शॉर्ट सेलिंग को मंजूरी, लेकिन नेकेड सेलिंग बैन: जानें क्या है इन दोनों में अंतर, SEBI ने जारी किया सर्कुलर

नई दिल्ली1 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक

सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया यानी SEBI ने शुक्रवार को अपना नया सर्कुलर जारी किया। इसमें कहा कि भारत में सभी निवेशकों को शॉर्ट सेलिंग की मंजूरी होगी, लेकिन नेकेड शॉर्ट सेलिंग पहले की तरह बैन रहेगी। सभी स्टॉक्स में शॉर्ट सेलिंग की जा सकेगी।

सेबी के सर्कुलर में ये भी कहा गया है कि संस्थागत निवेशकों (इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स) को शॉर्ट सेलिंग करने से पहले यह जानकारी देनी होगी कि वह शॉर्ट सेल करने वाले हैं। इन निवेशकों को इंट्राडे में पोजीशन स्क्वायर ऑफ करने की अनुमति नहीं होगी।

शेयर को खरीदने के बाद बेचना या शेयर बेचने के बाद खरीदना। बाय-सेल या सेल-बाय की जब साइकिल पूरी हो जाती है तो उसे पोजीशन स्क्वायर ऑफ कहते हैं। सेम डे में जब इस प्रोसेस को किया जाता है तो इसे इंट्राडे स्क्वायर ऑफ कहते हैं।

शॉर्ट सेलिंग और नेकेड शॉर्ट सेलिंग में अंतर
शॉर्ट सेलिंग का मतलब उन शेयरों को बेचने से है जो ट्रेड के समय ट्रेडर के पास होते ही नहीं हैं। इन शेयरों को बाद में खरीद कर पोजीशन को स्क्वायर ऑफ किया जाता है। शॉर्ट सेलिंग से पहले शेयरों को उधार लेने या उधार लेने की व्यवस्था जरूरी होती है।

आसान भाषा में कहे तो जिस तरह आप पहले शेयर खरीदते हैं और फिर उसे बेचते हैं, उसी तरह शॉर्ट सेलिंग में पहले शेयर बेचे जाते हैं और फिर उन्हें खरीदा जाता है। इस तरह बीच का जो भी अंतर आता है, वही आपका प्रॉफिट या लॉस होता है।

वहीं नेकेड शॉर्ट सेलिंग उसे कहते हैं जब कोई ट्रेडर उन शेयरों को बेच देता है जो उसके पास नहीं होते। नेकेड शॉर्टिंग में, ट्रेडर शॉर्ट सेल के लिए शेयरों को न तो उधार लेता है न ही उधार लेने की व्यवस्था करता है। नेकड शॉर्ट अमेरिका जैसे देशों में भी बैन है।

सेबी के सर्कुलर से जुड़ी अन्य बड़ी बातें…

  • शॉर्ट सेल की मदद करने के लिए सिक्योरिटी लैंडिंग एंड बारोइंग (SLB) स्कीम है।
  • F&O सेगमेंट में ट्रेड होने वाली सिक्योरिटी में भी शॉर्ट सेलिंग कर सकते हैं।
  • ब्रोकर को हर दिन शॉर्ट पोजिशन से जुड़े आंकड़े स्टॉक एक्सचेंज को देने होंगे।
  • सेटलमेंट के समय सिक्योरिटी डिलीवरी में असफल रहने वाले ब्रोकर्स पर एक्शन।

सर्कुलर से मौजूदा ट्रेडर्स पर कोई भी असर नहीं पड़ेगा
CNBC आवाज से बात करते हुए सेबी के पूर्व ED जे एन गुप्ता ने कहा कि सेबी के इस सर्कुलर से मौजूदा ट्रेडर्स पर कोई भी असर नहीं पड़ेगा। हमारे यहां स्टॉक एक्सचेंज का जो मैकेनिज्म है उसमें सेटलमेंट पर शॉर्ट करने वाले हर आदमी को उसकी डिलीवरी लेनी ही होती है।

हमारे यहां T+1 सेटलमेंट है। यानी शॉर्ट सेलर की जिम्मेदारी है कि अगर उसने शॉर्ट सेलिंग की है तो कहीं ना कहीं से उधार लेकर लेंडिंग और बॉरोइंग मैकेनिज्म का यूज करके अपने कमिटमेंट को पूरा करे। वहीं, इंस्टीट्यूशनल शेयरहोल्डर्स के लिए ग्रॉस सेटलमेंट मैकेनिज्म है।

लेंडिंग और बॉरोइंग मैक्जिम क्या है?
लेंडर – लेंडर अपने पोर्टफोलियो से स्टॉक्स को उधार देकर एडिशनल इनकम जनरेट कर पाता है।
बॉरोअर – बॉरोअर्स शॉर्ट सेलिंग करने के लिए फिजिकल डिलीवरी लेने की बजाय लेंडर्स से स्टॉक्स उधार लेते हैं।

खबरें और भी हैं…

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *