शरद पूर्णिमा के दिन होती है महर्षि वाल्मीकि जयंती, जानें नाम से जुड़ा रहस्य

प्रवीण मिश्रा/खंडवा. ऋषि महर्षि वाल्मीकि की जयंती शरद पूर्णिमा पर मनाई जाती है. इस दिन रामायण लिखने वाले आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की पूजा होती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, वाल्मीकि जयंती अश्विन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, जो इसी महीने शरद पूर्णिमा के दिन 28 अक्टूबर दिन शनिवार को मनाई जाएगी.

वाल्मीकि नाम कैसे पड़ा
पंडित राजेश पाराशर ने बताया कि नारद पुराण के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि की नारद मुनि से मुलाकात उनके लिए जीवन बदलने वाली घटना बनी थी. इसके बाद उन्होंने भगवान राम की पूजा करने का फैसला किया और कई सालों तक तपस्या में लीन रहे. उनकी भक्ति इतनी अडिग थी कि उनके शरीर पर दीमकों ने बांबी बना ली थी. जिसका हिंदी अर्थ वाल्मीकि होता है. इस घटना के बाद से ही उनका यह नाम पड़ा.

क्यों मनाते है वाल्मीकि जयंती?
पंडित जी ने बताया कि त्रेता युग में जन्मे महर्षि वाल्मीकि की याद में इस दिन को वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाया जाता है. महर्षि वाल्मीकि का पूरा जीवन बुरे कर्मों को त्यागकर अच्छे कर्मों और भक्ति की राह पर चलने का मार्ग प्रशस्त करता है. इसी महान संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है.

भंडारे का भी होता है आयोजन
इस मौके पर कई जगह शोभायात्रा भी निकाली जाती है और इस दिन महर्षि वाल्मीकि  के मंदिरों में भंडारे का आयोजन भी किया जाता है. बता दें कि हिंदू धर्म में रामायण को प्रमुख महाकाव्य के रूप में जाना जाता है. महर्षि वाल्मीकि ने ही संस्कृत में रामायण की रचना की थी. वाल्मीकि जयंती के दिन महर्षि वाल्मीकि की पूजा की जाती है.

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