एक घंटा पहले
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1883 की बात है। ऑस्ट्रेलिया का एक वकील जैक वॉन्ट अपना शौक पूरा करने के लिए ब्रिटेन से जहाज खरीदता है। खरीददारी के बाद जैक को कोई ऐसा क्रू नहीं मिल रहा था, जो इसे सिडनी तक पहुंचाने के लिए तैयार हो। मिनयोनेट नाम का ये जहाज लंबी दूरी तय करने के मकसद से नहीं बना था।
एक साल की खोज के बाद उसे एक ऐसा क्रू मिला जो जहाज को 26 हजार किलोमीटर दूर सिडनी ले जाने के लिए तैयार हो गया। इस क्रू में चार लोग थे- कैप्टन टॉम डडली, एडविन स्टीफेन, एडमंड ब्रुक्स और 17 साल का लड़का रिचर्ड पार्कर।
जब साउथ अफ्रीका के केप टाउन से क्रू जहाज लेकर रवाना हुआ उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि समुद्र उनके साथ कुछ ऐसा करेगा की उनकी कहानी अपराध की दुनिया के सबसे चर्चित किस्सों में शुमार हो जाएगी।
140 साल पुराने इस किस्से में जानेंगे कि कैसे साउथ अफ्रीका से ऑस्ट्रेलिया रवाना हुए लोग अपने ही साथी का खून पीने को मजबूर हुए और कैसे आज ही के दिन उनकी मौत की सजा माफ हुई…
19 मई 1884 को मिनयोनेट जहाज का क्रू बेपरवाह होकर अपनी मंजिल के लिए रवाना होता है। टॉम डडली 31 साल का अनुभव वाला जाना -माना कैप्टन था और ब्रूक्स और एडविन स्टीफेन ट्रेन्ड नाविक थे। इनमें से किसी को सफर का डर था तो वो था 17 साल का रिचर्ड पार्कर।
उसे समुद्री सफर का कोई अनुभव नहीं था, वो जहाज पर सिर्फ इसलिए था क्योंकि नाविकों के परिवार से था और उसे इस परंपरा को आगे बढ़ाना था। समुद्र में 45 दिन बीतने के बाद जब वो ब्रिटेन से साउथ अफ्रीका के करीब पहुंचे थे ,तभी उनके सफर में एक अहम मोड़ आया।

तूफान से टकराने के कुछ देर बाद ही जहाज पूरी तरह समुद्र में समा चुका था। हालांकि, तब तक कैप्टन डडली अपने क्रू के साथ लाइफ बोट पर पहुंच गए थे। उनके पास खाने के लिए दो डब्बों में सिर्फ शलजम थे। इसके अलावा डायरेक्शन समझने के लिए कुछ जरूरी सामान था। उनके पास पीने के लिए पानी तक नहीं था। डडली ने लाइफबोट में कुछ बदलाव किए, जिससे वो समुद्र की लहरों के बीच कुछ हद तक स्थिर हो गई।

23 जुलाई को 17 साल के पार्कर की तबियत बहुत खराब हो गई। तब डडली ने स्टीफेन से कहा कि बाकियों के जिंदा रहने के लिए हम में से किसी एक को मरना पड़ेगा। डडली ने पार्कर की खराब हालत को देखकर कहा- इसकी वैसे भी शायद मौत होने वाली है, लेकिन हमें अपने परिवारों के बारे में भी सोचना है। अगली सुबह, डडली और स्टीफेन ने एक-दूसरे को इशारा करके पार्कर को मारने का फैसला किया।

