विशाल शाही किले को छोड़, कोठी में क्यों रहती थीं इस रियासत की राजकुमारी?

रिपोर्ट – आशुतोष तिवारी

रीवा. मध्यभारत में ऐसे कई किले हैं, जिनकी सुंदरता देश-दुनिया में मशहूर है. मध्य प्रदेश के खूबसूरत किलों की गिनती करें तो ग्वालियर के अलावा रीवा का किला भी खूबसूरत इमारतों में शुमार है. रीवा स्थित यह किला शहर का प्रमुख पर्यटन स्थल है. लेकिन क्या आपको पता है कि रीवा की एक ऐसी राजकुमारी रही हैं, जो इस भव्य शाही किले में नहीं, बल्कि यहां से दूर एक कोठी में रहती थीं. यह कोठी खास तौर पर राजकुमारी के लिए बनाई गई थी. पीले रंग की यह इमारत पीली कोठी के नाम से मशहूर है.

रीवा के इतिहासकार असद खान बताते हैं कि महाराजा वेंकट रमण सिंह जू देव की एक बेटी और दो बेटे थे. बड़े बेटे का नाम युवराज गुलाब सिंह और छोटे का नाम रावेंद्र रामानुज प्रताप सिंह था. बेटी सुदर्शन कुमारी थीं. बघेलखंड में बेटी को दादू भी बोला जाता था. महाराजा वेंकट रमण सिंह को अपनी बेटी यानी राजकुमारी सुदर्शन कुमारी से बहुत स्नेह था. वे चाहते थे कि राजकुमारी हर समय उनके करीब रहे. शादी के बाद भी बेटी दूर न जाए. इसलिए उन्होंने किले से दूर एक भव्य कोठी का निर्माण कराया. साल 1913 में कोठी का निर्माण कार्य शुरू हुआ. राजकुमारी की पसंद को देखते हुए इसका रंग पीला रखा गया, जिसके कारण इसे पीली कोठी कहते हैं. जब यह भव्य कोठी बनकर तैयार हुई, तो उस समय की सबसे खूबसूरत इमारतों में से एक थी. आज भी इसका रंग फीका नहीं पड़ा है.

सुदर्शन कुमारी को बेहद पसंद थी ये कोठी
इतिहासकार असद खान ने बताया कि इस कोठी को राजकुमारी सुदर्शन कुमारी के पसंद के हिसाब से बनाया गया था. यह कोठी दोमंजिला है. महल जब बनकर तैयार हुआ, उसके बाद इस पर पीला रंग चढ़ाया गया था. इस कोठी का मालिकाना हक आज भी रीवा राज परिवार के पास है. 100 साल पहले बनी कोठी का रंग आज भी नहीं बदला है. कोठी से लगा हुआ भव्य द्वार भी बनवाया गया था. यह द्वार अब भी मौजूद है. यह गेट अब शिल्पी प्लाजा की ओर खुलता है.

बीकानेर के महाराज से हुआ राजकुमारी का विवाह
रीवा की राजकुमारी सुदर्शन कुमारी का वर्ष 1906 में जन्म हुआ था. उनकी शादी बीकानेर के राजकुमार शार्दुल सिंह के साथ हुई थी. बाद में वो बीकानेर के महाराजा बने और सुदर्शन कुमारी महारानी. बाद के वर्षों में वह बीकानेर की राजमाता कहलाईं. सुदर्शन कुमारी के बेटे करणी सिंह मशहूर निशानेबाज थे और बाद में वो बीकानेर के महाराज भी रहे.

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