नई दिल्ली. राजस्थान सरकार ने 2001 में एक अंशकालिक मजदूर के पक्ष में एक श्रम अदालत के फैसले को लागू नहीं किया और उसे लगातार 22 साल तक मुकदमेबाजी में घसीटती रही. सुप्रीम कोर्ट ने अंशकालिक मजदूर के पक्ष में पारित श्रम न्यायालय के फैसले को लागू करने से राजस्थान सरकार के बार-बार इनकार करने पर आपत्ति जताई. जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि इसके कारण मजदूर को लगभग 22 साल तक इस मामले में मुकदमा लड़ते रहना पड़ा.
‘बार एंड बेंच’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अफसोस जताते हुए कहा कि ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजस्थान राज्य सरकार गरीब वादी, अंशकालिक मजदूर को परेशान कर रही है.’ सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि अशंकालिक मजदूर के पक्ष में वर्ष 2001 में श्रम न्यायालय ने फैसला दिया गया था, यानी पिछले 22 साल से वह मुकदमा झेल कर रहा है. यह पूरी तरह से एक तुच्छ याचिका का मामला है.’ इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने मामले में 8 दिसंबर के राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राजस्थान राज्य की अपील को खारिज कर दिया, जबकि राजस्थान सरकार को इस दौरान हुए खर्च के रूप में 10 लाख रुपये का भुगतान मजदूर को करने का आदेश दिया.
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एक श्रम विवाद के बाद मजदूर को 2001 में एक श्रम न्यायालय ने सेवा में वापस बहाल करने का आदेश दिया था. श्रम न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली राज्य की याचिका को बाद में हाईकोर्ट ने भी खारिज कर दिया था. हालांकि मजदूर को श्रम न्यायालय के फैसले को लागू कराने के लिए अदालतों का रुख करना पड़ा. हाईकोर्ट की कई पीठों ने राज्य द्वारा मजदूर को किए जाने वाले भुगतान को बरकरार रखा, जिसके कारण राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने तत्काल अपील की. उक्त अपील को अब सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है, जिसने राजस्थान सरकार को चार हफ्ते के भीतर मजदूर को लागत के रूप में 10 लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है.
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FIRST PUBLISHED : February 19, 2024, 22:01 IST