संरा सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधित्व के अभाव पर ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों की ‘सामूहिक नाराजगी’ को साझा करते हैं: भारत

भारत ने कहा है कि वह ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों की उस ‘सामूहिक नाराजगी’ को साझा करता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उच्च स्तर पर इन देशों से संबंधित अहम मुद्दों पर उनकी कोई आवाज या प्रतिनिधित्व नहीं है।
भारत इन राष्ट्रों के साथ इस बात पर जोर दिया कि वैश्विक संकटों के प्रसार से निपटने के लिए एक अधिक प्रतिनिधित्व करने वाले यूएनएससी की जरूरत है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि राजदूत रुचिरा कंबोज ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था के कई पहलुओं में तत्काल सुधार की आवश्यकता है और इनमें से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद(यूएनएससी) में सुधार को एक महत्वपूर्ण और तत्काल प्राथमिकता के रूप में पहचाना गया।
कंबोज ने कहा, ‘‘समूहिक अपील के बावजूद, अब तक हमारे पास दिखाने के लिए कोई परिणाम नहीं है। ऐसा क्यों?’
‘सुरक्षा परिषद में समान प्रतिनिधित्व और इसकी सदस्यता में वृद्धि के सवाल पर’ बृहस्पतिवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा की वार्षिक बैठक को संबोधित करते हुए कंबोज ने कहा, ‘‘ ‘ग्लोबल साउथ’ के सदस्य के रूप में हम उसकी सामूहिक नाराजगी को साझा करते हैं कि उससे (ग्लोबल साउथ) से संबंधित चिंता के प्रमुख मुद्दों पर उच्च स्तर पर हमारी कोई आवाज नहीं है।’’

उन्होंने कहा कि 164 सदस्य देश यूएनएससी में सुधार पर वार्ता की बुनियाद के रूप में एक ठोस पाठ के लिए अपील करने में शामिल हुए हैं।
कंबोज ने कहा कि इतना ज़बरदस्त समर्थन इस बात पर ज़ोर देता है कि सुरक्षा परिषद में सुधार में किसी भी तरह की और देरी इसके प्रतिनिधित्व की कमी को बढ़ाएगी।उन्होंने कहा कि वैधता और प्रभावशीलता, दोनों के लिहाज से प्रतिनिधित्व एक अनिवार्य शर्त है। फिलहाल यूएनएससी में पांच स्थायी और 10 अस्थायी सदस्य देश हैं। अस्थायी सदस्य देशों का चुनाव दो-दो साल के कार्यकाल के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा किया जाता है।
पांच स्थायी सदस्य रूस, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और अमेरिका हैं और ये देश किसी भी प्रस्ताव पर वीटो कर सकते हैं।
कंबोज ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यूएनएससी में सुधार पर अंतर सरकारी वार्ता की शुरुआत के 15 वर्षों के बाद भी सदस्य देशों के बीच संवाद काफी हद तक एक-दूसरे के साथ बयानों के आदान-प्रदान तक ही सीमित है।

उन्होंने कहा, ‘‘पाठ पर कोई चर्चा नहीं। कोई समय सीमा नहीं और कोई निश्चित अंतिम लक्ष्य नहीं है। हम हर साल आते हैं, बयान देते हैं और खाली हाथ लौट जाते हैं।’’
ब्राजील, भारत, जापान और स्वयं समेत चार देशों के समूह (जी 4) की ओर से जर्मनी ने कहा कि सुधार की तात्कालिकता को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कहा जा सकता। सुरक्षा परिषद की वर्तमान संरचना समसामयिक भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने में नाकाम रही है और यह वर्तमान वैश्विक चुनौतियों से निपटने में प्रभावी नहीं है।
जी4 देशों ने कहा, ‘‘यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि, हमने बार-बार देखा है कि सुरक्षा परिषद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर खतरों में से कुछ को समय पर और प्रभावी तरीके से दूर करने के लिहाज से उम्मीदों पर खरा उतरने में असमर्थ रहा है।’’

जी4 देशों ने कहा, ‘‘इन दिनों, हम ऐसे संकटों के प्रसार का सामना कर रहे हैं, जो अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को प्रभावित करते हैं। पहले से कहीं ज्यादा, हमें अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने की अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए एक अधिक प्रतिनिधित्व वाले और अच्छी तरह से कार्य करने वाली सुरक्षा परिषद की आवश्यकता है। उस लक्ष्य की दिशा में प्रगति करना हमारी ज़िम्मेदारी है।’’
फ्रांस ने जी4 देशों को यूएनएससी का स्थायी सदस्य बनाने का समर्थन किया। संयुक्त राष्ट्र में फ्रांसीसी दूत निकोलस डी रिवियेर ने जोर देकर कहा कि पेरिस चाहता है कि सुरक्षा परिषद आज की दुनिया का इस तरह से नुमाइंदगी करे कि इसके प्राधिकार, वैधता और प्रभावशीलता को और मजबूत किया जा सके।
जी4 देशों ने रेखांकित किया कि आगामी ‘समिट ऑफ द फ्यूचर(भविष्य का शिखर सम्मेलन)’ सुरक्षा परिषद सुधार के मुद्दे पर ठोस परिणाम हासिल करने का एक अवसर है। संयुक्त राष्ट्र ने अगले साल सितंबर में होने वाले ‘समिट ऑफ द फ्यूचर’ को महत्वपूर्ण चुनौतियों पर सहयोग बढ़ाने और वैश्विक शासन में कमियों को दूर करने के लिए ‘पीढ़ी में एक बार मिलने वाला अवसर’ करार दिया है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *