साल में सिर्फ 2 बार खुलता है ये काली मंदिर, नवरात्रि की सप्तमी को लगती है भीड़

ज्योति खंडेलवाल/पलवल. राजधानी दिल्ली से 60 किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे पर पलवल के जवाहर नगर कैंप में स्थित काली माता के मंदिर के पट आमजन के लिए वर्ष में केवल दो दिन नवरात्रि में सप्तमी के दिन ही खुलते हैं. मंदिर में वर्ष के 365 दिन सरसों के तेल की अखंड ज्योति जलती रहती है. काली मां को काले चने का भोग लगता है और सरसों के तेल के त्रिमुखी दीपक से ही तारा दिखाई देने के बाद माता की आरती होती हैं.

हिन्दुस्तान-पाकिस्तान बटवारे के दौरान वर्ष 1947 में मंदिर की स्थापना हुई थी, मंदिर के मंहत बाबा हंसगीरी जी महाराज बटवारे के दौरान पाकिस्तान के जिला राजनपुर के गांव रुझान से मिट्टी की बनी मां काली, भरौ बाबा और माता वैष्णो देवी की प्रतिमा लेकर आए थे. उन्हें पलवल के जवाहर नगर कैंप में रहने का स्थान मिला तो उन्होंने यहां काली माता के मंदिर की स्थापना की और मंदिर में पाकिस्तान से लाई गई मिट्टी की मूर्तियों को स्थापित कर दिया, जो आज भी स्थापित हैं.

क्या कहते है मंदिर के मंहत
मंदिर के मंहत तीर्थदास जी बताते हैं कि मंदिर नवरात्रि के सातवें दिन तारा दिखने के बाद भक्तों के लिए खोला जाता हैं, बाकि दिनों केवल वे ही मंदिर में अंदर जाकर सफाई करते है और आरती करते हैं. मान्यता है कि मंदिर में देवी के सामने जो मनोकामना रखी जाती है वह पूरी होती हैं.

काली माता मंदिर की मान्यताएं एवं विशेषताएं
मंदिर में दर्शन के बाद मनोकामना पूर्ण होती हैं, सातवें माह में गर्भ में बच्चा खराब होता है तो देवी के दर्शन के बाद ऐसा नहीं होता, यह भक्तों की मान्यता है और ऐसा कई बार हुआ भी हैं. मंदिर नेशनल हाईवे पर जवाहर नगर कैंप में स्थित हैं, दिल्ली से आगरा की तरफ जाते समय 62 किलोमीटर की दूरी पर, रेस्ट हाऊस से आगे हैं.

* मंदिर में प्रसाद के रूप में अनाज, नारियल, सरसों का तेल व काले छोले का प्रसाद चढ़ता हैं.

* भक्तों की मंदिर से आस्था है कि मंदिर में मांगी जाने वाली सभी मनोकामनाऐं पूर्ण होती हैं

* मंदिर में एक ही पुजारी आरती करता हैं और सुबह तारा डूबने पर और शाम को तारा दिखाई देने पर ही आरती होती हैं, आरती के समय तीन सरसों के तेल के दीपक जलाए जाते हैं और एक अखंड ज्योति हमेशा जलती रहती हैं.
* मंदिर में काली माता, भरौ बाबा व वैष्णवी माता को काले चने का भोग लगता हैं, भोग को भक्त स्वंय अपने हाथों से मंदिर में ही तैयार करते हैं.
* हिन्दुस्तान पाकिस्तान बटवारे के दौरान जो भी पाकिस्तान के रूझान बिरादरी के लोग हिन्दुस्तान आए आज भी वे वर्ष में दो बार अवश्य पलवल माता के मंदिर में आते है और तेल चढ़ाते हैं, चाहे वे देश के किसी भी कौने में क्यों नहीं रहते हो और चाहे भक्त कीतना भी अमीर हो या गरीब एक ही लाइन में लगकर दर्शन करते हैं.
* मंदिर की यह भी मान्यता है कि रुझान बिरादरी का व्यक्ति देश के किसी भी कौन में रहता और उनके परिवार में किसी की मौत हो जाए तो वह पलवल के इस काली माता मंदिर में सवा किलो सरसों का तेल अवश्य चढ़ाता हैं, इसी तेल से मंदिर में अखंड ज्योत जलती रहती हैं.

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