उत्तराखंड का उच्च हिमालय क्षेत्र बेशकीमती जड़ी बूटियां की खान है. यहां कई ऐसी दुर्लभ जड़ी बूटियां पाई जाती हैं, जो किसी और अन्य क्षेत्र में नहीं पाई जाती हैं. इनके कई औषधीय लाभ भी हैं. इन जड़ी बूटियां में किलमोड़ा, सिलफड़ी, ब्रह्मकमल, बनककडी आदि शामिल हैं, ये दुर्लभ होने के साथ बेशकीमती भी होती हैं. इनकी बाजार में काफी मांग है.
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मीठे विष के पौधे भारत के हिमालयी राज्यों में 3400 से 4500 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में मिलता है. वनस्पति वैज्ञानिकों के अनुसार भारत में मीठा विष की 28 प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं. इनमें से कई जहरीली भी हो सकते है. मीठाविष का प्रयोग खांसी, बुखार, गले के टॉन्सिल को ठीक करने के लिए किया जाता है. इसकी बाजार में भी काफी डिमांड रहती है.
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सिलफाड़ी हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाला औषधीय पौधा है. यह तीन हजार मीटर से लेकर 5200 मीटर तक की ऊंचाई वाले इलाकों में उगता है. यह अपने नाम के अनुरूप कार्य करता है अर्थात सिलफाड़ी यानी कि शिला को फाड़ने वाला, सिलफाड़ी का प्रयोग पथरी के उपचार के लिये किया जाता है. फरवरी से मार्च के समय में इस पौधे पर फूल खिलने शुरू हो जाते हैं. यह ठंडी जलवायु का पौधा है और पत्थरों या चट्टानों पर उगता है.
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ब्रह्मकमल हिमालय में पाया जाने वाला एक खूबसूरत औषधीय पौधा है. उत्तराखंड, हिमाचल में इसे देव पुष्प के नाम से भी जाना जाता है. यह भगवान शिव का प्रिय फूल भी माना जाता है. ब्रह्मकमल की मुख्य तीन प्रजातियां हिमालय में पाई जाती हैं, ब्रह्मकमल में एंटी हीलिंग प्रॉपर्टीज पाई जाती हैं. इसका प्रयोग घाव भरने से लेकर लिवर संबंधी बीमारियों में भी किया जाता है. 3600 मीटर से लेकर पांच हजार मीटर तक की ऊंचाई वाले इलाकों में आपको ब्रह्मकमल देखने को मिल जायेगा. इस फूल की खासियत यह है कि यह एक दिन में ही खिलकर तैयार हो जाता है.
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बनककड़ी हिमालय में पाई जाने वाली आम लेकिन खास जड़ी-बूटी है. यह 2400 मीटर से लेकर 4000 मीटर तक की ऊंचाई वाले इलाकों में उगती है. वर्तमान में कई किसान इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं. वर्तमान में एक हजार से लेकर पंद्रह सौ रुपये प्रति किलो तक इसका दाम है. बनककड़ी की तासीर गर्म है, साथ ही यह कड़वी भी होती है. इसमें पाये जाने वाले औषधीय गुणों के कारण यह खुजली से निजात दिलाने, पेट के कीड़े मारने में कारगर है.
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किलमोड़ा का पौधा एंटी डायबिटिक, एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी वायरल और एंटी बैक्टीरिया गुणों से भरपूर है. इस पौधे को वनस्पति विज्ञान में बेस्वेरीज बरबेरिस के नाम से और आम भाषा में किरमोड़ा (दारुहल्दी) के नाम से जाना जाता है. भारत में इसकी 50 से ज्यादा प्रजातियां हैं. वहीं उत्तराखंड में इसकी 28 से 30 प्रजातियां पाई जाती हैं. किलमोड़ा हिमालय के 1800 से लेकर 2500 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में पाया जाता है.
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