सस्टेनेबिलिटी के प्रति जागरूक करने केरल से साइकिल पर निकला युवक

मेघा उपाध्याय/इंदौर. विदेश में हो रही तरक्की की बात तो हम सब करते हैं और चाहते भी है कि हमारे देश में भी इसी तरह की लाइफस्टाइल हो, लेकिन क्या आपको पता है कि वहां के लोग बहुत ज्यादा एक्टिव होते हैं और अपनी सेहत और पर्यावरण के प्रति सजग होते हैं. केरल के रहने वाले फैज़ल को इसका अहसास विदेश में रहने के बाद हुआ.

फैजल जब भारत आए, तो उन्होंने देशवासियों को जीवन शैली में बदलाव और प्रकृति के प्रति जागरूक करने के लिए एक सोलो कैंपेन शुरू किया, जिसे आज वे ‘सस्टेनेबिलिटी ऑन व्हील्स’ का नाम देते हैं. फैजल अपनी बाइसिकल से भारत में अलग-अलग जगहों पर घूम रहे हैं ताकि ग्राउंड लेवल पर लोगों को जागरूक कर सकें. फिलहाल, वे केरल से इंदौर आ पहुंचे हैं, और यहीं पर उनका कुछ दिन का ठिकाना है. फैजल ने लगातार नियमित रूप से 14 घंटे साइकिल चलाई है, जिसके चलते इतना लंबा रास्ता तय कर चुके हैं. उनका इस कैंपेन को पूरे 400 दिन का है, जिसमें उन्हें 28 स्टेट्स और 9 यूनियन टेरिटरीज पर जाकर लोगों से बात करनी है.

सोलो कैंपेन कर रहे
फैजल के अनुसार, अगर कोई और व्यक्ति भी उनके साथ में होता, तो इस पूरे टूर में वे अपने लक्ष्य से ध्यान भटका सकते थे. इसीलिए उन्होंने सोलो राइड को ही चुना. वे अपनी बाइसिकल पर ही एक टेंट और कुछ खाने का सामान बांधे हुए हैं ताकि जहां भी वे रुके, उसमें किसी भी तरह की परेशानी ना हो और कहीं भी खाना बना सकें.

टूर में जीरों पॉलिथीन यूज कर रहे है
आपको बता दें कि फैजल अपने इस पूरे टूर में जीरो पॉलिथीन इस्तेमाल कर रहे हैं, यानी उनके पास ऐसा कोई भी समान नहीं है जिसमें किसी भी तरह की प्लास्टिक की पॉलिथीन का इस्तेमाल किया गया हो. वे रास्ते से केवल फल और ऐसा सामान ही खरीदते हैं जिसमें पॉलिथीन ना हो. उनका निजी सामान भी कपड़े के बैग में ही बंधा हुआ है. यही उनका एक मोटिव है की सबसे पहले वह अपनी जीवन शैली में बदलाव लेकर आएंगे ताकि उसी को देखकर लोग अपने आप सस्टेनेबिलिटी की ओर आगे बढ़े.

जगह-जगह रुक करते हैं लोगों से बात 
फैजल जब भी कहीं लोगों की भीड़ देखते हैं तो वहां अपनी साइकिल रोक देते हैं और उनसे बात करके अपनी इस कैंपेन के बारे में बताते हैं ताकि उन्हें इसके बारे में जानकारी हो और वह भी ऐसी ही लाइफस्टाइल अपनाएं. शुरुआत में तो उन्हें अपनी साउथ इंडियन एक्सेंट के कारण समस्या आई लेकिन अब वह ठीक-ठाक हिंदी बोल लेते हैं. जिस कारण उन्हें अपनी बात लोगों तक पहुंचाने में परेशानी नहीं होती.

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