ओबीसी आयोग के अध्यक्ष जयप्रकाश हेगड़े ने गुरुवार को अपने कार्यकाल के आखिरी दिन दोपहर 2.45 बजे बेंगलुरु में विधान सभा पहुंचे और मीडिया को संबोधित करने से पहले सीएम सिद्धारमैया से मुलाकात की. उन्होंने कहा, “हमने रिपोर्ट सौंप दी है. सीएम ने कहा कि वो इसे अगली कैबिनेट में पेश करेंगे और फैसला करेंगे.”
सूत्रों का कहना है कि ये रिपोर्ट राज्य में सबसे बड़े वोटिंग ब्लॉक के रूप में लिंगायत संप्रदाय और अन्य पिछड़ी जाति वोक्कालिगा समुदाय के प्रभुत्व को चुनौती दे सकती है.
कर्नाटक के दो प्रभावशाली समुदाय वोक्कालिगा और लिंगायत ने इस सर्वेक्षण को खारिज करने की मांग की है. यहां तक कि वोक्कालिगा जाति से आने वाले राज्य कांग्रेस प्रमुख और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने भी पहले अपना विरोध व्यक्त किया था. लिंगायत नेताओं के प्रभुत्व वाली भाजपा भी इसके विरोध में है.
उपमुख्यमंत्री डी.के.शिवकुमार उस ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाले मंत्रियों में शामिल हैं, जिन्होंने समुदाय की ओर से मुख्यमंत्री से रिपोर्ट और उसके आंकड़ों को खारिज करने की मांग की है.
कर्नाटक के बीजेपी विधायक बसनगौड़ा पाटिल यतनाल ने कहा, “ये सर्वे वैज्ञानिक नहीं हैं. इससे लिंगायत और वोक्कालिगा नाराज हैं. हम इसका विरोध करेंगे. हम कांग्रेस सरकार से घर-घर जाकर इस सर्वे को दोबारा कराने का अनुरोध करेंगे. तब हम इसे स्वीकार करेंगे.”
कांग्रेस के लिंगायत और वोक्कालिगा नेताओं की आलोचना के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सुझाव दिया है कि रिपोर्ट पर पहले कैबिनेट में चर्चा की जाएगी. उन्होंने वादा किया कि यदि विसंगतियां हैं तो कानूनी सलाह और विशेषज्ञों की राय ली जाएगी.
वीरशैवा-लिंगायत समुदाय के शीर्ष निकाय ऑल इंडिया वीरशैवा महासभा ने भी सर्वेक्षण को अवैज्ञानिक करार देते हुए खारिज कर दिया है और नए सिरे से सर्वेक्षण कराने की मांग की है. इस निकाय के अध्यक्ष कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधायक शमनुरु शिकशानकरप्पा हैं. कई लिंगायत मंत्रियों और विधायकों ने भी सर्वेक्षण और उसके नतीजों का विरोध किया है, जिससे कांग्रेस सरकार की मुश्किल बढ़ सकती है.
सर्वे के दौरान 1 करोड़ 30 लाख परिवारों के 5 करोड़ 90 लाख लोगों से 54 सवाल पूछे गए. सर्वेक्षण का आदेश पहली बार 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने दिया था और परियोजना पर 169 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे. हालांकि रिपोर्ट 2017 में तैयार हो गई थी, लेकिन तकनीकी खामियों के कारण इसे स्वीकार नहीं किया गया और लगातार मुख्यमंत्रियों ने इसे स्वीकार करने में देरी की.
सर्वेक्षण का कार्य सिद्धरमैया के शासन के अंतिम साल 2018 में पूरा हो गया था, लेकिन रिपोर्ट को न तो स्वीकार किया गया, न ही सार्वजनिक किया गया.
कर्नाटक में जाति जनगणना एक नाजुक और पेचीदा मुद्दा है. वोक्कालिगा और लिंगायतों द्वारा विद्रोह का झंडा उठाने के साथ, ये निश्चित नहीं है कि कांग्रेस सरकार लोकसभा चुनाव से पहले इसे प्रकाशित करने को तैयार होगी या नहीं.