शादी में इस पत्थर की पूजा के बिना मंडप में नहीं बैठ सकती दुल्हन!,जानें मान्यता

आदित्य आनंद/गोड्डा.हिंदू धर्म में बेटी की शादी में चाक पूजन की एक खास परंपरा होती है. माना जाता है कि जब तक इस रस्म में कुम्हार के चाक की पुजा नही होती है, तब तक बेटी की शादी नही होती है. यह रस्म शादी के दिन ही शाम के समय होता है. जिस दिन बारात आती है. चाक पूजन के लिए घर से लड़की और उनके परिवार के लोग गाजे बाजे के साथ नाचते झूमते कुम्हार पंडित के घर पहुंचते है. कुम्हार पंडिताइन इस रस्म को लड़की से नियम पूर्वक कराने में मदद करती है. चाक पूजन के बाद घर की पांच विवाहित महिला के साथ लड़की और पंडिताइन के बालों को सटा कर उसपर पानी डाला जाता है. फिर उस पानी को मिट्टी के बर्तन में पानी को एकत्रित किया जाता है. इस पानी को घर लाकरलड़की को स्नान काराकर शुद्ध कराया जाता है. लड़की मंडप पर शादी के लिए बैठती है.

गोड्डा के महागामा की पंडिताइन सावित्री देवी ने कहा कि बेटी की शादी में यह रस्म काफी महत्वपूर्ण होती है. जिसमें, मिट्टी के बर्तन बनाने वाले चाक की पूजा की जाती है. पूजा करने के बाद लड़की चाक के पांच फेरे लगाती है. पांचों फेरे में पंडिताइन से गले लगाती है.

पूजा में उपयोग होने वाला सामन
इस रस्म के पूरे होने के बाद लड़की के साथ पांच रिश्तेदार मिलकर अपने-अपने बालों को एक साथ मिला कर पंडिताइन उसे बाल में पानी डालती हैं. गिरते हुए पानी को एक छोटे बर्तन में एकत्रित किया जाता है. उस पानी के साथ बारात में लड़के के द्वारा लाए गए पानी को मिला कर लड़की को नहलाया जाता है.इसके बाद लड़की को मंडप के लिए शादी में बिठाया जाता है.पंडिताइन ने बताया कि इस पूजा में चाक पर मैदा से बनाए गए घोल को लगा कर उसमें सिंदूर का पांच टीका लगाया जाता है. फिर पान- सुपाड़ी, लड्डू, घांस, अरवा चावल, सिंदूर के साथ चाक की पूजा होती है.

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