अनुज गौतम/सागर. अगहन पूर्णिमा के दिन गोधूलि बेला में भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश के एकात्मक रूप दत्तात्रेय का जन्म उत्सव मनाया जाता है. सागर के लक्ष्मीपुरा स्थित दत्त मंदिर में महाराष्ट्रीय समाज द्वारा दत्त जयंती का भव्य आयोजन किया जाएगा. वहीं जयंती से 7 दिन पहले से ही यहां पर भगवान का दूध से अभिषेक किया जा रहा है.
महाराष्ट्र से आए कीर्तनकारों के द्वारा दत्तात्रेय चरित्र का वाचन संगीतमय तरीके से किया जा रहा है. इस अवसर पर मंदिर को लाइट, वंदनवार और स्वागत द्वार के साथ बड़े ही भव्य तरीके से सजाया गया है. जयंती के दिन मंदिर में भगवान दत्तात्रेय के प्रिय फूल गेंदे की मालाओं से आकर्षक सज्जा की गई है.
ऐसे करें भगवान का पूजन
दत्तात्रेय जयंती के अवसर पर मंगलवार सुबह प्रातः काल उठकर स्नान ध्यान करें. भगवान का दूध से अभिषेक करें. गेंदे के प्रिय फूल या उसकी माला चढ़ाई धूप अगरबत्ती करें. फिर शुभ संकल्प लें जो भी आपकी मनोकामना है, उसको पूरा करने के लिए भगवान से प्रार्थना करें. फिर भगवान का कीर्तन करें. गोधूलि बेला में जन्मोत्सव मनाएं. यह पूजन घर पर या मंदिर में भी कर सकते हैं. इसके बाद भगवान की आरती करें और प्रसाद वितरण करें.
दत्तात्रेय मंदिर में भी होंगे कार्यक्रम
सागर के दत्तात्रेय मंदिर में मंगलवार की शाम भजन-कीर्तन शुरू हो जाएंगे, जिसके बाद हर बार की तरह इस बार भी फूलों से सजे पालने में गोधूलि बेला में भगवान दत्तात्रेय का जन्म महोत्सव होगा. फिर महाआरती और प्रसाद वितरण किया जाएगा. दत्तात्रेय मंदिर में इस अवसर पर न केवल समाज के लोग बल्कि शहर के विभिन्न इलाकों से लोग भगवान दत्तात्रेय के दर्शन करने आते हैं. इस महोत्सव में शामिल होते हैं. सर्व मनोरथ सिद्धि के लिए भगवान का पूजन किया जाता है. प्रिय गेंदे के फूलों की माला चढ़ाई जाती है.
1995 में समाज ने लक्ष्मीपुरा में की दत्तात्रेय मंदिर की स्थापना
लक्ष्मीपुरा स्थित चंपाबाग में दत्तात्रेय मंदिर की स्थापना 1995 में हुई. समाज के सचिव प्रदीप सुभेदार ने बताया कि मंदिर में भगवान दत्तात्रेय की संगमरमर की प्रतिमा जयपुर से लाई गई थी. गर्भगृह में भगवान कार्तिकेय के साथ श्रीगणेश एवं साईं बाबा एक ही सिंहासन पर विराजमान हैं. पहले जब मंदिर की स्थापना नहीं हुई थी, तब महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण समाज के द्वारा घर-घर में दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती थी. लेकिन, अब भगवान के विराजमान होने के बाद पूरे समाज के लोग सामूहिक रूप से इस जयंती को हर्षोल्लास के साथ मानने लगे हैं. मंदिर की सेवा 1995 से 2000 तक आठले गुरुजी परिवार द्वारा की गई. इसके बाद से विवेक गुर्जर एवं विजय वाकणकर पूजा-अर्चना का दायित्व संभाल रहे हैं.
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FIRST PUBLISHED : December 26, 2023, 16:31 IST