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नई दिल्ली2 घंटे पहले
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ई कॉमर्स वेबसाइट फ्लिपकार्ट की द बिग बिलियन डेज और अमेजन की ग्रेट इंडियन फेस्टिवल सेल आज यानी 8 अक्टूबर रात 12 बजे से सभी के लिए सेल शुरू हो गई है। एक दिन पहले ये सेल केवल प्लस और प्राइम मेंबर्स के लिए थी। इसमें 90% तक डिस्काउंट देने का दावा किया जा रहा है।
द बिग बिलियन डेज सेल में फ्लिपकार्ट सभी प्रोडक्ट पर ICICI बैंक, एक्सिस बैंक और कोटक महिंद्रा बैंक के क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करने पर 10% का ऐक्स्ट्रा डिस्काउंट दे रही है। वहीं, अमेजन अपनी सेल में SBI के क्रेडिट और डेबिट कार्ड पर 10% का ऐक्स्ट्रा डिस्काउंट ऑफर कर रहा है।
₹39,999 की शुरुआती कीमत पर मिल रहा आईफोन
फ्लिपकार्ट पर आईफोन-12 ₹39,999, आईफोन-13 ₹51,999 और आईफोन-14 ₹64,999 में मिल रही है। सभी आईफोन की कीमतें शुरुआती वैरिएंट की हैं। अलग-अलग वैरिएंट में अलग-अलग डिस्काउंट मिल रहा है। वहीं, हाल ही में लॉन्च हुए आईफोन 15 सीरीज में अमेजन-फ्लिपकार्ट कोई खास डिस्काउंट नहीं दे रहे हैं।
भारी भरकम डिस्काउंट कैसे देती हैं कंपनियां?
डिस्काउंट के गणित को समझने से पहले यह समझना होगा कि फ्लिपकार्ट और अमेजन काम कैसे करते हैं? दरअसल ये कंपनियां इंटरमीडियरी की तरह हैं जो वेंडर्स और कस्टमर्स को अपने प्लेटफॉर्म के जरिए जोड़ती हैं। ये कंपनियां वेंडर्स को अपनी वेबसाइट के जरिए सामान बेचने के लिए प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराती हैं और बदले में बिक्री पर कमीशन लेती हैं।
- किसी भी कंपनी की सेल का मकसद सेल्स वॉल्यूम बढ़ाना होता है। इससे कस्टमर बेस बढ़ता है। 2016 को याद करें, जब जियो पूरे भारत में फ्री में 4G इंटरनेट दे रहा था। हर कोई सिम की लाइन में लगा था। ज्यादा से ज्यादा ग्राहक हासिल करने की ये जियो की स्ट्रैटजी थी। इसी तरह अमेजन-फ्लिपकार्ट भी ग्राहकों को अट्रैक्ट करने के लिए भारी डिस्काउंट देती हैं।
- 80-90% डिस्काउंट देने में प्लेटफॉर्म-वेंडर दोनों का रोल होता है। सेल के दौरान प्लेटफॉर्म्स अपना कमीशन कम कर देते हैं। वहीं वेंडर के रोल को कपड़ों के उदाहरण से समझते हैं। बड़े ब्रांड हर साल डिस्काउंट देकर पुराने स्टॉक को क्लियर करने की कोशिश करते हैं, लेकिन अपनी ब्रांड आइडेंटिटी बनाए रखने के लिए एक लिमिट तक ही डिस्काउंट दे पाते हैं।
- इन स्थितियों में एक लिक्विडेटर कंपनी से रिटेल प्राइस के 20-30% पर बड़ा स्टॉक खरीद लेता है। इसके बाद वो इसे छोटे मार्जिन पर सेल के लिए रख देता है। इसमें कोई शक नहीं कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स कई प्रोडक्ट घाटे में बेचते हैं, लेकिन वो जानते हैं कि एक बार जब ग्राहक उनसे उत्पाद खरीदने के आदी हो जाएंगे, तो लंबे समय में वो प्रॉफिट बना सकेंगे।
