विधान सभा चुनाव 2023 – हास्य-व्यंग्य के 5 कवियों की चुनावी कविताएं

हाइलाइट्स

रफ़ीक शादानी, काका हाथरसी, शैल चतुर्वेदी, कैलाश गौतम और पॉपुलर मेरठी की कविताएं
“उठो कहिलऊ छोड़ो खिचरी मारो हाथ बिरियानी मा”

निर्वाचन आयोजन द्वारा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनावों की तारीखें घोषित कर दिए जाने के बाद अब औपचारिक तौर से चुनावी बिगुल बज चुका है. राजनीतिक दल अपने चुनावी तैयारियों में पहले से ही जुट गए थे. अब जनता को अपने हक का मतदान करने की तारीखें तय कर दी गई हैं. जनता निश्चित दिन जा कर अपना वोट देगी. उसके वोटों से ही विधायकों का चुनाव लड़ने वालों का भविष्य तय होगा और सरकारों का गठन होगा. पांच विधानसभाओं के इस चुनाव में तीन राज्य ऐसे हैं जहां की भाषा हिंदी है. यानी उन्हें हिंदीभाषी राज्य कहा जाता है- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान. हिंदी या कुछ अर्थों में हिंदुस्तानी में रचनाएं करने वाले हास्य-व्यंग्य के रचनाकारों ने चुनाव, मतदान के साथ वोटरों और नेताओं पर तरह तरह की टिप्पणियां की है. देखते हैं किसने क्या कहा है-

चुनाव को लेकर तंजिया रचनाओं की बात जब भी की जाती है तो रफीक शादानी का नाम तुरंत दिमाग में आ जाता है. इनकी रचनाओं का दायरा इस कदर है कि जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इनकी कलम से निकले शेरों के हवाले से विपक्ष पर हमला किया था. रफीक बहुत पढ़े-लिखे नहीं थे. उनकी रचनाएं भी हिंदी की बजाय अवधी में हैं. रफीक की एक रचना देखिए –

नेता लोगे घुमै लागे,
अपनी-अपनी जजमानी मा.
उठौ काहिलऊ, छोरौ खिचरी
मारो हाथ बिरयानी मा.
इहई वार्ता होति रही कल,
रामदास-रमजानी मा.
दूध क मटकी धरेउ न भईया,
बिल्ली के निगरानी मा.

एक और रचना में रफीक शादानी बताते हैं कि कैसे चुनाव के दौर में जनता का आदर बढ़ जाता है –

जब नगीचे चुनाव आवत हैं,
भात मांगव पुलाव पावत है.
जौने डगर पर तलुवा तोर छिल गवा है,
ऊ डगर पर चल कै रफीक, बहुत दूर गवा है.

हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रफीक शादानी की जिस कविता के एक शेर का हवाला दे कर विरोधियों पर हमला किया था वो भी कम रोचक नहीं है –

गायित कुछ है, हाल कुछ है.
लेबिल कुछ है, माल कुछ है.
ऊ जौ हम पे मेहरबान हैं.
भईया एमहन चाल कुछ है.

धारदार तंज के माहिर इस सादगीपसंद कवि को सुनने के लिए हमेशा श्रोताओं की भीड़ लग जाती थी. उन्ही की एक और व्यंग्य रचना देखिए –

हम ई मानित है मोहब्बत में चोट खाईस है,
जितना चिल्लात है ओतना चोटान थोड़े है.
चुनाव आवा तब देखे पड़ी नेताजी,
तोहरे वादे का जनता भुलान थोड़े है.

व्यंग्य का जिक्र चलने पर काका हाथरसी कैसे छूट जाएंगे. उन्होंने चुनावी राजनीति पर जोरदार तंज किया है. खासतौर से दल बदल करने वालों को निशाना बनाया है –

सत्य और सिद्धांत में, क्या रक्खा है तात?
उधर लुढ़क जाओ जिधर, देखो भरी परात
देखो भरी परात, अर्थ में रक्खो निष्ठा
कर्तव्यों से ऊँचे हैं, पद और प्रतिष्ठा
जो दल हुआ पुराना, उसको बदलो साथी
दल की दलदल में, फँसकर मर जाता हाथी।

अपनी एक अन्य रचना में काका हाथरसी फिर दल बदलुओं पर व्यंग्य करते हैं –

आए जब दल बदल कर नेता नन्दूलाल,
पत्रकार करने लगे, ऊल-जलूल सवाल.
ऊल-जलूल सवाल, आपने की दल-बदली,
राजनीति क्या नहीं हो रही इससे गँदली.
नेता बोले व्यर्थ समय मत नष्ट कीजिए,
जो बयान हम दें, ज्यों-का-त्यों छाप दीजिए.

अपनी खास शैली के मशहूर शैल चतुर्वेदी ने वोटरों को भी निशाने पर लिया है.

हे वोटर महाराज,
आप नहीं आये आखिर अपनी हरकत से बाज़
नोट हमारे दाब लिये और वोट नहीं डाला
दिखा नर्मदा-घाट सौंप दी हाथों में माला।

अमवसा का मेला, कचेहरी जैसी लंबी रचनाओं के अलाना बहुत से छिटफुट मारक दोहे लिख कर लोगों के दिलों पर राज करने वाले अवधी-भोजपुरी में लिखने वाले कैलाश गौतम की रचनाएं बहुत उम्दा हैं. उन्होंने भी चुनावी तैयारी को देख संजीदा तंज किया है –

जैसी होती है तैय्यारी वैसी ही तैय्यारी है,
तैय्यारी से लगता है जल्दी चुनाव की बारी है.
संतो में, मुल्लाओं में,
भक्तों की आवाजाही है.

समकालीन कवियों में पॉपुलर मेरठी का जवाब नहीं है. उनकी रचना पढ़ कर उनके खास अंदाज का ध्यान आ जाता है. इस रचना में मासूम बेटा दस्तखत करने लायक अक्षर ज्ञान वाले पिता से मंत्री बनने को कह रहा है –

कितनी दौलत है नेता कल्लन पर
उन के जैसे अमीर बन जाते
दस्तख़त तो तुम्हें भी आते हैं
अब्बा तुम भी वज़ीर बन जाते

पॉपुलर मेरठी बच्चे के इसरार तक ही नहीं रुकते बल्कि वे टिकट मांगने ही लगते हैं. तंजिया ही सही लेकिन उनके अंदाज में ये रचना सुनने पर लगता है कि टिकट मांगने में कितनी दीनता दिखानी पड़ती है –
मैं बेकरार हुं मुद्दत से मेंबरी के लिए

टिकट मुझे भी दिला दो एसेंबली के लिए
मैं एक उमर से हूं मुफलसी की चादर में
नहीं है रुखी भी रोटी मेरे मुकद्दर में
है मेरी कश्ती परेशानी के समंदर में
मैं एक बोझ हूं खुद अपनी फैमिली के लिए
टिकट मुझे भी दिला दो एसेंबली के लिए।

Tags: 5 State Assembly Elections in 2023, Literature, Poet

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *