रवि/विदिशा: राधा अष्टमी पर जैसे वृंदावन में लाडली जी का प्राकट्योत्सव मनाया जा रहा है, वैसा ही नजारा विदिशा के इस मंदिर में भी देखने को मिल रहा है. राधा रानी का यह मंदिर करीब 400 वर्ष पुराना है. इस मंदिर के पट साल में एक बार सिर्फ राधा अष्टमी के दिन खुलते हैं. अन्य दिनों में यहां के पुजारी गुप्त रूप लाडली जी की पूजा करते हैं.
पुजारी मदन मोहन जी महाराज का कहना है कि जैसे वृंदावन में राधा रानी की पूजा की जाती है, वैसे ही पूजा विदिशा के इस राधा मंदिर में भी होती है. मौसम और समय के अनुसार, उनको संपादित किया जाता है, जैसे वृंदावन में वैष्णव संप्रदाय पूजा करते हैं इस परंपरा से भी यहां भी पूजा की जाती है.
साल में एक ही बार खुलते हैं पट
पंडित मदन मोहन जी का कहना है कि राधा रानी का मंदिर साल में एक ही बार राधा अष्टमी के दिन खुलता है. यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है. बताया जाता है कि जिस समय राधा रानी यहां पर आई थीं, उस समय औरंगजेब और आक्रांताओं का आक्रमण होता था. यही कारण है कि मंदिर वर्ष में एक ही बार खुलता था, वही परंपरा आज भी चली आ रही है.
वृंदावन से आई है प्रतिमा
जब वैष्णव संप्रदाय वृंदावन से चला था, तब राधा रानी की इन प्रतिमाओं को वह साथ लेकर आए थे. वही प्रतिमा विदिशा के वृंदावन गली स्थित इस मंदिर में विराजमान है. ये प्रतिमाएं 1669 से पहले वृंदावन में यमुना जी के किनारे राधा रंगी राय नाम से स्थापित मंदिर में थी, यानी जो प्रतिमा विदिशा में हैं, वह पहले वृंदावन में यमुना जी के किनारे थी. वहीं पर आक्रमण हो रहे थे, इसी कारण मंदिर के पुजारी संप्रदाय के पूर्वज प्रतिमाओं को बक्से में छिपाकर निकल पड़े थे और यहां पर आकर स्थापित कर दिया.
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FIRST PUBLISHED : September 23, 2023, 17:45 IST