भारतीय पैरा-बैडमिंटन में प्रमोद भगत, रोहित भाकर, नीलेश गायकवाड़, अबु हुबैदा जैसे कई बेहतरीन खिलाड़ी देने वाले राष्ट्रीय कोच गौरव खन्ना ने देश में पैरा खेलों के विकास का श्रेय मौजूदा सरकार को देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पैरा खिलाड़ियों के लिए ‘अभिभावक’ की तरह है।
हाल ही में पद्मश्री से नवाजे गये खन्ना ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ मैं इस बात से बहुत संतुष्ट हूं कि चीजें (पैरा खेलों में) कैसे आगे बढ़ रही हैं। इसका श्रेय सरकार और देश के माननीय प्रधानमंत्री को जाता है। वह पैरा-एथलीटों पर काफी ध्यान दे रहे हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ वह (मोदी) बड़ी स्पर्धाओं में भाग लेने जाने वाले खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाते है और सर्वश्रेष्ठ करने के लिए प्रेरित करते है। जब ये खिलाड़ी पदक जीत कर लौटते है तो वह उन्हें पार्टी देते है। वह उनके लिए एक अभिभावक की तरह हैं।’’
भारतीय पैरा बैडमिंटन खिलाड़ियों ने हांगझोउ एशियाई खेलों में 21 पदक जीते थे। भारतीय पैरा बैडमिंटन में इस परिवर्तन का श्रेय द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता कोच गौरव खन्ना को जाता है।
खन्ना बचपन से ही बैडमिंटन खिलाड़ी बनना चाहते थे लेकिन 11 दिसंबर 1975 को जन्में खन्ना घुटने के ऑपरेशन के बाद पेशेवर खिलाड़ी के तौर पर खेल जारी नहीं रख पाये।
उन्होंने हालांकि अपने जुनून का पालन किया और बैडमिंटन से जुड़े रहे। उन्होंने दिव्यांग बच्चों को कोचिंग देना शुरू किया।
खन्ना ने कोच के तौर पर अपनी यात्रा के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘‘ 1996 में (घुटने के) ऑपरेशन के बाद मेरा पेशेवर करियर खत्म हो गया। इसके बाद 1998 में आरपीएस (राजस्थान पुलिस सेवा) में पहली पोस्टिंग हुई।
यहां मैंने कुछ बच्चों को ‘इम्प्लांट’ पहने हुए देखा। मुझे बताया गया कि वे असामाजिक तत्व है और मुख्य रूप से पॉकेट मारी जैसे अपराध में शामिल बच्चे है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ मैंने उनसे (बच्चों से) बात की, सांकेतिक सीखी और उनके लिए रैकेट भी खरीदे।’’
खन्ना ने अपने जुनून और समर्पण से पैरा-बैडमिंटन को देश में सुर्खियों में ला दिया हो, लेकिन यह कोई आसान काम नहीं था।
उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्हें शून्य से शुरुआत करनी पड़ी। जमीनी स्तर पर एक मजबूत टीम बनाने में उत्तर प्रदेश के पूर्व खेल मंत्री दिवंगत चेतन चौहान ने उनकी काफी मदद की।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे एहसास हुआ कि भारतीय पैरा-बैडमिंटन में कोई उचित या ठोस जमीनी स्तर की व्यवस्था नहीं है। मैंने कई लोगों से मदद मांगी। चेतन चौहान की मदद से लखनऊ के स्पोर्ट्स कॉलेज में इस खेल को शुरू किया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमने खराब परिस्थितियों के बावजूद परिणाम देना शुरू किया और कुछ प्रायोजकों से मदद मिलने के बाद हम दूसरी जगह चले गए।’’
खन्ना ने कहा, ‘‘ वहां भी चीजें सुचारू नहीं थी। किराये के आवास में हमें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता था।
लखनऊ में द्रोण पैरालंपिक हाउस की स्थापना के बाद चीजें ठीक हुई। यह स्थल अब पैरा-बैडमिंटन खिलाड़ियों के लिए बेहतरीन प्रशिक्षण स्थल के तौर पर उभरा है
उनकी इस अकादमी के खिलाड़ियों ने विभिन्न प्रतियोगिताओं में 200 स्वर्ण सहित 800 पदक जीते है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह सफर काफी चुनौतीपूर्ण था लेकिन अगर अंत भला तो सब भला।
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