विकसित देशों को अपूर्ण जलवायु प्रतिबद्धताओं को लेकर कॉप28 में समीक्षा का सामना करना पड़ सकता है

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दुनिया के सबसे वरिष्ठ जलवायु वैज्ञानिकों के संगठन ‘इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज’ (आईपीसीसी) के अनुसार, वैश्विक ताप में बढ़ोतरी को लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए वैश्विक हरित (ग्रीनहाउस) गैस उत्सर्जन को 2025 से पहले चरम पर ले जाना होगा और वर्ष 2030 तक इसे 43 प्रतिशत तक कम करना (2019 के स्तर की तुलना में) होगा।विकसित देशों से वैश्विक औसत (वर्ष 2050) से काफी पहले ‘नेट-शून्य’ का लक्ष्य हासिल करने और जितनी जल्दी हो सके ‘निवल नकारात्मक उत्सर्जन’ के लक्ष्य को हासिल करने का आह्वान भी वैश्विक स्टॉकटेक परिणाम का हिस्सा हो सकता है।

विकसित देशों के ऐतिहासिक उत्सर्जन ने कार्बन बजट को खत्म कर दिया और 2020 से पहले की अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफल रहे, इस तथ्य की स्वीकार्यता को पहले वैश्विक समीक्षा ‘ग्लोबल स्टॉकटेक’ (वैश्विक समीक्षा) के परिणाम में शामिल किया जा सकता है।
विकसित देशों की वर्ष 2020 के पहले की प्रतिबद्धताओं का संबंध उत्सर्जन में कमी करने से है जिसका संकल्प उन्होंने क्योटो प्रोटोकॉल और दोहा संशोधन के तहत पेरिस समझौता में लिया था।
अब तक का पहला ‘ग्लोबल स्टॉकटेक’ दिसंबर में दुबई में वार्षिक जलवायु वार्ता (सीओपी28) में समाप्त होगा। इसकी पहल ग्लासगो में 2021 में की गई थी।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की कार्यढांचा संधि (यूएनएफसीसीसी) ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें ‘वैश्विक स्टॉकटेक’ पर राजनीतिक प्रतिक्रिया के संबंध में देशों और गैर-पक्षीय हितधारकों द्वारा दी गई प्रस्तुतियों का सारांश है।

जलवायु नीति से जुड़ी विचारक संस्था ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ (आईआईएसडी) में नीति सलाहकार नेटली जोन्स ने कहा, ‘‘ रिपोर्ट में शामिल तत्व वार्ता के बारे में जानकारी देंगे, लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि कोई विशेष तत्व इसके अंतिम पाठ में शामिल होगा। संभावित निर्णय बिंदुओं की इस लंबी सूची में जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से इस्तेमाल से बाहर करना शामिल है।’’
यूएनएफसीसीसी रिपोर्ट के अनुसार, ‘वैश्विक स्टॉकटेक’ परिणाम के संभावित तत्वों में इस जानकारी का समावेश हो सकता है कि विकसित देशों के ऐतिहासिक उत्सर्जन ने कार्बन बजट को समाप्त करने का मार्ग प्रशस्त किया और ये देश वर्ष 2020 के पहले की अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में नाकाम रहे।
यह मान्यता कि विकसित देशों का 2030 तक उत्सर्जन पर काबू पाने का लक्ष्य अपर्याप्त है, यह (मान्यता) वैश्विक स्टॉकटेक के नतीजे में भी अपना स्थान बना सकती है।
जलवायु विज्ञान ‘कार्बन बजट’ को ग्रीनहाउस गैसों की उस मात्रा के रूप में परिभाषित करता है जिसे ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के एक निश्चित स्तर (इस मामले में 1.5 डिग्री सेल्सियस) तक उत्सर्जित किया जा सकता है।

विकसित देश पहले से ही वैश्विक ‘कार्बन बजट’ के 80 फीसदी से अधिक हिस्से की खपत कर चुके हैं जिसने भारत जैसे देशों के लिए भविष्य में कार्बन खपत के लिहाज से बहुत कम गुंजाइश छोड़ी है।
वैश्विक स्टॉकटेक से अपनी अपेक्षाओं के संबंध में ‘यूएनएफसीसीसी’ को भेजे गये प्रस्ताव में कई विकासशील देशों ने इस बात पर जोर दिया कि विकसित देशों की 2020 से पहले के लक्ष्य और इस दिशा में कार्यान्वयन में अंतर है और उनका 2030 और 2050 तक उत्सर्जन पर काबू पाने के लक्ष्य अपर्याप्त हैं।
दुनिया के सबसे वरिष्ठ जलवायु वैज्ञानिकों के संगठन ‘इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज’ (आईपीसीसी) के अनुसार, वैश्विक ताप में बढ़ोतरी को लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए वैश्विक हरित (ग्रीनहाउस) गैस उत्सर्जन को 2025 से पहले चरम पर ले जाना होगा और वर्ष 2030 तक इसे 43 प्रतिशत तक कम करना (2019 के स्तर की तुलना में) होगा।विकसित देशों से वैश्विक औसत (वर्ष 2050) से काफी पहले ‘नेट-शून्य’ का लक्ष्य हासिल करने और जितनी जल्दी हो सके ‘निवल नकारात्मक उत्सर्जन’ के लक्ष्य को हासिल करने का आह्वान भी वैश्विक स्टॉकटेक परिणाम का हिस्सा हो सकता है।

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