नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला में पिछले कुछ सालों से महिला रचनाकारों की काफी पुस्तकें सामने आ रही हैं. गत वर्ष वर्ल्ड बुक फेयर में भी कई महिला रचनाकारों की पुस्तकें सामने आई थीं. इस साल भी मेला में 40 से अधिक लेखिकाओं की पुस्तकें विभिन्न विधाओं में प्रकाशित हुई हैं. इस दृष्टि से देखा जाए तो इस बार भी विश्व पुस्तक मेला में हिंदी की लेखिकाएं ही छाई रहीं. पुस्तक मेला में रोजाना किसी ना किसी स्टॉल पर किसी न किसी लेखिका की पुस्तक का लोकार्पण होता रहा, उन पर चर्चाएं हुईं. हिंदी की कई लेखिकाएं अपनी किताबों को हाथ में लिए लेखकों-पाठकों के साथ फोटो भी खिंचवाती देखी गईं. महिला लेखक अब साहित्य के बदले वातावरण और रंगढंग को पहचान गई हैं और उनमें अपनी राह बनाने के लिए बाजार के गुर भी सीख गई हैं.
ये कृष्णा सोबती और मंन्नू भंडारी की पीढ़ी नहीं है. इन्हें अब अपना साहित्य खुद बेचना और प्रचार करना है. हिंदी के प्रकाशकों ने इन लेखिकाओं की पुस्तकें छाप कर अपना बाजार बनाने और प्रचार करने का एक तरीका भी निकाला है. बहरहाल, इस बार पुस्तक मेल में कुछ लेखिकाओं की कई महत्वपूर्ण पुस्तक आई हैं जिनमें कहानी, कविता, उपन्यास और अनुवाद साहित्य भी शामिल है.
बुक फेयर में सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक स्त्रीवादी एक्टिविस्ट प्रीति सिन्हा द्वारा भगत सिंह पर संपादित पुस्तक रही जो गागर में सागर की तरह है. प्रीति ‘फिलहाल’ पत्रिका की संपादक हैं और यह पुस्तक भी उन्होंने ही प्रकाशित की है. यूं तो भगत सिंह पर कई किताबें हिंदी में प्रकाशित हुई हैं जिसे पुरुष लेखकों ने लिखा और संपादन किया है. लेकिन यह पहली ऐसी पुस्तक है जिसमें भगत सिंह के जीवन और साहित्य के बारे में और उन पर लिखे गए लेखों के बारे में एक समग्र जानकारी पाठक को मिल जाती है. इस तरह भगत सिंह का संपूर्ण व्यक्तित्व सामने आता है. दूसरी महत्वपूर्ण किताब दलित लेखिका कनक लता की रही जिन्होंने सावित्रीबाई फुले की जीवनी लिखी है. इसे वाम प्रकाशन ने छापा है.
पुस्तक मेला में स्त्री लेखकों का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य अनुवाद के रूप में सामने आया. यूं तो हिंदी में पुरुष लेखक अनुवाद कार्य अधिक करते रहे हैं. खासकर विदेशी साहित्य का. लेकिन अब हिंदी की लेखिकाओं ने इस धारणा को तोड़ दिया है और इस वर्ष कई लेखिकाओं ने कई महत्वपूर्ण विदेशी साहित्य को अनूदित किया है. वरिष्ठ कवयित्री और अनुवादक प्रगति सक्सेना ने विश्व प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कार्ल युंग की पुस्तक का अनुवाद ‘चार आदिरूप’ नाम से किया है.
