सिमरनजीत सिंह/शाहजहांपुर: रात नहीं ख्वाब बदलता है, मंजिल नहीं कारवां बदलता है. जज्बा रखो जीतने का क्यूंकि, किस्मत बदले न बदले, पर वक्त जरुर बदलता है. इसी जज्बे के साथ काम करने वाली शाहजहांपुर की महिला मनीषा देवी जो आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं. स्वयं सहायता समूह बनाकर महिलाओं को सशक्त बनाने के काम ने उनको अलग पहचान दिलाई.
शाहजहांपुर शहर के गांव चौडेरा की रहने वाली मनीषा देवी जिसके चार बच्चे हैं और पति अजय पाल मजदूरी कर जैसे तैसे पालन पोषण कर रहे थे. परिवार की आर्थिक स्थिति लगातार खराब होती जा रही थी. जिसके बाद मनीषा देवी ने खुद घर चलाने का जिम्मा संभाला और उसने वर्ष 2017 से 2020 तक नेटवर्क मार्केटिंग कंपनी का काम किया. कंपनी की ओर से वह दवाओं को सप्लाई करने का काम करती थी लेकिन इससे होने वाली कमाई से घर का खर्चा चला पाना आसान नहीं था. जिसके बाद मनीषा ने अपना काम करने के बारे में सोचा.
खुद के साथ महिलाओं को भी बनाया सशक्त
वर्ष 2020 में मनीषा देवी ने नेटवर्क मार्केटिंग के काम को छोड़कर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन को ज्वाईन कर लिया और 12 महिलाओं के साथ मिलकर एक समूह बनाया. मनीषा देवी खुद समूह सखी के पद पर कार्यरत हो गई. उसके बाद मनीषा देवी ने महिलाओं को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाने का बीड़ा उठा लिया. मनीषा देवी घर-घर जाकर महिलाओं को जागरूक करती रही और उनको समूह बनाकर छोटी-छोटी बचत कर अपना रोजगार करने के लिए प्रेरित किया. मनीषा देवी की यह मेहनत रंग लाई और उसने अपने गांव में 30 समूह बनाकर करीब 400 महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया है. जो आज अपने पैरों पर खड़ी हैं.
खुद चलाती है सिलाई का छोटा कारखाना
मनीषा देवी अपने स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं को सिलाई का काम दे रही हैं. मनीषा ने अपने घर पर ही करीब 10 सिलाई की मशीन लगाई हैं. यहां उनके समूह से जुड़ी हुई महिलाएं आकर उनके साथ पैंट-शर्ट, जैकेट और कुर्ती बनाने का काम करती हैं. मनीषा देवी का कहना है कि उनके साथ जुड़ी हुई सभी महिलाएं हर महीने 8 से 10 हजार रुपए की कमाई कर रही है. उनके यहां कारखाने में तैयार होने वाले कपड़े आसपास के जिलों में सप्लाई होते हैं और कुछ दुकानदार तो उनके घर से ही आकर थोक रेट पर कपड़े खरीद कर ले जाते हैं.
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FIRST PUBLISHED : January 10, 2024, 21:31 IST