शतरंज को बढ़ावा देने के लिए खुद पर लगाया 10 साल का बैन, आज इनके शिष्य दुनियाभर में लहरा रहे परचम

धीरज कुमार/किशनगंज: आज किशनगंज में शतरंज को लेकर अगर दीवानगी है तो इसके पीछे एक व्यक्ति की मेहनत और समर्पण है. जिले के रुईधाषा के रहने वाले शंकर दत्ता पेशे से बैंक कर्मी थे. 1974 मैं उन्होंने अपने भाई से शतरंज खेलना सीखा. उसके बाद वह अपने आस-पास के लोगों को किशनगंज में शतरंज सीखना शुरू किया. कभी किसी चाय वाले को पकड़ के, कभी किसी ठेले वाले को, कभी किसी अंडे बेचने वाले को शतरंज खेलना सिखाना शुरू किया. आज 100 से ज्यादा बच्चे स्टेट, 50 से ज्यादा नेशनल और 5 से ज्यादा एशिया में  अपना दमखम दिखा चुके हैं.

दूसरे के लिए खुद छोड़ा शतरंज खेलना

लोकल-18 बिहार से बात करते हुए शंकर दत्ता ने बताया कि अपने भाई से शतरंज सीखने के बाद उन्होंने किशनगंज में इसकी शुरुआत की. शुरुआत में लोग मजाक भी उड़ाते थे. इस खेल का. बहुत कठिनाई हुई. इस सफर को यहां तक पहुंचने में कोई रुचि नहीं लेता था. लोग शतरंज तो खेलते थे पर नियम से अनभिज्ञ थे. हमने उन्हें शतरंज के अंतरराष्ट्रीय नियमों से वाकिफ कराया. फिर छोटे-छोटे टूर्नामेंट करना शुरू किया. तो लोगों ने कहा कि तुम तो इस खेल में माहिर हो तुम जीत जाओगे. हम लोगों का क्या होगा? इस पर उन्होंने शतरंज खेलना ही 10 साल तक छोड़ दिया. फिर जाकर 1996 में किशनगंज में जिला शतरंज की कमेटी गठित हुई और वह इस कमेटी के फाउंडर है. अभी भी लगातार उनके मार्गदर्शन में कमेटी चल रही है. वह महासचिव है.

शुरुवात में 4 लोगों से प्रतियोगिता हुई शुरू

उत्तर भारत में क्रिकेट को लेकर लोग रुचि रखते हैं उतना शतरंज के लिए नहीं. जब शुरुआत की थी तो चार लोगों से टूर्नामेंट होता था. आज हर साल 300 से ज्यादा बच्चे भाग ले रहे हैं, जो की बहुत बड़ा बदलाव का संकेत है. हमारी टीम आज भी किशनगंज के हर स्कूल में जाकर मुफ्त में बच्चों को शतरंज का प्रशिक्षण निशुल्क दे रही है. आज किशनगंज का बच्चा-बच्चा शतरंज से वाकिफ है. किशनगंज के 100 से ज्यादा बच्चे स्टेट लेवल शतरंज का गेम खेल चुके हैं. वही 50 से ज्यादा नेशनल लेवल और 5 से ज्यादा एशिया में भी अपना दमखम दिखा चुके हैं.

शतरंज को फैलाने के लिए 10 साल तक टूर्नामेंट में नहीं लिया हिस्सा

किशनगंज के हर घर में शतरंज पहुंचने वाले शंकर दत्ता ने जब टूर्नामेंट की शुरुआत करवाई तो कई लोगों ने खेलने से इनकार कर किया. लोगों ने शंकर दत्त से कहा कि तुम तो इस खेल में माहिर हो तुम ही जीत जाओगे, तो हमारा क्या होगा फिर? फिर उन्होंने साथियों से वादा किया कि हम 10 साल तक शतरंज को हाथ नहीं लगाएंगे, लेकिन शतरंज को घर-घर तक पहुंचाएंगे.बिहार में प्रदेश स्तर की हुई टूर्नामेंट में किशनगंज के ही मुकेश कुमार ने पूरे प्रदेश में दूसरा स्थान लाया, जो कि अपने आप में किशनगंज जैसे जगह से ऐसा प्रदर्शन करना काबिले तारीफ है.

किशनगंज शतरंज संघ में 88 लोग हैं शामिल

शंकर दत्ता बताते हैं की शुरुआत के दिनों में लोगों से चंदा मांग मांग कर शतरंज का टूर्नामेंट कराते थे. सोच यही थी कि किसी भी बच्चे से ₹1 नहीं लेना है. निशुल्क प्रशिक्षण देना है. क्योंकि उस समय ज्यादातर बच्चे गरीब तबके के हुआ करते थे. फिर जाकर 1996 में जब किशनगंज में शंकर दत्ता के नेतृत्व में जिला शतरंज संघ की स्थापना हुई. आज इस कमेटी में 88 लोग शामिल हैं.

इन्होंने किशनगंज का लहराया परचम

बिहार में होने वाली शतरंज प्रतियोगिता में हर साल किशनगंज के छात्र बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं. 50 से ज्यादा किशनगंज के छात्र राष्ट्रीय स्तर तक खेल चुके हैं. जिसमें कमल कर्मकार, आयुष कुमार, पलचीन जैन, मोहम्मद अमानूउल्लाह, रोहन कुमार, सौरभ कुमार, दिव्यांशु सिंह, धान्वी कर्मकार, सूरोनोय दास, मुकेश कुमार, श्रेया दास, श्रुतिका दास, अली दत्ता- नेशनल खेल चुकी है. इसके अलावा हाल ही में एशिया गेम्स में मुकेश कुमार ने शतरंज टूर्नामेंट में हिस्सा लिया था. इससे पहले चेतन दुग्गर ने भी एशियाई टूर्नामेंट खेला है.

किशनगंज के 10 खिलाड़ियों की रेटिंग 1500 से ज्यादा

किशनगंज के 10 से ज्यादा खिलाड़ियों की रेटिंग 1500 से ज्यादा है. जो अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है. किशनगंज जैसे शहर से उठकर राष्ट्रीय स्तर पर यह रिकॉर्ड बनाना काबिले तारीफ है. जिसमें कमल कर्मकार-1769, मुकेश कुमार-1584, रोहन कुमार सौरभ कुमार, दिव्यांशु सिंह इत्यादि खिलाड़ियों की रेटिंग वर्तमान में1500 से ज्यादा है.

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