण गोविल और सज्जन के अलावा अरविंद त्रिवेदी, दीपिका चिखलिया, विजय अरोड़ा, रमेश भाटकर, सुनील लहरी, लिलीपुट, रमा विज और सतीश कौल नजर आए थे.

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