रामकुमार नायक/रायपुर : सनातन धर्म में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी यानी सकट चतुर्थी का विशेष महत्व है. इस दिन तिल-गुड़ के गणेश बनाकर पूजन किया जाता है और तिल-गुड़ के लड्डुओं का भोग लगाया जाता है. इस दिन तिल-गुड़ भी दान करने का महत्व है. सकट चतुर्थी में सूर्योदय से चंद्रोदय तक व्रत रख कर चंद्रदेवता की पूजा की जाती है. यह व्रत संतान की समृद्धि के लिए किया जाता है. सनातन धर्म में भगवान गणेश जी को प्रथम पूजनीय माना जाता है. इनकी पूजा के बिना कार्य संपन्न नहीं होते हैं. नव वर्ष में माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी यानी सकट चतुर्थी 29 जनवरी को मनाई जाएगी.
पुत्र की दीर्घायु के लिए रखा जाता है यह व्रत
इसे तिल चतुर्थी, बड़ी चतुर्थी, माघी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. सकट चतुर्थी साल 2024 की पहली संकष्टी चतुर्थी होगी. संतान की सेहत, सफलता के लिए ये संकष्टी चतुर्थी व्रत खास माना जाता है ये बड़ी चतुर्थी मानी गई है. राजधानी रायपुर के ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार चतुर्थी तिथि को व्रत के उपयुक्त माना गया है. भगवान गणेश जी से संबंधित सकट चतुर्थी व्रत है. माह में दो व्रत मनाए जाते हैं. कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकटी चतुर्थी व्रत कहा जाता है और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता था. माघ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकटी चतुर्थी कहा जाता है.
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8.55 मिनट पर किया जाएगा परायण
छत्तीसगढ़ में इसे सकट चतुर्थी कहा जाता है. यह व्रत अधिकतर पुत्रवती माताएं अपने पुत्र की दीर्घायु जीवन, लंबी आयु की कामना, अनुकूल पारिवारिक जीवन के लिए रखा जाता है. इस व्रत में गणेशजी की पूजा की जाती है. रात में जब चंद्रदेव उदय होते हैं तब उन्हें अर्घ्य देकर व्रत का पारण करते हैं. चंद्र का उदय 8 बजकर 55 मिनट में होगा. जैसे ही चंद्र उदय होगा वैसे ही अपने अपने प्रथा परंपरा के हिसाब से तिल का पहाड़, लड्डू आदि के साथ पूजा करना चाहिए. इसे तिल चतुर्थी भी कहा जाता है इसलिए तिल युक्त जल और दूध से भगवान चंद्र देव को अर्घ्य देकर पूजा संपन्न की जाती है.
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FIRST PUBLISHED : January 29, 2024, 10:26 IST
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