विजयलक्ष्मी पंडित : क्यों उनका मुस्लिम युवक से प्यार नेहरू परिवार को नहीं हुआ स्वीकार

हाइलाइट्स

मोतीलाल नेहरू को ये संबंध बिल्कुल स्वीकार नहीं था, उन्होंने कहा कि ये शादी नहीं हो सकती
जवाहरलाल नेहरू ने इस मुस्लिम युवक को प्रधानमंत्री बनने के बाद मिस्र का राजदूत बनाया
गांधीजी इस युवक को वाक क्षमता और विद्वता के कारण खासा पसंद करते थे

यूं तो इलाहाबाद में मोतीलाल नेहरू (Motilal Nehru) का परिवार अपने आधुनिक ख्यालात और जीवनशैली के लिए जाना जाता था. लेकिन जब उनकी बेटी विजयलक्ष्मी पंडित ने अपने प्यार का ऐलान परिवार के सामने किया तो खलबली मच गई. क्योंकि पिता मोतीलाल नेहरू इसके खिलाफ थे. उन्होंने दो-टूक कह दिया कि ये शादी नहीं हो सकती. वो युवक जिससे विजयलक्ष्मी प्यार करती थीं, वो एक प्रखर, तेजतर्रार और पढ़ालिखा मुस्लिम युवक था. फिर आनन-फानन में विजय लक्ष्मी पंडित की शादी कहीं और कराई गई लेकिन उस मुस्लिम युवक से जवाहर लाल नेहरू के संबंध जरूर बने रहे. उसे मिस्र का राजदूत बनाया. हालांकि विजय लक्ष्मी पंडित भी कभी उसको भूल नहीं पाईं. शादी के बाद भी वो दोनों संपर्क में रहे.

विजयलक्ष्मी पंडित आजादी से पहले देश के सबसे बड़े वकील मोतीलाल नेहरू की बेटी थीं और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं.  आजादी के बाद वह सोवियत संघ में भारत की पहली राजदूत बनीं. फिर अमेरिका में उन्हें राजदूत बनाया गया. वह संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की पहली राजदूत भी बनीं. उनका जन्म 18 अगस्त 1900 को इलाहाबाद में हुआ था. 1921 में उनकी शादी काठियावाड़ के सुप्रसिद्ध वकील रणजीत सीताराम पंडित से हुई.

आजादी की लड़ाई में मोतीलाल नेहरू ही नहीं बल्कि उनका पूरा परिवार ही राष्ट्रवादी बनकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में शामिल हो गया.

विजयलक्ष्मी पंडित ने भी जोरशोर से आजादी की लड़ाई में शिरकत की थी. कई बार जेल गईं. उनके पति को भी आजादी की लड़ाई में शिरकत करने के लिए जेल में डाला गया. जहां उनका निधन हो गया.

19 साल की विजयलक्ष्मी को प्यार हो गया
दरअसल विजयलक्ष्मी पंडित जब 19 साल की थीं, तो उन्हें एक मुस्लिम युवक से प्यार हो गया. वो उससे शादी करना चाहती थीं, लेकिन नेहरू परिवार राजी नहीं था. ये मुस्लिम युवक कोई साधारण शख्स नहीं था, बल्कि बेहद प्रतिभाशाली और पढ़े-लिखे सैयद हुसैन थे. जो बंगाल के बहुत जहीन-शहीन परिवार से ताल्लुक रखते थे. जिनके संबंध बाद तक जवाहर लाल नेहरू से अच्छे बने रहे. यहां तक कि गांधीजी भी उनसे स्नेह करते थे.

विजयलक्ष्मी पंडित और जवाहरलाल नेहरू को एकजमाने में भारतीय राजनीति में ताकतवर भाई-बहन के रूप में देखा जाता था

वो मोतीलाल नेहरू के अखबार के संपादक थे
हुसैन ने अमेरिका में भारत की आजादी के पक्ष में बड़ा कैंपेन चलाया. नेहरू ने उन्हें मिस्र का राजदूत बनाया था. वह बंगाल के बहुत प्रतिष्ठित और समृद्ध परिवार से ताल्लुक रखते थे. उच्च शिक्षित थे. जब मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद से अंग्रेजी में ‘इंडिपेंडेंट’ के नाम से अखबार शुरू करना चाहा, तो उन्हें एक तेजतर्रार और समझदार एडिटर की जरूरत थी.  एडीटर के तौर पर उनकी तलाश हुसैन पर खत्म हुई.

