इंदौर/राधिकाकोडवानी : पंचम निषाद के गुणीजान संगीत समारोह में कोलकाता से आये मल्यवान चटर्जी ने अपने शास्त्रीय गायन से रसिक श्रोताओं को आनंदित कर दिया. पहली सभा मे अपने गायन की शुरूआत के लिये उन्होंने राग झिंझोटी को चुना. इसमे उन्होंने विलंबित एक ताल मे निबध्द बडा ख्याल ‘अखियां जो हती’ सुनाया. मध्य लय तीन ताल के बोल थे ‘जाओ जाओ सौतन घर सैया’. एकताल मे द्रुत रचना ‘कानन सुंदर झनकार पडी’ भी इसी राग मे थी. अपने गायन का समापन एक भजन सुनाकर किया. इनके साथ तबले पर आशिष सेनगुप्ता ने और हार्मोनियम पर रचना शर्मा ने संगति की है. तानपूरे पर केदार मोडक ने साथ दिया.
इस दौरान गायक माल्यबन चटर्जी ने खास चर्चा में कहा कि सोशल मीडिया पब्लिसिटी के लिए उचित है लेकिन इसे आप गुरू नहीं मान सकते है. यहां से शास्त्रीय संगीत ही नहीं, संगीत सीखना मुश्किल है. शास्त्रीय संगीत को शास्त्र माना है, जिसे समझने के लिए गुरू की जरूरत तो पड़ेगी. बेहतर है पहले ही संगीत सीखना शुरू कर दे.
अब संगीत का रूप बदला
चटर्जी बताते हैं कि गुरूकुल पध्दति अच्छी है, इसमें कलाकारों को ज्यादा सीखने को मिलता है. हम लोग गुरू के पास जाकर सीखे और उनकी सेवा की. अब यह पध्दति कम होती जा रही है. शास्त्रीय संगीत में घराना मतलब घर है, ये एक स्ट्रक्चर है घराना में. एक बाइडिंग्स है. पहले के जमाने में इतना मीडिया नहीं था सुनने के लिए ज्यादा प्लेटफार्म नहीं थे तो घराना से ही उनकी पहचान होती थी. अब दौर बदल चुका है संगीत को हर कोई अपने हिसाब से संगीत को देखते है. सुनते हैं. नए प्रयोग करते है. इसलिए अब घरानों का प्रचलन भी कम हो गया है. आज कलाकार संगीत की तालीम लेकर उसे अपने अंदाज में प्रस्तुत करते है.
संगीतज्ञ परिवार से तुलना
वैसे तो कला साधक के लिए कला की साधना करना जरूरी है, उसे संगीत में आने वाले उतार-चढ़ाव से घबराना नहीं चाहिए. ये उतार-चढ़ाव ही कलाकार को मजबूत होते है. संगीतज्ञ परिवार होने के कारण फायदा मिलता भी है और नहीं भी मिलता है. क्योंकि परिवार के सदस्यों से तुलनाएं होती है. वहीं जिन कलाकारो का कोई नही होता. उनकी दिक्कत अलग होती है क्योंकि कलाकार संगीतज्ञ परिवार से नहीं है. उनकी तुलनाएं तो नहीं होती मगर आसानी से मंच नहीं मिल पाता.देश-विदेश में सैकड़ों संगीत के प्रोग्राम कर चटर्जी ने बताया कि अब शास्त्रीय संगीत का रंग बदल रहा है लोग इसे सुन रहे है. इसके लिए हर कलाकार ने मेहनत की ट्रेनिंग, वर्कशॉप और प्रोग्राम सब किए. मेरा मकसद शास्त्रीय राग संगीत की सांस्कृतिक विरासत और ज्ञान को बनाए रखना है ताकि राग संगीत का सटीक ज्ञान पूरी दुनिया में फैलाया जा सके. नए कलाकारों को फोकस्ड रहने और गुरु से संगीत सीखने की जरूरत है. इसकी गहराई को समझना जरूरी है तो ही नए प्रयोग किए जा सकेंगे.
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FIRST PUBLISHED : February 25, 2024, 20:29 IST