पीठ ने कहा, ‘‘आपने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(अ) के तहत अपने अधिकार का दुरुपयोग किया है। आपने अनुच्छेद 25 के तहत अपने अधिकार का दुरुपयोग किया है, अब आप अनुच्छेद 32 (उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करने) के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं?
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन को उनकी ‘सनातम धर्म को मिटाने’ संबंधी टिप्पणी को लेकर अप्रसन्नता लगायी और पूछा कि वह भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का दुरुपयोग करने के बाद अपनी याचिका लेकर शीर्ष अदालत के पास क्यों आए हैं। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने स्टालिन से कहा कि वह एक मंत्री हैं और उन्हें अपनी टिप्पणी के परिणाम पता होने चाहिए थे।
पीठ ने कहा, ‘‘आपने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(अ) के तहत अपने अधिकार का दुरुपयोग किया है। आपने अनुच्छेद 25 के तहत अपने अधिकार का दुरुपयोग किया है, अब आप अनुच्छेद 32 (उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करने) के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं? क्या आप अपनी टिप्पणी के नतीजे नहीं जानते थे? आप आम आदमी नहीं हैं। आप एक मंत्री हैं। आपको पता होना चाहिए था कि इस तरह की टिप्पणी का क्या परिणाम होगा।’’
न्यायालय ने मामले पर सुनवाई 15 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और राज्य में सत्तारूढ़ द्रमुक के प्रमुख एम के स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने सितंबर 2023 में एक सम्मेलन में कहा था कि सनातन धर्म सामाजिक न्याय तथा समानता के खिलाफ है और उसका ‘‘विनाश’’ किया जाना चाहिए।
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