नई दिल्ली. किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि बिहार के गांधी मैदान से निकला ‘परिवारवाद’ का जिन्न इतना बड़ा हो जाएगा कि वह देश के राजनीतिक परिदृश्य को ही अपने आगोश में ढंक लेगा. परिवार पर बहस की शुरुआत राष्ट्रीय जनता दल के सर्वे-सर्वा लालू प्रसाद यादव ने की, लेकिन उन्हें यह अंदाज़ा नहीं रहा होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके हमले की दिशा को उनकी तरफ ही पलट देंगे. ‘परिवारवाद’ पर हमले झेल रहे लालू ने कहा कि पीएम मोदी का अपना कोई परिवार है ही नहीं. उन्हें परिवार के बारे में भला क्या पता! लालू प्रसाद यहीं भूल कर गए, पीएम मोदी अक्सर ऐसे हमलों में प्रयोग किए जाने वाले हथियारों को लेकर पलटवार करने में माहिर रहे हैं.
पीएम मोदी ने कहा कि लालू यादव के लिए उनका घर ही उनका परिवार है, जबकि उन्होंने पूरे देश को अपना ‘परिवार’ बना लिया. देखते ही देखते बीजेपी के नेताओं और मंत्रियों ने अपने सोशल मीडिया पर खुद को मोदी का परिवार बना लिया. पीएम मोदी जो चाहते थे, वैसा किया, परिवार पर चर्चा करते हुए परिवारवाद को बहस के केंद्र में ले आए. लालू के आरोपों का जवाब देते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने तेलंगाना में पूरे देश को ही अपना ‘परिवार’ बताया. पीएम मोदी को ‘चाय वाला’ बोलना, ‘मौत का सौदागर’ कहना, इन विशेषणों को उन्होंने आभूषण की तरह इस्तेमाल किया और हमले का रुख मोड़ दिया.
भारतीय राजनीति के केंद्र में परिवारवाद:
आज भारत के राजनीतिक शीर्ष पर वाकई कुछ ऐसे लोग बैठे हैं जिनका अपना खुद का कोई ‘लौकिक’ परिवार नहीं है. इसमें मुख्यतया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी की चर्चा होती रही है. इसके विपरीत राज्य की राजनीति में ऐसे राजनीतिक परिवारों की भरमार है, जो दशकों से सत्ता पर पीढ़ी दर पीढ़ी काबिज रहे हैं. प्रधानमंत्री नेहरू-गांधी परिवार पर सीधे-सीधे और प्रछन्न तरीके से हमले करते हैं, इसमें कोई अचरज नहीं हैं.
पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद, इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी परिवारवाद की अवधारणा पर खरे उतरते हैं. लेकिन ऐसे क्षेत्रीय दलों की भी कमी नहीं है, जिनका आधार ही परिवार के इर्द-गिर्द सिमटा रहा है. कोई भी क्षेत्रीय दल परिवारवाद से जुड़े आक्षेपों और टीका टिप्पणियों को सहज भाव से नहीं लेते हैं. आज देश भर में दर्जन भर ऐसी बहुत-सी पार्टियां हैं जो समाजवाद के आवरण के पीछे परिवारवाद का राजनीतिक समीकरण चतुराई से चलाते रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव का नाम परिवारवाद की बहस के मोर्चे पर सबसे शीर्ष पर रहा है. एक समय ऐसा भी था जब एक ही कुल से कम से कम दर्जन भर (दो दर्जन) कुटुंब सत्ता के अलग-अलग पायदानों पर, मंत्री पद से लेकर बोर्ड और कॉर्पोरेशन के विभिन्न पदों पर काबिज रहा. बिहार में लालू प्रसाद यादव छात्र आंदोलन की उपज रहे, समाजवादी आंदोलन की उनकी पृष्टभूमि रही लेकिन परिवारवाद के अंतहीन दौर में उन्होने राज्य को धकेलने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
जब लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में फंसे, उन्होने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री के पद के लिए सबसे योग्य पाया. लालू के सुपुत्र तेजस्वी यादव ही पार्टी की अगुवाई कर रहे हैं, वो दो बार प्रदेश के उप मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. तेजस्वी के बड़े भाई तेजप्रताप भी बिहार में मंत्री पद को सुशोभित कर चुके हैं. लालू की बड़ी बेटी मीसा यादव वर्षों से संसद में पार्टी का प्रतिनिधित्व करती रही हैं. लालू यादव के उलट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी छात्र आंदोलन से जुड़े रहे, लेकिन उन्होंने अपने परिवार और रिश्तेदारों को राजनीति से दूर रखा.
परिवारवाद पर पीएम मोदी के साथ खड़े हैं नीतीश:
नीतीश कुमार का परिवारवाद पर स्टैंड साफ हैं, “कुछ लोगों के लिए पति-पत्नी और बेटा-बेटी ही परिवार हैं, लेकिन मेरे लिए तो पूरा बिहार ही परिवार है.” पीएम मोदी के बाद नीतीश के इन बयानों के राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं.
भारतीय वाङ्ग्मय में परिवार का दायरा व्यापक:
भारत में परिवार की परिभाषा इतनी व्यापक है कि वह पूरी धरती को हो अपना कुटुंब बना लेता है. इस अवधारणा की चर्चा सदियों पहले भारतीय वांगमय और उपनिषदों में हुई है. पश्चिमी संस्कृति के विपरीत भारतीय दर्शन व्यवस्था सर्व समावेशी है.
अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैवकुटुम्बकम्॥
इसका अर्थ है, “यह मेरा अपना है और यह नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त (सञ्कुचित मन) वाले लोग करते हैं. उदार हृदय वाले लोगों के लिए तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है.”
और अंत में…
भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में परिवारवाद और वंशवाद किसी शूल की तरह चुभते हैं. सामान्य कार्यकर्ताओं के लिए तो वंशवाद बहुत धीमे जहर की तरह है, ऐसे लोग साल दर साल दरी और जाजिम बिछाते रह जाते हैं लेकिन जब टिकट देने की बारी आती है, नेता पुत्र या नेता जी के सुपौत्र बाज़ी मार ले जाते हैं. टिकट वितरण से लेकर मंत्री पद पर कब्जा करने तक की बात हो तो बीजेपी ने अन्य दलों के मुक़ाबले एक नई इबारत लिखनी शुरू की है, जिससे भारतीय राजनीति को और अधिक सर्व समावेशी बनाने में मदद मिलेगी, लेकिन कोई भी पार्टी इससे पूर्णतया मुक्त है, ऐसा भी नहीं है.
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FIRST PUBLISHED : March 5, 2024, 19:14 IST