शिखा श्रेया/रांची. कहते हैं हर कामयाब पुरुष के पीछे किसी महिला का हाथ होता है. यह कहावत रांची में सच भी होती दिखी. रातू में रहने वाले नसीम अख्तर ने रांची कॉलेज से उर्दू में ग्रेजुएशन (2014-17) व ह्यूमैनिटीज (2017-19) में मास्टर्स डिग्री में टॉप करने के साथ चार गोल्ड मेडल भी प्राप्त किए. लेकिन, यहां तक पहुंचना नसीम के लिए आसान नहीं था. कई बार तो नसीम को 10 KM तक कॉलेज जाने के लिए पैदल भी चलना पड़ा.
नसीम ने बताया कि कामयाबी के इस पायदान तक का सफर मेरे लिए इतना आसान नहीं था. क्योंकि, मेरे घर में आर्थिक तंगी बहुत थी. पापा किसान और मां गृहणी हैं. किसान के तौर पर उनकी आमदनी उतनी नहीं थी कि वह मेरे स्कूल की फीस भी भर पाएं, इसलिए शुरू से ही ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्च मैंने खुद उठाया है. स्कूल की फीस से लेकर कापी-किताब खर्च भी वहन किया.
रातभर जाग कर पत्नी बनाती थी नोट्स
नसीम बताते हैं कि घर की स्थिति देखकर पत्नी हमेशा मुझे कहती थी कि इन बुरे दिनों को आपको ही बदलना है. यह सिर्फ शिक्षा से ही संभव है. कई बार ऐसा होता था कि एग्जाम के समय रात में मुझे नींद आ जाती थी. तब वह मुझे उठा देती थी, कहती थी कि सोने से सफलता नहीं मिलती. पत्नी रातभर बैठकर मेरे नोट्स बनाती और मैं उस नोट्स की स्टडी करता.
पत्नी ने हमेशा किया मोटिवेट
साथ ही कई बार ऐसा होता था कि मेरे घर से रांची कॉलेज करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर है, तो पेट्रोल बचाने के लिए ऑटो से रातू रोड जाता था और वहां से पैदल कॉलेज कई बार जाता था. कभी लगता कि यह संघर्ष बहुत ज्यादा है पर पत्नी हमेशा मोटिवेट करती थी. कहती थी कि स्ट्रगल तो कुछ सालों का है, लेकिन अगर आप आज हार मानोगे तो पूरा जीवन पीछे चला जाएगा.
सुबह 5 बजे उठ जाता था
नसीम बताते हैं हर दिन सुबह 5:00 बजे उठना और लगातार रात के 2:00 बजे तक जागना, मेरी रूटीन रही है. आज भी मैं यह रूटीन फॉलो करता हूं. फिलहाल, अपने गांव के ही एक निजी स्कूल में प्राचार्य के तौर पर काम कर रहा हूं. मेरा सपना जेपीएससी निकालना या जेआरएफ-नेट की भी परीक्षा क्रैक करना है. मैं प्रोफेसर बनना चाहता हूं.
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FIRST PUBLISHED : February 25, 2024, 15:49 IST