श्रीराम की ऐसी भक्ति, इस दंपति जोड़े ने शुरू की दांडी मार्च, जानें क्या है सोच 

भास्कर ठाकुर/सीतामढ़ी: हम में तुम में खड़ग खम्भ में, घट-घट व्यापे राम” यह पंक्ति भारत में आज भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके माध्यम से दिखाया जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम अपने भक्तों के साथ हमेशा हैं. इस पंक्ति से स्पष्ट होता है कि भगवान की किसी विशेष रूप या स्थान की आवश्यकता नहीं है, वे हम सभी के दिलों में बसे हुए हैं. यह विचार भारतीय संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण है और लोग इसे अपने आदर्श के रूप में मानते हैं. इसी कारण से जब राम जन्म भूमि का फैसला हुआ, तो यह त्योहार के रूप में विश्व भर में मनाया गया, और लोग खुशियों में लिपटे रहे.

कामेश्वर मिश्र और उनकी पत्नी, अवंतिका मिश्रा, अहिल्या स्थान के मुख्य पुजारी हैं और वे प्रभु श्री राम के मंदिर के उद्घाटन के समय उपस्थित रहने के लिए आयोध्या से दंड यात्रा पर निकल रहे हैं. वे बहुत खुश हैं क्योंकि लॉर्ड राम के मंदिर का निर्माण अब लगभग पूरा हो गया है और वे इसके उद्घाटन के समय मौजूद रहने के लिए बेताब हैं. इस यात्रा का एहसास और इस मंदिर के इतिहास में इस महत्वपूर्ण पल का साक्षी बना, उनके लिए बेहद खुशी के पल हैं.

दांडी यात्रा के दौरान लोगों का मिल रहा है सहयोग
पंडित कामेश्वर मिश्र और उनकी पत्नी 24 अक्टूबर को अहिल्या स्थान से दांडी यात्रा को प्रारंभ किया था और अभी दोनों माता सीता की नगरी सीतामढ़ी के पुपरी में हैं. इस दौरान न तो वे कुर्सी पर बैठते हैं और न ही बिस्तर पर सोते हैं. जमीन पर ही बैठते हैं और जमीन पर ही कुछ बिछाकर सो जाते हैं. उन्होंने बताया कि जिस तरह से प्रभु श्री राम को वनवास के समय लोगों का साथ मिला था, उसी तरह इस दांडी यात्रा में मुझे भी साथ मिल रहा है. यह सब प्रभु श्री राम की कृपा से हो रहा है. उन्होंने बताया कि प्रभु श्री राम को कई साल बाद न्याय मिला है. इसी खुशी में मन में यह विचार जागृत हुआ की दांडी यात्रा की यात्रा की जाए.

भारत को हिन्दू राष्ट्र किया जाएं घोषित
पंडित कामेश्वर मिश्र ने बताया कि उदेश्य यही है कि गौ हत्या बंद हो, भारत हिंदू राष्ट्र घोषित हो और सबसे मुख्य प्रभु श्री राम की ही तरह माता जानकी के जन्म स्थली पर एक भव्य मंदिर का निर्माण हो. ताकि इसकी ख्याति भी विश्व पटल पर हो, क्योंकि माता सीता के बिना राम अधूरे हैं और प्रभु श्री राम के बिना माता सीता अधूरी है. उनकी पत्नी ने बताया कि पत्नी का मूल धर्म है कि पति के दिखाए पथ पर चले. उनके सुख और दुख दोनों का साथी बने. जिस तरह से प्रभु श्री राम को वनवास होने पर माता सीता भी साथ गई थी. उसी तरह अपने पति के साथ सभी सुख-दुख को सहते हुए दांडी यात्रा कर रही हैं. जब प्रभु श्री राम माता अहिल्या का उद्धार करने खुद यहां आए थे तो हम लोग प्रभु के चरण में क्यों न जाएं. इस पुनीत कार्य से हमारा उद्धार भी होगा.

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