सोनिया मिश्रा/रुद्रप्रयाग. उत्तराखंड के चार धामों में से एक केदारनाथ धाम को मोक्ष का द्वार कहा जाता है. क्योंकि पांडव भी केदारनाथ से ही गो हत्या के पाप से मुक्त होकर स्वर्गा के लिए गए थे. इसलिए यहां पितृ पक्ष में पितरों के तर्पण और पिंडदान का विशेष महत्व है और यही कारण है कि देश-विदेश से यहां श्रद्धालु पिंडदान के लिए पहुंचते हैं.
केदारनाथ धाम में पिंडदान और तर्पण देने की परंपरा पौराणिक काल से चली आ रही है. श्राद्ध पक्ष में स्थानीय ही नहीं, बल्कि देश-विदेश से भी भक्त यहां अपने पितरों के मोक्ष की कामना के लिये पहुंचते हैं. भक्त केदारनाथ में सरस्वती व मंदाकिनी नदी के घाटों पर अपने पितरों को तर्पण करते हैं. केदारनाथ धाम की यह भी मान्यता है कि यात्रा करने के दौरान धाम में यदि किसी भी व्यक्ति की मौत होती है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.पितृ पक्ष प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है. इस वर्ष भी यह पक्ष 29 सितंबर से शुरू हो चुका है और 14 अक्टूबर तक चलेगा.
क्या है पिंड दान का महत्व?
ऐसी मान्यता है कि इन दिनों हमारे पूर्वज, पितृलोक से मृत्यु लोक में अपने वंशजों से सूक्ष्म रूप में मिलने आते हैं और हम उनके सम्मान में अपनी सामर्थ्य के अनुसार उनका स्वागत-सत्कार करते हैं. इसके परिणामस्वरूप सभी पितृ अपनी पसंद का भोजन व सम्मान पाकर प्रसन्न व संतुष्ट होकर परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य, दीर्घायु, वंश वृद्धि व अनेक प्रकार के आशीर्वाद देकर पितृलोक लौट जाते हैं. धार्मिक मान्यता है कि पितृ दोष के कारण व्यक्ति के जीवन में सदैव परेशानी, संकट और जीवन में संघर्ष बने रहते हैं. इसलिए इस दोष का निवारण बहुत आवश्यक बताया गया है.
हंस कुंड में पिंड दान का महत्व
तीर्थ पुरोहित श्री निवास पोस्ती ने बताया कि मान्यता है कि यहां सरस्वती नदी के पास स्थित हंस कुंड में पिंड दान और तर्पण से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. सरस्वती और मंदाकिनी नदी के तट पर भी पिंडदान व तर्पण किया जाता है.
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FIRST PUBLISHED : October 6, 2023, 22:42 IST