सदियों से यहां विराजित हैं मां बड़ी खेरमाई, भक्तों की करती हैं रक्षा

भरत तिवारी/जबलपुर: मां शक्ति की आराधना से भक्त सभी नकारात्मक ऊर्जाओं से दूर हो जाता है. भारत के प्राचीन शहरों में एक जबलपुर को धर्म और संस्कार के लिए जाना जाता है. भक्तों की भगवान से जुड़ी अटूट आस्था का ही प्रतीक बने हुए जबलपुर में कई प्राचीन मंदिर आज भी मौजूद है. इन्हीं में से एक है, मां भगवती के 52 शक्तिपीठों में से प्रमुख गुप्त शक्तिपीठ मां बड़ी खेरमाई का प्राचीन मंदिर.

मां नर्मदा की तट में बसे हुए शहर जबलपुर शहर में भानतलैया स्थित बड़ी खेरमाई का इतिहास सैकड़ो साल पुराना है. मां भगवती की 52 शक्तिपीठों में से प्रमुख गुप्त शक्तिपीठ का ज्ञात इतिहास कलचुरी काल का लगभग 800 से 1000 वर्ष पुराना बताया जाता है. उसके पूर्व शक्ति मत से तांत्रिक और ऋषि मुनि अनंतकाल से यहां शीला रूपी माता रानी की आराधना करते रहे हैं.

प्राचीनकाल से विराजित है मां बड़ी खेरमाई
मंदिर के पुजारी पंडित सुशील तिवारी ने कहा कि मां बड़ी खेरमाई का ज्ञात इतिहास 800 से 1000 वर्ष तक पूर्ण बताया जाता है. उसके पहले शिला रूप में विराजित स्वयंभू मां बड़ी खेरमाई की अनंत कालो से तांत्रिक ऋषि मुनि इनकी आराधना कर रहे हैं. मंदिर में मां बड़ी खेर माई की यह दैविक प्रतिमा साकार रूप में विराजित है जिनकी स्थापना गोंडवाना शासन काल में की गई थी और इन्हीं प्रतिमा के नीचे विराजित है. अनंत काल से मां भगवती के गुप्त शक्तिपीठों में से एक स्वयंभू मां बड़ी खेर माई की शिला रूपी प्रतिमा. मंदिर के पुजारी ने बताया कि गोंडवाना शासनकाल में इस मंदिर में राजा संग्राम शाह राजा मदन शाह और रानी दुर्गावती जैसे शासक मां खेरमाई की यहां पर आराधना किया करते थे. पहले के समय में गांव खेड़ा की भाषा काफी प्रचलन में थी पूरा क्षेत्र इसी भाषा का प्रयोग करता था और गांव खेड़ा से खेड़ा शब्द धीरे-धीरे खेरमाई में प्रचलित हो गया. इसलिए मां का नाम खेर माई के नाम से प्रसिद्ध हो गया. जबलपुर शहर की सबसे प्राचीन और पुरातन प्रतिमा होने के कारण मां खेर माई को यहां पर बड़ी खेरमाई के नाम से जाना जाने लगा.

गुजरात के सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर किया गया पुननिर्माण.
मंदिर के पुजारी सुशील तिवारी के अनुसार मंदिर की हालत जर्जर हो जाने के कारण कुछ वर्ष पूर्व गुजरात के सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर इस मंदिर का पुनः निर्माण करवाया गया है. मंदिर में जवारा विसर्जन की परंपरा वर्ष 1952 की चैत्र नवरात्रि से शुरू हुई थी और इस वर्ष इसका 373वा वर्ष होगा. सुरक्षा को देखते हुए पूरे मंदिर में हर कोने में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. जिसमें कुल 27 सीसीटीवी कैमरों के द्वारा आने जाने वाले हर भक्त पर नजर रखी जाती है, नवरात्रि के दिनों में यहां पर सुबह 4:00 बजे से ही भक्तों की कतार लगना शुरू हो जाती है, गोंड राजवंश से जुड़े होने के चलते यह मंदिर क्षेत्रीय आदिवासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है जो हर नवरात्र पर यहां पर जुड़ते हैं.

राजा संग्राम शाह ने स्थापित की थी प्रतिमा
मंदिर ट्रस्ट के सदस्यों के अनुसार मंदिर में पहले प्राचीन प्रतिमा शिला रूप में स्थापित थी जो वर्तमान प्रतिमा के नीचे स्थापित है उन्होंने बताया की मान्यताओं के अनुसार यहां के गोंद शासक राजा संग्राम सा द्वारा मां भगवती की इस शिला के पास मां खेरमाई की प्रतिमा की स्थापना कराई गई.

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