- कई ई-कॉमर्स कंपनियां सेल से ठीक पहले प्रोडक्ट की कीमत बढ़ाना शुरू कर देते हैं। वे उस कीमत पर छूट देते हैं जो वास्तव में एमआरपी होती है। टैग बदल दिए जाते हैं और कीमतें उनके वास्तविक मूल्य से बहुत अधिक मूल्य पर निर्धारित कर दी जाती हैं। इस तरह ग्राहक सेल के इन मौकों पर ज्यादा खरीदारी के चक्कर में पड़ जाता है।
- सभी ने स्कूल में प्रॉफिट का फॉर्मूला पढ़ा होगा। प्रॉफिट = सेलिंग प्राइस – कॉस्ट प्राइस। कॉस्ट प्राइस का मतलब है कि प्रोडक्ट कितने रुपए में बनकर तैयार हुआ और सेलिंग प्राइस मतलब है कि कितने में प्रोडक्ट बेचा गया। अगर कोई भी प्रोडक्ट ज्यादा मात्रा में सेल होता है तो उसकी कॉस्टकम हो जाती है। क्योंकि ज्यादा मात्रा में प्रोडक्ट बनाने पर खर्च कम आता है।
- बल्क सेल्स में भले ही मार्जिन कम हो, लेकिन वॉल्यूम बढ़ने से कमाई बढ़ जाती है। मोबाइल, टीवी, लैपटॉप, एसी जैसे चीजें बल्क में बेचे जाने के कारण ही इतने भारी डिस्काउंट पर मिल पाती हैं। बल्क में बेचे जाने के कारण कंपनी के साथ-साथ वेंडर का भी मुनाफा बढ़ जाता है। ऊपर दिए इन्हीं सब कारणों से सेल में ग्राहकों को चीजें 80-90% डिस्काउंट में मिल पाती हैं।
कंपनियां फेस्टिव सीजन में कितनी सेल्स करती हैं?
कंसल्टिंग फर्म रेडसीर के अनुसार, इस साल त्योहारी सीजन के दौरान देश के ईकॉमर्स सेक्टर की ग्रॉस मर्चेंडाइज वैल्यू (GMV) पिछले साल के 76,000 करोड़ रुपए से 18-20% बढ़कर 90,000 करोड़ रुपए होने की उम्मीद है। इस साल त्योहारी सीजन की सेल के दौरान लगभग 14 करोड़ लोगों की खरीदारी में शामिल होने की उम्मीद है।
क्या ये सेल सच में ग्राहकों के लिए फायदेमंद है?
हमें रोजाना कई प्रोडक्ट-सर्विसेज की जरूरत होती है। तो अगर जरूरी चीजें रियायती कीमत पर मिल रही हैं, तो इसे ना क्यों कहें? अब इसके दूसरे पहलू को देखते हैं। यदि आप कोई भी चीज इसलिए खरीद रहे हैं क्योंकि यह छूट पर उपलब्ध है, तो इसे खरीदने का कोई मतलब नहीं। एक तरह से ये पैसे की बरबादी है। इसलिए सेल कितनी फायदेमंद है, ये खुद पर निर्भर करता है।
अब 2 पॉइंट में समझें कंपनी सेल बढ़ाने के लिए क्या करती है…
1. FOMO यानी छूट जाने का डर
फ्लिपकार्ट और अमेजन जैसी कंपनियां अपनी सेल बढ़ाने के लिए FOMO (छूट जाने का डर) क्रिएट करती है। इसके लिए वो बॉलीवुड से लेकर क्रिकेटर्स और अन्य फील्ड से जुड़ी हस्तियों का इस्तेमाल किया जाता है।
ऐसा डर पैदा किया जाता है कि सेल जल्द ही समाप्त हो जाएगी और हमें उन उत्पादों को दोबारा खरीदने का मौका कभी नहीं मिलेगा। यह हमारे दिमाग को उत्पाद खरीदने के लिए प्रेरित करता है। कई लोग बिना जरूरत की चीज खरीद भी लेते हैं।
2. आर्टिफिशियल स्कैरसिटी
ये सेल्स हमें बार-बार याद दिलाकर आर्टिफिशियल स्कैरसिटी यानी कृत्रिम कमी भी पैदा करती है। घड़ी की टिक-टिक के जरिए दिखाया जाता है कि कुछ ही समय में इस प्रोडक्ट की सेल खत्म हो जाएगी। सेल खत्म होने के तुरंत बाद कीमतें एमआरपी पर निर्धारित कर दी जाती हैं। हालांकि, आप कुछ दिनों के बाद दोबारा देखेंगे तो आपको प्रोडक्ट अच्छी छूट पर मिल सकता है।