India’s maritime trade: लाल सागर में हूती विद्रोहियों की वजह से टेंशन काफी बढ़ी हुई है. लाल सागर में हूती विद्रोहियों के हमले ने वैश्विक कारोबार को प्रभावित करना शुरू कर दिया है. इस बीच जलमार्ग सचिव टी.के.रामचंद्रन की तरफ से भारत के लिए काफी राहत वाली खबर सामने आ रही है. पोर्ट, शिपिंग और जलमार्ग सचिव टी.के.रामचंद्रन ने बुधवार को कहा कि लाल सागर में चल रही समस्याओं का दुनिया के बाकी हिस्सों के साथ भारत के समुद्री व्यापार पर “कोई प्रभाव नहीं” पड़ेगा.
वैश्विक कंटेनर यातायात के 30 फीसदी के लिए महत्वपूर्ण इस जलडमरू मध्य में साल 2023 में विभिन्न घटनाओं के साथ तनाव बढ़ गया है. इसमें क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों द्वारा हमले और सैन्य युद्धाभ्यास शामिल हैं. बाब-अल-मंडेब (Bab-el-Mandeb) मध्य को अरबी में ‘आंसू का द्वार’ भी कहा जाता है.
एक जरूरी रूट है बाब-अल-मंडेब
बाब-अल-मंडेब एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग है जो लाल सागर और स्वेज नहर के माध्यम से भूमध्य सागर और हिंद महासागर को जोड़ता है. यह अफ्रीका को अरब प्रायद्वीप से अलग करता है. जलमार्ग सचिव यह पूछे जाने पर कि क्या लाल सागर के घटनाक्रम का भारत के समुद्री व्यापार पर कोई प्रभाव पड़ेगा, उन्होंने कहा है कि कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
दूसरे रास्तो के जरिए भेजा जा रहा है माल
लाल सागर में हूतियों के हमले का असर कुछ हद तक भारत की इकोनॉमी पर देखने को मिल रहा था. हूतियों के रवैये को देखने के बाद में इस समय शिपिंग कंपनियां लाल सागर से होकर जाने से भी घबरा रही है. इसके अलावा इस समय वह सभी दूसरे रूट के जरिए अपने माल को भेज रहे हैं, जिसका असर शिपिंग कॉस्ट पर भी देखने को मिल रहा है.
क्यों जरूरी है लाल सागर वाला रूट?
भारत के लिए ही नहीं बल्कि ग्लोबल मार्केट के लिए भी यह रूट काफी जरूरी है. लाल सागर का रूट आगे जाकर के स्वेज नहर में मिलता है. इस रूट के जरिए ही यूरोप और एशिया को जोड़ने का काम किया जाता है. फिलहाल ग्लोबल मार्केट के लिए यह रूट काफी जरूरी है. अगर लाल सागर का रूट बंद हो जाता है तो शिपिंग कंपनियों को यूरोप-एशिया के बीच व्यापार करने के लिए लंबे रूट का सहारा लेना पड़ेगा, जिससे कॉस्ट में भी इजाफा हो जाएगा. लंबे रूट की वजह से शिपिंग कंपनियों की कॉस्ट भी 30 से 40 फीसदी तक बढ़ सकती है. इसके साथ ही माल आने में भी 10 से 15 दिन का समय लग सकता है.