अनुज गौतम/सागर: ”बहुत कुछ मिला है, दरिया खंगाल के, लाया हूं इनसे मोती निकाल के…” एक कविता की ये पंक्तियां सागर के दामोदर अग्निहोत्री का परिचय कराने के लिए पर्याप्त हैं. उनके संग्रहालय में बुंदेलखंड की 2000 साल की लोक संस्कृति कुलांचे भर रही है. यहां मुगल और अंग्रेजों के जमाने के प्राचीन औजार, आभूषण, कलाकृतियां, वाद्य यंत्र, आजादी से पहले के समाचार-पत्र, ब्रिटिश कालीन का डाक टिकट, अंग्रेजों के हंटर का भी कलेक्शन है. उनका शौक ऐसा कि पहले इतिहास की पढ़ाई की फिर जिंदगी भर की पूंजी लगाकर घर में ही संग्रहालय बना लिया.
जुनून ऐसा कि चाय छोड़ दी
67 साल के दामोदर अग्निहोत्री अहमदनगर गोपालगंज के निवासी हैं. 30 साल से वह बुंदेली कला और संस्कृति को सहेजने में जुटे हैं. पढ़ाई के दौरान शुरू हुए शौक ने साल 2011 में संग्रहालय का रूप ले लिया. सत्यम कला एवं संस्कृति संग्रहालय को तैयार करने में दामोदर अग्निहोत्री के संघर्ष, समर्पण और त्याग भी दिखता है. क्योंकि वह निगम में एक छोटी सी पंप चालक की नौकरी करते थे. मामूली तनख्वाह होती थी, जिसमें उनके ऊपर पत्नी के साथ चार बच्चों की जिम्मेदारी थी. बच्चों को पढ़ाने, परिवार चलाने और शौक को पूरा करने के दौरान चाय भी उन्हें भारी पड़ रही थी, इसलिए 20 साल से उन्होंने चाय भी नहीं पी है. 30- 40 किलोमीटर तक की दूरी हमेशा साइकिल से ही तय करते रहे, यहां तक की वह अपने घर में कूलर, फ्रिज, टीवी जैसी कोई भी चीज खरीद कर नहीं लाए. हालांकि, इस सब में उनके परिवार का भी सपोर्ट मिला. अब दोनों बेटियों की शादी हो गई है. बड़े बेटे की नौकरी लग गई और छोटा पढ़ाई कर रहा है.
फंड की राशि से संग्रहालय का निर्माण
दामोदर अग्निहोत्री बताते हैं कि साल 2017 में रिटायरमेंट के बाद जो फंड मिला था, उसे उन्होंने अपने मकान के ऊपर 500 स्क्वायर फीट का हाल बनवाया और अब उसी में यह संग्रहालय तैयार किया है. जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग देखने आते हैं. यहां तक की विश्वविद्यालय की शोधार्थी छात्रों के लिए भी यह उपयोगी साबित हो रहा है. इस संग्रहालय में जो चीज उपलब्ध हैं, उनको धीरे-धीरे करके किताब का रूप भी दिया जा रहा है, अभी संग्रहालय और सर्वेक्षण नाम से एक पुस्तक का भी प्रकाशित की गई है.
नेपाल में प्रदर्शनी लगा चुके
बुंदेली विरासत को संवारने में जुटे दामोदर अग्निहोत्री 70 से ज्यादा प्रदर्शनी अलग-अलग स्थान पर लगा चुके हैं, जिसमें नेपाल का काठमांडू भी शामिल है. यह प्रदर्शनी पूरी तरह से निशुल्क रहती है. उनका कहना है कि आने वाली पीढ़ी अपनी पुरानी संस्कृति को न भूले, इसके लिए यह प्रयास कर रहे हैं.
बुंदेली संग्रहालय में खास
संग्रह में 125 साल पुराना सितार, 50 साल पुरानी नगड़िया, 100 साल पुराना ग्रामोफोन है. 2000 साल पुराने मिट्टी के सांचे में कांसे व अन्य धातुओं को ढालकर सिक्के बनाए जाते थे. पुराने जमाने वाला 100 साल पुराना मिट्टी का बर्तन, 80 साल पुराना तराजू, लकड़ी के बांट 100 साल पुराना मुखौटा इस पर मानव व जानवर की आकृति बनी है. 400 साल पुराना वाद्य यंत्र रमतूला खास है. नगर निगम से रिटायर्ड दामोदर ने बताया, जब कागज प्रचलन में नहीं था. तब तेंदू व पलाश के पत्तों पर फिल्मों के विज्ञापन होते थे. इन्हें गांवों में बांटे जाते थे. ये भी उनकी संग्रहालय की शोभा हैं.
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FIRST PUBLISHED : March 15, 2024, 10:56 IST