सर्दियों में रामबाण से कम नहीं है ये मिठाई, , स्वाद में भी सुपरहिट, जानिए रेसिपी

ओम प्रकाश निरंजन/कोडरमा.सर्दियों में सेहत के दृष्टिकोण से तिल से बनें व्यंजन का सेवन सेहत के लिए काफी फायदेमंद माने जाते हैं. तिल में प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, कॉपर, आयरन, मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्व होते हैं. जो सर्दियों में शरीर को गर्माहट प्रदान करती है. वहीं धार्मिक दृष्टिकोण से मकर संक्रांति के अवसर पर तिल के लड्डू और तिलकुट खाने का विशेष महत्व है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन तिल से बनीं वस्तुओं का दान एवं इसका सेवन करना चाहिए.

जब भी तिलकुट की बात सामने आती है तो बिहार के गया का जिक्र जरूर होता है. गया में बनने वाले तिलकुट की झारखंड-बिहार के अलावे विदेश में भी काफी अधिक मांग है. इसी को ध्यान में रखते हुए कला मंदिर के समीप स्थित अमर तिलकुट भंडार के द्वारा गया के कुशल कारीगरों को बुलाकर तिलकुट तैयार करवाया जा रहा है. कोडरमा में भी गया के तिलकुट की काफी डिमांड है. झुमरी तिलैया में भी अब कला मंदिर के समीप, ब्लॉक मोड, झंडा चौक आदि इलाकों में तिलकुट की सोंधी खुशबू फैलने लगी है.

कई जिलों में होती है सप्लाई
अमर तिलकुट भंडार के अजीत गुप्ता ने बताया कि कोडरमा के लोगों को भी गया के मशहूर तिलकुट का सोंधा स्वाद मिले इसकों लेकर यह तैयारी की गई है. उन्होंने बताया कि तिलकुट में प्रयोग होने वाले तिल और गुड़ भी गया से ही मंगाया जा रहा है. ताकि गया के तिलकुट का पारंपरिक स्वाद यहां के लोगों को मिले. यहां तैयार होने वाले तिलकुट की सप्लाई पड़ोसी जिला गिरिडीह, हजारीबाग, बरही एवं कोडरमा के विभिन्न प्रखंडों में होती है.

जानें इस बार का रेट
अजीत ने बताया कि महंगाई का असर तिलकुट पर भी दिख रहा है. तिल और गुड़ के दामों में उछाल एवं कारीगरों की मजदूरी में बढ़ोत्तरी का असर तिलकुट के रेट पर भी पड़ा है. इस वर्ष चीनी से बना तिलकुट 280 से 300 रुपए किलो, गुड से बना तिलकुट 280 रुपए किलो और खोवा से बना तिलकुट 350 रुपए किलो बिक रहा है.

तिलकुट बनाने की विधि
अजीत ने बताया कि तिलकुट तैयार करने के लिए सबसे पहले चीनी और पानी को कड़ाही में खौलाया जाता है. इसके बाद इसका घानी तैयार किया जाता है. घानी तैयार होने के बाद चीनी के घोल को चिकने पत्थर पर पसारा जाता है. इसके ठंडा होने के बाद इसे पट्टी पर चढ़ाया जाता है. पट्टी पर चढ़ाने के बाद इसे तिल के साथ गरम कड़ाही में भूना जाता है, भुनाने के बाद छोटे छोटे लोई बनाकर इसे हाथों से कूटा जाता है. तिलकुट कूटने के बाद उसे सूखने के लिए रखा जाता है ताकि वह खास्ता बन सके.

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