शादियों में शेरवानी और कुर्ता-पजामा ने ले ली राजा महाराजा के इस पोशाक की जगह

आशुतोष तिवारी/रीवा:पूर्व-वैदिक काल से ही भारत में कपड़े पहनने का इतिहास अद्वितीय रहा है. उस दौरान भारत में बिना सिले कपड़े पहने जाते थे, लेकिन समय बदलने के साथ ही ऐसे कपड़ो की शुरुआत हुई जिसे बांध कर पहना जाने लगा. जामा जोड़ा भी एक ऐसा ही वस्त्र था. 16वीं शताब्दी में इस वस्त्र की शुरुआत हुई. तब से लेकर 1980 और 90 के दशक तक शादियों में जामा जोड़ा ही पहना जाता था. अभी भी पुराने ख्याल के लोग या शादी को अलग बनाने के लिए जामा जोड़ा का इस्तेमाल करते है. लेकिन बदलते दौर और रोजाना बदलते हुए ट्रेंड के अनुसार शादियों में पहले जाने वाले विशेष वस्त्र जामा जोड़ा की जगह शेरवानी और कुर्ता पजामा ने ले ली है. रीवा के व्यापारी सोनू कचेर बताते है कि अभी भी मार्केट में ऐसे लोग हैं जो पुराने लिबास जामा जोड़ा की सिलाई करते हैं.

शेरवानी के दौर की शुरुआत
रीवा के व्यापारी सोनू कचेर ने कहा कि हर व्यक्ति की शादी जीवन में एक ही बार होती है. इसलिए दूल्हा यही चाहता है की शादी में वह बेहतर दिखाई दे. इसके लिए तरह-तरह के पोशाक पहने जाते हैं. पहले राजा महाराजा प्रत्येक दिन अपने शाही दरबार में जाने के लिए राजसी ठाठ बाठ और वेशभूषा में ही रहते थे. उन्ही को देखते हुए आम जनता को भी ऐसे कपड़े पहनने की चाहत होने लगी है. जामा जोड़ा और शेरवानी दोनो वस्त्र राजा महाराजाओं और मूल रूप से कुलीन और शाही दरबारियों द्वारा स्थिति और शक्ति के प्रतीक के रूप में पहनी जाती थी. समय के साथ, इसे समाज के अन्य वर्गों द्वारा अधिक व्यापक रूप से अपनाया जाने लगा. आज, शेरवानी आमतौर पर शादियों और अन्य विशेष अवसरों के दौरान सभी सामाजिक पृष्ठभूमि के पुरुषों द्वारा पहनी जाती है.

शादियों में कुर्ता पजामा का भी पहनते है दूल्हे
दूल्हे के द्वारा शादियों में अलग दिखने के लिए कुर्ता पजामा भी पहना जाने लगा है. इन दिनों उन दूल्हों के लिए जो शेरवानी नहीं पहनना चाहते है उनके लिए कुर्ता पायजामा सबसे आकर्षक और शानदार विकल्प है, कुर्ता पजामा न सिर्फ शादी बल्कि शादी से जुड़े के अन्य कार्यक्रमों के साथ धार्मिक त्योहारों जैसे विशेष अवसरों के लिए भी बिल्कुल उपयुक्त है. मध्यप्रदेश के रीवा शहर के शिल्पी प्लाजा मार्केट में दूल्हे के फैशन के लिए एक से बढ़ कर एक शानदार कुर्ता पजामा भी मिल रहे है. साथ ही यहां के मार्केट वेडिंग सीजन में शेरवानी भी मिल रही है. लेकिन वो लोग जो अब भी जामा जोड़ा पहनने की चाहत रखते है उनके लिए भी रीवा में बेहतरीन विकल्प है. रीवा में अभी भी ऐसे दर्जी है जो पुराने जमाने के पोशाक जामाजोड़ा की सिलाई करते है.

Tags: Local18, Madhya pradesh news, Rewa News

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *