लीची का दुश्मन है यह कीट! एक बार पेड़ पर चढ़ जाए तो नहीं चख पाएंगे स्वाद

ऋतु राज/मुजफ्फरपुर. अगर आपके पास भी शाही लीची का बागान है, तो यह खबर आपके लिए ही है. दरअसल, मुजफ्फरपुर की शाही लीची देश- विदेश तक भेजी जाती है. लेकिन मौसम के उतार-चढ़ाव के कारण मुजफ्फरपुर के विश्व प्रसिद्ध लीची के बगीचों में स्टिंग बग कीट का अटैक तेजी से बढ़ने की आशंका है. इसे लेकर पौधा संरक्षण विभाग और राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक किसानों को सतर्क रहने का सुझाव दे रहे हैं. उनके अनुसार समय पूर्व प्रबंधन से इसका असर कम किया जा सकता है.

दरअसल, इस साल बारिश कम होने से लाल कीटों के झुंड लीची के कोमल पत्तों, डालियों और कलश को चट कर जा रहे हैं. इन कीटों की तेजी से बढ़ती संख्या को देख लीची उत्पादक किसानों के साथ वैज्ञानिक भी चिंतित हैं.

मान लें कृषि वैज्ञानिकों की सलाह
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुशहरी के निदेशक डॉ. विकास दास बताते हैं कि स्टिंग बग का अटैक काफी तेज होता है. यह पूरे पेड़ पर छा जाते हैं और कोमल पत्ते और कलियों का रस चूसने लगते हैं. इस कीट का रंग लाल होता है. वे बताते हैं कि अगर किसान को बगान में कीट दिखे तो तत्काल प्रबंधन के साथ वैज्ञानिकों से सलाह लेकर दवा का छिड़काव करें, ताकि कीट के प्रभाव को रोका जा सके. बीते दो-तीन वर्षों से यह कीट अधिक दिख रहा है. हालांकि, उन्होंने मंजर में फूल खिलने और परागण के समय कीटनाशक का छिड़काव नहीं करने की सलाह दी है.

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ऐसे करें कीट से बचाव

निदेशक डॉ. विकास दास बताते हैं कि कीटनाशक के छिड़काव से पहले किसान लीची के पौधे के मुख्य तने के नीचे वाले भाग में 30 सेमी चौड़ी प्लास्टिक की पट्टी लपेट दें और उस पर कोई चिकना पदार्थ ग्रीस आदि लगा दें. इससे कीट के शिशु पेड़ पर नहीं चढ़ पाएंगे. इसके अलावा लेम्डा सायहेलाेथिन का 5 प्रतिशत 1.5 एमएल और प्रोफानोफस 10 प्रतिशत एक एमएल प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. इसका छिड़काव 10 दिनों के अंतराल पर दो बार करें. इसके साथ ही इस पौधे के नीचे पॉलिथीन बिछा देने पर कीट के गिरने पर उसे एकत्र कर बागान से बाहर मिट्टी में दबा दें. ऐसा नहीं करने पर बाद में ये समस्या पैदा कर सकते हैं.

क्यों नुकसानदायक है स्टिंक बग
स्टिंक बग को बदबूदार कीट भी कहा जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम टेसारोटोमा जावानिका है. यह कीट झुंड में होते हैं और नए पत्ते-कलियों व फल से रस चूस लेते हैं. इससे फूल व फल पेड़ से टूट कर गिर जाते हैं. फल काले पड़ जाते हैं. इस कीट की मादा में अत्यधिक प्रजनन क्षमता होती है. वैज्ञानिकों की माने तो ये लीची को 80 प्रतिशत से भी अधिक नुकसान पहुंचाते हैं.

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