सतना में छठ पर्व की तैयारियां शुरू, इन घाटों में अर्घ्य दे सकेंगी व्रतियां

विकाश पाण्डेय/सतना. इस साल छठ का पावन पर्व 17 नंबर से नहाय खाय की परंपरा से शुरू होगा, जो 20 नवंबर को व्रतियों द्वारा सुबह सूर्य भगवान को अर्घ्य देकर व्रत का पारण होगा. मुख्यता बिहार में धूम – धाम में से मनाया जाने वाला यह पर्व अब सिर्फ बिहार ही नहीं देश के कई हिस्सों में मनाया जाने लगा है. सतना शहर में भी छठ पर्व को लेकर तैयारियां तेज हैं, शहर के प्रमुख जलाशय, घाट, तालाब में घाटों की साफ़ सफाई की जा रही है, क्योंकि छठ पर्व में जलाशय में स्नान करके ही व्रत की शुरुआत और तीसरे दिन सुबह भगवान सूर्य के अर्घ्य देकर वृत का समापन किया जाता है

छठ पूजा का पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन सूर्यदेव और षष्ठी मैया की पूजा की जाती है. साथ ही इस दिन शिव जी की पूजा भी की जाती है. सतना में रहने वाले बिहार के अमित कुमार ने बताया कि सतना संतोषी माता मंदिर के तालाब में हजारों की संख्या में छठी माता का व्रत रखने वाली छठियां आती हैं और यहां स्नान और अर्घ्य देती हैं. अमित ने बताया की यहां तकरीबन 20 हजार लोग छठ पर्व के दौरान आते हैं जिनमें बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड के लोग तो होते ही हैं बड़ी संख्या में सतना शहर के स्थानीय लोग भी आते हैं जो माता छठी का व्रत विधि पूर्वक रहतीं हैं

सतना के इन घाटों में होगी छठ पूजा
छठ पूजा में जलाशय का विशेष महत्व होता है, क्योंकि घाटों में स्नान करके ही भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. सतना के संतोषी माता मंदिर तालाब , जगतदेव तालाब, करही तालाब सहित सतना नदी के तट पर इस बार अर्घ्य दिया जायेगा.

4 दिनों तक रहेगी डाला छठ की धूम

प्रथम दिन नहाय खाय

नहाय खाय से छठ पूजा की शुरुआत होती है. इस दिन व्रतियां सब से पहले नदी में स्नान करती हैं. और इसके बाद सिर्फ एक समय का ही खाना खाती हैं जिसे नहाय- खाय कहा जाता है.

दूसरे दिन – खरना
छठ पूजा का दूसरा दिन खरना कहलाता है. इस दिन विशेष भोग तैयार किया जाता है. और शाम होते ही मीठा भात और लौकी की खिचड़ी खाई जाती है और इसे खाने के बाद ही व्रत की शुरुआत होती है.

तीसरे दिन- संध्या काल का अर्घ्य होता है
छठ पूजा में तीसरे दिन सबसे प्रमुख होता है इस दिन शाम के समय भगवान सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है और बांस की एक टोकरी में फल, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि से अर्घ्य के सूप को सजाया जाता है. इसके बाद, व्रती अपने परिवार के साथ मिलकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं और इस दिन डूबते सूर्य की आराधना की जाती है.

चौथे दिन- उषा अर्घ्य के साथ व्रत का पारण होता है
चौथे दिन सूर्य उदय होते ही सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. और व्रत का पारण होता है ये अर्घ्य लगभग 36 घंटे के व्रत के बाद दिया जाता है.

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