विवादों से रहा नाता, अब फिर यह शख्स दूसरी बार बना पाकिस्तान का नया राष्ट्रपति

इस्लामाबाद. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सह-अध्यक्ष आसिफ अली जरदारी शनिवार को पाकिस्तान के 14वें राष्ट्रपति चुने गए और दूसरी बार राष्ट्र प्रमुख बने. 68 वर्ष के जरदारी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के संयुक्त उम्मीदवार थे. जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी 75 वर्षीय महमूद खान अचकजई सुन्नी इत्तेहाद काउंसिल (एसआईसी) के उम्मीदवार थे. नेशनल असेंबली और सीनेट में उन्हें 255 वोट मिले जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी को 119 वोट मिले. संविधान के प्रावधानों के अनुसार नए राष्ट्रपति का चुनाव नेशनल असेंबली और चार प्रांतीय विधानसभाओं के नवनिर्वाचित सदस्यों के निर्वाचक मंडल द्वारा किया गया.

सिंध विधानसभा में जहां जरदारी की पीपीपी सत्ता में है, उन्हें सबसे अधिक वोट मिले, जबकि उन्होंने बलूचिस्तान विधानसभा में भी सभी वोटों पर कब्जा कर लिया. उन्होंने पंजाब विधानसभा में अचकजई को भी हराया. खैबर पख्तूनख्वा विधानसभा में, जहां एसआईसी/पीटीआई की सरकार है, अचकजई को जरदारी के खिलाफ सबसे ज्यादा वोट मिले. व्यवसायी से राजनेता बने जरदारी पाकिस्तान की दिवंगत प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के पति हैं. जरदारी निवर्तमान डॉ. आरिफ अल्वी की जगह लेंगे. जिनका पांच साल का कार्यकाल पिछले साल खत्म हो गया था. हालांकि वह तब से पद रहे क्योंकि नए निर्वाचक मंडल का गठन अभी तक नहीं हुआ है.

2008 से 2013 तक राष्ट्रपति रहे जरदारी दूसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने वाले पहले नागरिक भी होंगे. उनके रविवार को शपथ लेने की उम्मीद है. जबकि दूसरे उम्मीदवार अचकजई पश्तूनख्वा मिल्ली अवामी पार्टी (पीकेएमएपी) के प्रमुख हैं और सुन्नी इत्तेहाद काउंसिल (एसआईसी) के बैनर तले चुनाव लड़ रहे थे. जो जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ द्वारा समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवारों के शामिल होने के बाद प्रमुखता से उभरकर सामने आया था.

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कराची में एक सिंधी जमींदार, व्यापारी और राजनीतिक नेता हकीम अली जरदारी के घर 1955 में उनका जन्म हुआ था. आसिफ अली जरदारी ने 1987 में पूर्व राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी बेनजीर भुट्टो के साथ शादी की थी. जुल्फिकार को एक हत्या में कथित संलिप्तता को लेकर सैन्य शासक जियाउल हक के शासनकाल में 1979 में फांसी दे दी गई थी. बेनजीर की 2007 में एक आतंकवादी हमले में हत्या होने तक जरदारी अपनी पत्नी के तहत ही काम कर रहे थे. बेनजीर की हत्या के बाद, जरदारी को पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) को एकजुट और अपने नियंत्रण में रखने तथा तख्तापलट का इतिहास रखने वाले देश के राजनीतिक परिदृश्य में अपने लिए जगह बनाने की दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ा.

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