हुसैन ने बहुत कम समय में “इंडिपेंडेंट” को तेजतर्रार अखबार का तेवर दे दिया. जिसकी विषय सामग्री ऐसी थी, जिसे देश के पढ़े-लिखे और समझदार लोग पसंद करने लगे. चूंकि ये अखबार प्रखर राष्ट्रवादी तेवर भी रखता था, लिहाजा ये ना केवल आंदोलनकारियों बल्कि कॉलेज में पढ़ रहे युवकों में भी खासा लोकप्रिय होने लगा.

हुसैन खुद संपादकीय लिखते थे और ये ऐसे होते थे कि हर कोई उनकी समझबूझ, भाषा और जानकारियों का कायल था. फिर हुसैन ने इस अखबार एक बढ़िया टीम तैयार की. मोतीलाल नेहरू ने उन्हें काम करने की पूरी आजादी दी.

गांधीजी ने संपादक के तौर पर सुझाया था उनका नाम

सैयद का व्यक्तित्व और काम ऐसा था कि उस समय देश के सभी बड़े नेता सिर्फ उन्हें जानते नहीं थे, बल्कि उनके कायल भी थे. यहां तक गांधी खुद उनसे बहुत स्नेह करते थे. जब मोतीलाल ‘इंडिपेडेंट’ के लिए संपादक तलाश रहे थे. तब गांधीजी ने ही उन्हें सैयद का नाम सुझाया. मोतीलाल की पेशकश पर सैयद तुरंत इलाहाबाद आ गए और अखबार के संपादक बन गए.

सैयद हुसैन इलाहाबाद में मोतीलाल नेहरू के अखबार “इंडिपेंडेंट” के संपादक बनकर आए. उन्होंने बहुत कम समय अखबार के तेवर में जबरदस्त बदलाव किया

सैयद हुसैन कलकत्ता में पैदा हुए थे. उनके पिता सैयद मुहम्मद जाने-माने विद्वान थे और तब बंगाल के रजिस्ट्रार जनरल थे. उनके बाबा नवाब लतीफ खान बहादुर ने बंगाल के शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम किया था.

उनके भाषण हर किसी को दीवाना बना देते थे
सैयद हुसैन बहुत मेधावी थे. खासकर विषयों पर उनकी पकड़ और असरदार भाषण देने की कला हर किसी को उनका मुरीद बना देती थी. 1909 में वो अमेरिका में कानून की पढ़ाई करने गए. इसके बाद इंग्लैंड में वो भारतीय छात्रों के बीच बहस और चर्चाओं में लोकप्रिय होने लगे. 1916 में उन्होंने तब के महान संपादक माने जाने वाले बीजी हार्निमन के अखबार ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ को ज्वॉइन किया. बॉम्बे के होम रूल लीग में भी उनकी सक्रियता गजब की थी. 1918 में होम रूल ने उन्हें सेक्रेटरी बनाकर इंग्लैंड भेजा.

अखबार को चर्चित बना दिया
जब हुसैन संपादक बने तो इंडिपेंडेंट चर्चित अखबार बन गया. उसकी हेडिंग्स ध्यान खींचने वाली और संपादकीय धारदार होते थे. तब विजयलक्ष्मी 19 साल की थीं. वह रोज अखबार के ऑफिस आती थीं. अखबार के संपादन के कामों को सीखने की कोशिश कर रही थीं. हुसैन 31 साल के थे. लेकिन कोई भी उनकी स्मार्टनेस, व्यक्तित्व और विद्वता का कायल हो सकता था.

हुसैन को बाद में जवाहरलाल नेहरू ने मिस्र में देश का पहला राजदूत बनाया. आज भी हुसैन के नाम पर मिस्र में एक सड़क का नाम है

विजयलक्ष्मी प्यार में पड़ गईं. हुसैन ने शुरू में इससे बचने की कोशिश की लेकिन लंबे समय तक कर नहीं पाए. विजयलक्ष्मी इस प्यार को लेकर इतनी गंभीर थीं कि वह हुसैन से शादी करना चाहती थीं. उन्होंने परिवार के सामने अपने प्यार को जाहिर कर दिया.