तीनों के हाथों में खून और नाखूनों में चमड़ी फंसी थी
29 जुलाई को जर्मनी के एक जहाज की उन पर नजर पड़ी। जब उन्हें रेस्क्यू किया गया था तब उनके हाथों पर खून और नाखूनों में पार्कर की चमड़ी फंसी हुई थी। नाव पर जगह-जगह पार्कर के शरीर के टुकड़े थे। उन्हें 6 सितंबर को इंग्लैंड के फालमाउथ में उतारा गया।
फालमाउथ पहुंचने पर तीनों लोगों को कस्टम हाउस में रखा गया। इस दौरान उन्होंने अपने बयान दर्ज करवाए। फालमाउथ के पुलिस अधिकारी ने डडली का बयान लिया। इस पर उसने कैप्टन से पूछा कि उसने पार्कर को कैसे मारा था। उसने डडली के चाकू को कस्टडी में ले लिया और वादा किया कि वो उसे लौटा देगा।
डडली ने बताया- ब्रुक पार्कर को मारने वाले प्लान में शामिल नहीं था। हालांकि, उसने इस फैसले में अपनी सहमति जताई थी। पार्कर को मारने के बाद उसके अंगों को मैनें और ब्रुक ने सबसे ज्यादा खाया। बाद में वो बारिश का पानी इकट्ठा करने में भी कामयाब रहे।
डडली ने कहा- मैं उस पल को कभी नहीं भूल सकता, जब मेरे दो साथी उस भयानक भोजन पर टूट पड़े थे। हम पागल भेड़ियों की तरह थे। हम खुद भी किसी के पिता हैं और इस नाते हम अपने किए को पूरी तरह से सही नहीं ठहरा सकते।
डडली चाहता तो वो आसानी से ये बात छिपा सकता था कि पार्कर की मौत कैसे हुई पर उसने ऐसा नहीं किया। उसने तय किया कि वो कानून का सामना करेगा।
चाकू को जांच के लिए भेजा गया
इसके बाद चाकू को जांच के लिए भेजा गया और उन्हें बेल पर रिहा कर दिया गया। उस वक्त तक सभी लोगों के दिल में डडली और तीनों नाविकों को लेकर सहानुभूति थी। पार्कर का भाई भी जब पुलिस स्टेशन आया तो उसे डडली से अच्छा व्यवहार किया। हालांकि, जल्द ही चीजें बदलने वाली थीं।
जब बचे हुए तीनों लोग अपने घर लौटने की तैयारी कर रहे थे, तब उन्हें हिरासत में लेने का आदेश दिया गया। हालांकि, ब्रिटेन के बोर्ड ऑफ ट्रेड ने ऐसा नहीं करने के लिए कहा, लेकिन अधिकारियों ने उन्हें गिरफ्तार करके 8 सितंबर को कोर्ट में पेश किया। इसके बाद केस पर कुछ सुनवाई हुई और तारीख आगे बढ़ी।
जब 18 सितंबर को मजिस्ट्रेट ने मामले की सुनवाई की, तो अदालत में ब्रुक्स के खिलाफ कोई सबूत न पेश करते हुए उसे बरी करने का अनुरोध किया गया। इस दौरान वकील का मकसद ब्रुक्स को गवाह बनाना था। पूरे मामले में कई सुनवाई हुई। जजों ने फैसला लेने के लिए कई पुराने केसों को स्टडी किया। आखिर में 5 जजों की बेंच ने किसी सीनियर जज की सलाह लिए बिना फैसला सुनाया।

कोर्ट ने आगे कहा- शिप पर मौजूद कैप्टन और क्रू का फर्ज होता है कि वो एक-दूसरे की रक्षा के लिए अपनी जान दे दें, लेकिन इन लोगों ने एक निहत्थे बच्चे को अपने हित के लिए मार दिया। 9 दिसंबर 1884 को डडली और स्टीफेन को मौत की सजा सुनाई गई। मामले की सुनवाई करने वाले मेन जज बैरन हडलस्टन के बारे में कहा जाता है कि वो सुनवाई से पहले ही मन बना चुके थे कि 3 नाविकों को सजा देनी है।
कैसे माफ हुई सजा
अब डडली और स्टीफेन के पास बचने का सिर्फ एक ही रास्ता था। अगर विशेषाधिकार के तहत ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया खुद इस फैसले पर रोक लगा दें। महारानी की सलाह पर गृह सचिव विलियम हरकोर्ट ये फैसला ले सकते थे। हरकोर्ट की शुरुआत से ही इस केस पर नजर थी। उन्होंने अटॉर्नी जनरल से इस पर चर्चा की। हरकोर्ट का मानना था कि उन्हें सजा जरूर मिलनी चाहिए पर वो मौत की सजा नहीं होनी चाहिए।
ब्रिटेन में एक बड़े तबके का मानना था कि समुद्र में उन्होंने समुद्र के कानून का पालन किया। यानी उन्होंने जो कुछ किया वो खुद को जिंदा रखने के लिए किया। जो गलत नहीं था।
इसके बाद 12 दिसंबर को दोनों दोषियों को 6 महीने की जेल की सजा सुनाई गई। हालांकि, डडली ने आखिर तक उन्हें सजा दिए जाने के फैसले को गलत बताया। उन्हें सजा पूरी होने के बाद 20 मई 1885 की सुबह 7 बजे रिहा कर दिया गया था।
ब्रिटेन में ये केस इतना मशहूर हुआ कि अखबारों में इसे लेकर गाने लिखे गए। लोग पब में शराब पीते हुए इस पर चर्चा करते थे।
इलस्ट्रेशन- संदीप पाल