युवा कवयित्री रश्मि भारद्वाज ने 14 विदेशी कवयित्रियों की कविताओं के अनुवाद की एक पुस्तक संपादित की है. यह सेतु प्रकाशन से निकली है. हिंदी में संभवत: पहली बार किसी लेखिका ने इतनी विदेशी कवित्रियों की कविताओं के अनुवाद की पुस्तक संपादित की है. ये विदेशी कवित्रियां दुनिया की जानी-मानी कवित्रियां हैं. यूं तो हिंदी की कई लेखिकाएं विदेशी कवयित्रियों की कविताएं समय पर अनुवाद करती रही हैं लेकिन उनके पुस्तकाकार प्रकाशन की यह महत्वपूर्ण घटना है. विपिन चौधरी ने भी कुछ विदेशी कवित्रियों के अनुवाद की पुस्तक निकाली है जिसे पुस्तकनामा ने प्रकाशित किया है. पुस्तक मेला में अनुवाद की एक तीसरी महत्वपूर्ण पुस्तक 14 मराठी कवित्रियों के हिंदी अनुवाद की है. सुनीता डागा ने इन कविताओं का अनुवाद किया है और यह पुस्तक भी पुस्तकनामा ने प्रकाशित की है. चर्चित कथाकार नीलाक्षी सिंह ने एक नार्वेजियन उपन्यास का अनुवाद किया है जिसे सेतु प्रकाशन ने छपा है.नार्वे के प्रसिद्ध लेखक थारै य वेसोस के आईस पैलेस का अनुवाद ‘बरफ महल’ नाम से हुआ है.
वरिष्ठ कवयित्री शोभा सिंह का कविता संग्रह गुलमोहर प्रशासन से आया है. वाणी प्रकाशन से सविता सिंह का नया कविता संग्रह ‘वासना एक नदी का नाम है’ पुस्तक मेला में आया है. कवयित्री पंखुरी सिन्हा का ‘प्रेमिल बातें’, शैलजा पाठक का ‘कमाल की औरतें’, जसिंता करकेंटा का ‘प्रेम में पेड़ होना’, सपना भट्ट का ‘भाषा में नहीं’, पल्लवी त्रिवेदी का ‘जिक्रे यार चले’, अंकिता आनंद का ‘अब मेरी बारी’ के अलावा ऋतु त्यागी और निधि अग्रवाल के भी कविता संग्रह भी इस बार वर्ल्ड बुक फेयर में आए.
मनीषा कुलश्रेष्ठ का ‘वन्या’ और प्रत्यक्षा का नया कहानी संग्रह ‘अतर’ भी मेले में आया. लक्ष्मी शर्मा का ‘रानियां रोती नहीं हैं’ भी मेले में चर्चा का केंद्र बना. विभा रानी का कहांनी संग्रह ‘भरतपुर लुट गयो’ और श्रद्धा थवाईत का ‘पगडंडी’ भी सेतु प्रकाशन से आया. नीलिमा शर्मा, वंदना शुक्ला की भी किताबें आईं.
राजकमल प्रकाशन से सोनी पांडेय का ‘सुनो कबीर’ और उपासना के उपन्यास ‘जिंदगी एक स्क्रिप्ट भर’ ने खूब चर्चाएं बंटोरीं. प्रियंका ओम का पहला उपन्यास ‘साज बाज़’ प्रभात प्रकाशन से आया है. युवा लेखिका इरा टाक का उपन्यास ‘चौबीस छत्तीस जीरो वन’ भी मेले में आया. अणु शक्ति सिंह और तसनीम खान के उपन्यास ‘कितकित’और ‘हमनवाई न थी’ आया.
सुमन केसरी का नाटक हिडिम्बा और काजल ‘सूरी का पहेली’ विभा रानी का नाटक ‘मटन मसाला चिकेन चिली’ भी पुस्तक मेला में आया. नीलिमा पांडेय का ‘सफर में इतिहास’ नाम से एक किताब मेले में आई. युवा कहानीकार दिव्या विजय की डायरी ‘दराजों में बन्द ज़िंदगी’ आई. वरिष्ठ लेखिका रजनी गुप्त की आलोचना पुस्तक ‘कथा में हस्तक्षेप’ इसी मेले में आया.
इतनी किताबें मेले में आ तो जाती हैं पर उनका मूल्यांकन नहीं होता समीक्षाएं नहीं आती. प्रकाशक किताबें छाप देते हैं. उनकी रुचि चर्चा मूल्यांकन में नहीं. कुछ लेखिकाएं जुगाड़ कर लेती हैं उनकी चर्चा हो जाती हैं. ऐसे में वास्तविक लेखिकाएं पीछे रह जाती हैं.
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FIRST PUBLISHED : February 18, 2024, 17:35 IST