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सभी युगों के देवी-देवताओं से हैं इस जिले का गहरा नाता, प्रभु राम से लेकर कपिल मुनि ने ली है यहां से शिक्षा

जिले में कई सारे धार्मिक स्थल है. जो आज भी लोगों के आस्था का केन्द्र है. कुछ पौराणिक है, तो कुछ ऐतिहासिक हैं. किसी देवी दरबार का प्रभु राम से गहरा नाता है, तो किसी देवी का दुर्गा सप्तशती में वर्णन मिलता है.(रिपोर्ट – सनन्दन उपाध्याय)

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यह मंदिर जिले के लिए एक पौराणिक धरोहर है. इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. इस देवी दरबार का वर्णन दुर्गा सप्तशती में वर्णित है. प्रथम शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी दुर्गा सप्तशती के अथ कवचम पाठ में इस देवी का दूसरे रूप में वर्णन मिलता है. इस मंदिर से लाखों श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ूी हुई है. जिले से ही नहीं बल्कि देश के कोने-कोने से यहां श्रद्धालु आते हैं. यह जिले के ब्रह्मईन गांव में स्थित है.

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इस मंदिर की कहानी सीधे भगवान श्री राम से जुड़ी है. जिस समय विश्वामित्र के साथ भगवान श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ बलिया आए थे उस समय भगवान श्री राम अस्त्र नहीं चलाना चाहते थे तो इसी देवी ने प्रकट होकर रक्तबीज का वृत्तांत सुनाकर उनके दुविधा को दूर किया था. यह मंदिर काफी प्रसिद्ध और पौराणिक है. मान्यता है कि यहां आने वाले खाली नहीं जाते हैं. प्राचीन काल में अंग्रेज अधिकारी ने इस प्रतिमा को उखाड़ फेंक दिया था. इसके बाद उसका सर्वनाश हो गया अंततः फिर इस प्रतिमा को स्थापित किया गया. यह जिले के उजियार भरौली अंतर्गत कोरंटाडीह में स्थित है.

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यही वह प्रसिद्ध देवी दरबार है जिनका स्वरूप दिन में तीन बार बदलता है. महंथ अजय गिरी बताते हैं कि जमीन के अंदर से शिवलिंग के साथ ये मां निकली है. यहां देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं. इस दरबार में सच्चे मन से मांगी गई मुरादे जरूर पूरी होती हैं. यहां सुबह से लेकर शाम तक श्रद्धालुओं की लाइन लगी रहती है. यह स्थान शक्तिपीठों में से एक है. जिले के उचेड़ा में यह सच्चा दरबार स्थित है.

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यह देवी दरबार जिले के कपूरी गांव में स्थित है. जिसकी कहानी सीधे कपिल मुनि से जुड़ी हुई है. प्राचीन काल में कपिल मुनि का आश्रम था. मुनिवर ने ही यहां देवी की स्थापना की थी. इसलिए इस मंदिर का नाम कपिलेश्वरी भवानी पड़ा

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यह जिले के शंकरपुर में स्थित मां शांकरी भवानी का भव्य दिव्य मंदिर है. जिसका वर्णन दुर्गा सप्तशती में कर्णमुले तू शांकरी करके वर्णित है. इसके कुछ ही दूरी पर सुरहा ताल स्थित है जहां पर राजा सूरथ का कुष्ठ रोग दूर हुआ था. उसी के दौरान राजा सूरथ पंच मंदिरो का स्थापना किया जिसमें यह मंदिर भी शामिल है. यहां पर आने वाले भक्तों की हर मुरादे पूरी होती है. यह सच्चा दरबार शक्तिपीठों में से एक है.

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