वो एक ऐसा समय था, जब दूसरे धर्म में शादी सोची ही नहीं जा सकती थी, लिहाजा नेहरू परिवार भी इसके पक्ष में नहीं था. हालांकि ये बात अलग थी कि मोतीलाल नेहरू का रहन-सहन किसी यूरोपीय परिवारों जैसा था. परिवार के सभी लोग अक्सर विदेश का सैरसपाटा करते थे. जब विजयलक्ष्मी अड़ी रहीं, तो मोतीलाल इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हुसैन के इलाहाबाद में रहने से हालात बेकाबू हो सकते हैं. लिहाजा उन्होंने हुसैन से अखबार और इलाहाबाद दोनों छोड़ने का अनुरोध किया.

हुसैन इंग्लैंड चले गए
उन दिनों विजयलक्ष्मी और हुसैन का अफेयर मीडिया में भी आया. 1920 में हुसैन ने इलाहाबाद छोड़ दिया. हुसैन खिलाफत आंदोलन का हिस्सा बनकर इंग्लैंड चले गए. वहां भारतीय स्वाधीनता की आवाज को बल देने लगे. लंदन में वो कांग्रेस के आधिकारिक प्रकाशन के संपादक बने. ब्रिटेन से फिर अमेरिका चले गए. जहां वो 1946 तक रहे.

विजयलक्ष्मी पंडित बाद में देहरादून में बस गईं. वो अगर देश की राजदूत बनीं तो राज्यपाल भी रहीं लेकिन भतीजी इंदिरा गांधी से उनके रिश्ते बहुत सहज नहीं रहे

अमेरिका में उनकी भाषण कला और बुद्धिमत्ता की खासी तारीफ की जाती थी. ‘लॉस एंजिल्स टाइम्स’ ने उन्हें टैगोर के बाद अमेरिका आने वाला अति विलक्षण भारतीय बताया, जबकि न्यूयॉर्क के फॉरेन पॉलिसी एसोसिएशन ने कहा, पांच सालों में हमारी कांफ्रेंसेज में जिन सैकड़ों लोगों ने लेक्चर दिए, उनमें कोई भी हुसैन जैसा ब्रिलिएंट नहीं था.

विजयलक्ष्मी की शादी मराठी ब्राह्मण बैरिस्टर से
नेहरू परिवार ने फिर तुरत-फुरत विजयलक्ष्मी के लिए योग्य वर की तलाश शुरू की. 1921 में महाराष्ट्र के एक ब्राह्मण बैरिस्टर रंजीत सीताराम पंडित से उनकी शादी कर दी. सीताराम बैरिस्टर ही नहीं, बल्कि विद्वान भी थे. उन्होंने कल्हण के महाकाव्य ‘राजतरंगिनी’ का अनुवाद संस्कृत से अंग्रेजी में किया. विजयलक्ष्मी के तीन बच्चे हुए.

अमेरिका में साथ देखे जाने लगे थे
नेहरू के पर्सनल सचिव एमओ मथाई ने अपनी किताब में लिखा, 1945 में हुसैन और विजयलक्ष्मी अमेरिका में साथ देखे जाने लगे. जब भारत आजाद हुआ तो नेहरू ने ही हुसैन को मिस्र का पहला भारतीय राजदूत बनाया. उसी दौरान विजयलक्ष्मी पंडित को सोवियत संघ का राजदूत बनाकर भेजा गया.

हुसैन ने कभी शादी नहीं की
हुसैन ताजिंदगी अकेले ही रहे. उन्होंने कभी शादी नहीं की. मिस्र में राजदूत रहने के दौरान लोग उनके रहनसहन के कायल थे. उन्हें 1949 में अमेरिका का राजदूत बनाने की घोषणा कर दी गई थी. इसी बीच मिस्र के होटल में हार्टअटैक से उनका निधन हो गया. वहां राजकीय सम्मान के साथ उन्हें विदाई दी गई. काइरो की एक सड़क का नाम भी उनके नाम पर रखा गया.

इंदिरा से रिश्ते रहे कटु
विजयलक्ष्मी पंडित के रिश्ते बाद में अपनी भतीजी इंदिरा गांधी से कटु हो गए. उन्होंने आपातकाल की आलोचना भी की थी. बाद में वो सार्वजनिक तौर पर भी इंदिरा की आलोचक रहीं. विजयलक्ष्मी बाद में देहरादून में रहने लगीं. उनकी तीन बेटियां थीं. जिसमें नयनतारा सहगल ने एक अच्छी लेखिका के तौर पर पहचान बनाई. 01 दिसंबर 1990 में उनका देहरादून में निधन हो गया.

Tags: Jawahar Lal Nehru, Love, Love affair, Love Story, Pandit Jawaharlal Nehru, Valentine Day

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *