सरकार का ‘एक देश-एक चुनाव’ का दांव, मगर आम राय बनाना आसान नहीं

‘एक देश, एक चुनाव’ पर सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति बना दी है. इसी के बाद बहस तेज हो गई है कि इसी समय यह क्यों..? एक तरफ जब मुंबई में INDIA गठबंधन की बैठक चल रही थी उसी दिन इस समिति की घोषणा करके सरकार ने INDIA की बैठक से सारा मीडिया स्पेस छीन लिया. दिन भर मीडिया में एक देश एक चुनाव छाया रहा. माना जा रहा है कि यदि दोनों चुनाव साथ होते हैं तो INDIA गठबंधन में जो विरोधाभास है उसे उजागर करने में बीजेपी सफल रहेगी. 

मुंबई की बैठक में सभी नेताओं ने कहा कि वे अपने सारे गिले, शिकायतों और अहं को भुलाकर विपक्ष का एक उम्मीदवार लाने के लिए भरपूर कोशिश करेंगे. यदि यह संभव हुआ तो अगला लोकसभा चुनाव दिलचस्प हो जाएगा. लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि INDIA गठबंधन के दलों को विधानसभाओं में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ना होगा. ऐसे में दिक्कत आ सकती है. यही वजह है कि बीजेपी अब लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक साथ कराना चाहती है ताकि लोगों के दिमाग  में कन्फ्यूजन पैदा किया जा सके. 

वैसे भी बीजेपी के नेता पहले ही देश में दो ही पार्टियों की वकालत करते आए हैं, इसमें आडवाणी जी प्रमुख थे. एक स्टडी के मुताबिक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाने पर 60 फीसदी जनता एक ही पार्टी को वोट देना पसंद करती है, और इस तरह के चुनाव में राष्ट्रीय दलों को फायदा होता है. वैसे यह सारी चीज़ें बीजेपी के लिए फ़ायदेमंद हैं, क्योंकि वह नगर निगम से लेकर लोकसभा तक का चुनाव प्रधानमंत्री के चेहरे पर ही लड़ती है. 

इसका दूसरा पहलू यह है कि इससे क्षेत्रीय दल खत्म हो जाएंगे जो लोकतंत्र के लिए सही नहीं होगा. एक देश, एक चुनाव आपको राष्ट्रपति शासन वाली प्रणाली की ओर ले जाता है, जिसकी वकालत गाहे-बगाहे बीजेपी करती आई है. 

अब बात करते हैं कि क्या ये संभव है? क्योंकि यह करने के लिए संसद के दोनों सदनों और देश की आधी विधानसभाओं से मंजूरी लेनी होगी. चूंकि यह संविधान संशोधन विधेयक होगा इसलिए दोनों सदनों में इसे दो तिहाई बहुमत से पास कराना होगा. यह संविधान संशोधन विधेयक इसलिए होगा क्योंकि इसमें विधानसभाओं के कार्यकाल को कम या ज्यादा करना होगा. लोकसभा में एनडीए को बहुमत है और 16 राज्यों में सरकारें भी हैं मगर एनडीए को राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत नहीं है. यदि वहां सरकार कोशिश करके बहुमत जुटा लेती है तो एक देश एक चुनाव हकीकत बन सकता है. 

देश में 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, मगर उसके बाद राज्य सरकारों की बर्खास्तगी के बाद हालात बदल गए और 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई. फिर मध्यावधि चुनाव हुए. सरकार ने एक देश, एक चुनाव पर दांव तो खेल दिया है मगर इस पर आम राय बनाना उतना आसान नहीं है. लेकिन अगले लोकसभा चुनाव में इसे मुद्दा बनाना बहुत आसान है. 

आखिरकार INDIA गठबंधन का कुछ तो काट बीजेपी को निकालना होगा क्योंकि आप भले ही INDIA गठबंधन को पसंद करें या नहीं अंकगणित या आंकड़े उनके पक्ष में हैं. यही वजह है कि संसद का एक विशेष सत्र भी बुलाया गया है, मगर उसका एजेंडा किसी को मालूम नहीं है. उसमें कौन सा बिल लाया जाएगा किसी को पता नहीं हां इतना पता है कि अमृत काल के दौरान सरकार की उपलब्धियों यानि चंद्रयान और G-20 की सफलता पर प्रस्ताव पारित किए जाएंगे. 

दूसरी तरफ INDIA गठबंधन भी 30 सितंबर तक अपने गठबंधन की घोषणा कर देगा यानि मुकाबला रोचक रहने वाला है, इसलिए अभी तो यह शुरुआत है आगे-आगे देखिए होता है क्या?

मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं…

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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