हिंदी वैसे तो इतनी व्यावहारिक भाषा है कि इसमें गड़बड़ियों का अंदेशा बहुत कम ही रहता है. लेकिन कुछ शब्द युग्म लोगों को परेशान करते हैं. परेशानी की बड़ी वजह ये भी है कि दो शब्दों को मिला कर गढ़े गए ऐसे शब्दों के गलत और सही, दोनों ही रूप चलन में हैं. इस कारण लिखते समय भ्रम की स्थिति आ जाती है कि कौन-सा रूप सही है. ये भी ध्यान रखने वाली बात है कि गड़बड़ियों का अंदेशा ऐसे गढ़े हुए शब्द-युग्म में ही आती है. अगर ये युग्म पारंपरिक है तो संस्कृत का व्याकरण का प्रकाश भ्रम से निकालने में अक्सर मददगार होता है.
हिंदी का व्याकरण किसी न किसी रूप में संस्कृत के पीछे-पीछे ही चलता है. आजादी के बाद जिस तरह से उर्दू और फारसी का असर होने के कारण भले ही कुछ समय तक व्याकरण को लेकर कुछ हिस्सों में लेखकों के अलग-अलग खेमे रहे. राजनीतिक नेतृत्व भी उस दौर में सद्भावना के लिए हिंदी और हिंदुस्तानी, दो भाषाओं के प्रयोग का हामी था. हिंदुस्तान उर्दूजदा हिंदी को कहा जा रहा था. लेकिन हिंदी लेखकों के भारी-भरकम आभा मंडल ने हिंदी को संस्कृत व्याकरण का अनुगामी ही रखा. नतीजा ये हुआ कि व्याकरण स्थिर हो गया.
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दिक्कत नए गढ़े शब्दों को लेकर ही हुई. ये वे शब्द थे जो देसज बोलियों से अलग बना दिए गए. मिसाल के तौर पर ‘ग्वाला’ शब्द पहले से था. उसकी जगह दूधवाला नया शब्द बना. अब इस शब्द को कैसे लिखा जाए ये सवाल खड़ा हुआ. सवाल की वजह ये थी कि हम किसी अपने बीच से कहीं और जाने वाले का जिक्र करते समय ‘जाने’ और ‘वाला’ दो अलग-अलग शब्दों में लिखते रहे. इसी तर्ज पर कुछ लोगों ने दूध वाला (दो अलग शब्दों के तौर पर) लिखना शुरू कर दिया. अल्प ही सही लेकिन इस तरह के चलन से भ्रम की स्थिति आना स्वाभाविक था.
इस भ्रम की स्थिति से निकालने का काम किया शिक्षा मंत्रालय ने. हालांकि फिर कहा जाए कि संस्कृत व्याकरण से परिचित लोगों के लिए ये नया नहीं था. लेकिन शिक्षा मंत्रालय के नियमन से स्थिति और साफ हो गई. वैसे तो उस समय के शिक्षा मंत्रालय ने 1966 में देवनागरी का मानीकरण प्रकाशित किया था. लेकिन इसके बाद में अलग-अलग संस्करण केंद्रीय हिंदी निदेशालय से प्रकाशित होते रहे. कंप्युटरों के बढ़ते प्रभाव के साथ भाषा को कंप्युटर के अनुरूप बनाने के लिए निदेशालय ने देवनागरी लिपि और हिंदी वर्तनी का मानकीकरण नाम की एक छोटी-सी पुस्तिका का संशोधित संस्करण प्रकाशित किया. इसमें कई नियमों को साफ किया गया है.
इसी के नियम 3.13 में वाला प्रत्यय के बारे में बताया गया है. यहां लिखा गया है कि क्रिया रूप में करने वाला, आने वाला, बोलने वाला आदि को अलग लिखा जाए, जैसे मैं घर जाने वाला हूं. जाने वाले लोग. लेकिन संज्ञा और विशेषण के योजक प्रत्यय के रूप में ‘घरवाला’, ‘टोपीवाला’ (टोपी बेचने वाला), दिलवाला, दूधवाला आदि एक शब्द के समान ही लिखे जाएंगे. ‘वाला’ जब प्रत्यय के रूप में आएगा तब मिलाकर लिखा जाएगा, अन्यथा अलग से. यह वाला, यह वाली, पहले वाला, अच्छा वाला, लाल वाला, कल वाली बात आदि में ‘वाला’ निर्देशक शब्द है. अतः इसे अलग से ही लिखा जाए. इसी तरह लंबे बालों वाली लड़की, दाढ़ी वाला आदमी आदि शब्दों में भी ‘वाला’ अलग लिखा जाएगा. इससे हम रचना के स्तर पर अंतर कर सकते हैं। जैसे-
गाँववाला – (ग्रामीण), गाँव वाला मकान ( गाँव का मकान.)
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Tags: Hindi, Literature
FIRST PUBLISHED : November 7, 2023, 15:24 IST