उत्तर प्रदेश सरकार की कैबिनेट ने अमिताभ कांत कमेटी की घर ख़रीदारों के लिए बनाई रिपोर्ट की सिफ़ारिशों को मंज़ूरी दे दी है. हालांकि अभी साफ़ नहीं है कि क्या पूरी रिपोर्ट को मान लिया गया है या फिर कुछ हिस्सों पर ही सहमति दी गई है. यह उन घर ख़रीदारों के लिए बड़ी राहत की बात होगी, जिन्हें 2013 में घर मिलना था, लेकिन 2023 तक घर नहीं मिला. इसमें वे भी शामिल हैं, जिन्होंने घर तो ले लिया, लेकिन आज तक उनके घरों की रजिस्ट्री नहीं हुई. वे घर ख़रीदार भी शामिल हैं, जिनके पैसे लेकर बिल्डर भाग गया. अब उत्तर प्रदेश कैबिनेट के फ़ैसले से कितने लोगों को राहत मिली है, इसके लिए थोड़ा इंतज़ार करना पड़ेगा, लेकिन जो कहानी सामने आई है, वह बता रहा हूं.
नमस्कार, मेरा नाम मिहिर गौतम है और मैं बता रहा हूं, लाखों लोगों से हुई ठगी की कहानी. वह कहानी, जिसे पढ़कर आप समझेंगे कि किस तरह संगठित तरीके से आम लोगों को लूटा गया… इस कहानी को समझने के लिए पूरी रिपोर्ट को ज़रूर पढ़िए.
देश की राष्ट्रीय राजधानी से बिल्कुल सटा इलाका गौतमबुद्ध नगर, जिसे हम आप नोएडा और ग्रेटर नोएडा के नाम से ज़्यादा जानते हैं. ये दोनों शहर गौतमबुद्ध नगर ज़िले का ही हिस्सा हैं. दिल्ली की जनसंख्या बढ़ी, तो बड़ी संख्या में लोग नोएडा, ग्रेटर नोएडा की तरफ़ बढ़ने लगे. इनमें ज़्यादातर मिडिल क्लास के लोग हैं. गुरुग्राम में करोड़ों के फ़्लैट की तुलना में नोएडा, ग्रेटर नोएडा में फ़्लैट लाखों में मिलते हैं. यही वजह है कि मिडिल क्लास ने सपना देखा कि उसका अपना फ़्लैट इन दोनों शहरों में हो सकता है. कई ऊंची इमारतें बनीं और नए इलाके बसने की योजनाएं आने लगीं. यहां विकास की ज़िम्मेदारी नोएडा-ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के पास है. वही जो ज़मीन बिल्डरों को देते हैं, उसी पर बाकी लोग घर ले सकते हैं. ग्रेटर नोएडा में एक शहर बसाने की कवायद शुरू हुई. शुरुआती नाम नोएडा एक्सटेंशन, जो बाद में जाकर ग्रेटर नोएडा वेस्ट बना.
ग्रेटर नोएडा वेस्ट की कहानी लाखों सपनों के टूटने की कहानी ही है. अपनी पाई-पाई जोड़कर घर लेने वालों को यहां बिल्डर और सिस्टम ने बुरी तरह ठगा. बात 2010 की है, जब यहां अफोर्डेबल हाउसिंग के नाम पर लाखों फ़्लैट चंद दिनों में ही बिक गए. 15 लाख, 20 लाख, 25 लाख में फ़्लैट देने का दावा बिल्डरों ने किया. उन बिल्डरों ने, जिन्हें अथॉरिटी ने ही ज़मीन दी थी. साफ़ है कि किसी भी तरह के शक की गुंजाइश ही नहीं थी. मैप पास था, ज़मीन सही थी, इसलिए लोगों ने अपने घर का सपना देखकर यहां बसने का फ़ैसला किया. दावा किया गया कि 2013 तक मकान दे दिए जाएंगे. सबको लगा कि लोन लेकर अगर आज घर ले लिए, तो अगले तीन साल में किरायेदार से मकान मालिक बन जाएंगे. फिर जो किराये का पैसा होगा, उससे क़र्ज़ का ब्याज चुका देंगे. अपनी तमाम जमापूंजी कई लोगों ने लगा दी, इस आस में कि बस तीन साल और, फिर समस्याएं ख़त्म होंगी.
लेकिन उनकी समस्याएं तो बढ़नी शुरू हुई थीं. पेमेंट प्लान के हिसाब से बिल्डर ने 2013 तक 90 से 95 फीसदी पैसा घर ख़रीदारों से ले लिया, लेकिन ज़्यादातर बिल्डरों ने धोखा दे दिया. मिडिल क्लास क्या करता, वह सड़क से अथॉरिटी तक संघर्ष करता रहा. कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई. वह मजबूरी में घरों का किराया भी दे रहा है और उस घर के बदले बैंक के क़र्ज़ की EMI भी, जो घर आज तक उसे मिला ही नहीं. जिन्हें उम्मीद थी कि 2013 में राहत मिलेगी, वह दरअसल उनके लिए आफ़त बन गई.
2012 में उत्तर प्रदेश में एक नई सरकार आई. अखिलेश यादव उस सरकार के मुखिया बने. घर ख़रीदार गुहार लगाते रहे, लेकिन कहीं से कोई राहत नहीं मिली. बिल्डर एक के बाद एक फ़रार हो रहे थे या दिवालिया, और पीड़ित घर ख़रीदार खून के आंसू रो रहे थे. जब अपने पूछते कि आपके घर का क्या हुआ, तो उनके पास कोई जवाब नहीं होता. कई सीनियर सिटिज़न को उनके लिए स्पेशल प्रोजेक्ट बनाने के नाम पर लूट लिया गया. उनमें बहुत से लोग अब इस दुनिया में नहीं हैं. कई लोग इस सदमे को झेल भी नहीं पाए, वजह थी कि उन्होंने अपने रिटायरमेंट के पैसे से घर का सपना देख लिया था. सपना भी टूटा और सारा पैसा भी बिल्डरों ने लूट लिया.
आखिरकार घर ख़रीदारों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. वहां से थोड़ी राहत मिली और आम्रपाली जैसे प्रोजेक्ट में फंसे घर ख़रीदारों को घर मिलने शुरू हुए. आम्रपाली ग्रुप का मालिक अनिल शर्मा सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई की वजह से जेल में है. प्रोजेक्ट के घरों को NBCC बना रहा है. इसी दौरान कुछ बिल्डरों ने घरों को देना शुरू किया. घर ख़रीदारों से अतिरिक्त पैसे तक वसूले गए. मजबूरी में कई लोगों ने पैसे दे भी दिए. लेकिन परेशानी कहां ख़त्म होनी थी. घर तो मिल गया. पता चला कि बिल्डर ने अथॉरिटी का बकाया नहीं चुकाया है. आप सोचिए, घर ख़रीदारों से पूरा पैसा लेकर अथॉरिटी का पैसा कई बिल्डरों ने नहीं दिया. अथॉरिटी पैसा लेने के लिए दबाव बनाना चाहती थी. उसे भी सबसे आसान टारगेट घर ख़रीदार ही लगे. अथॉरिटी ने उन प्रोजेक्ट में घरों की रजिस्ट्री रोक दी, जिन प्रोजेक्ट के बिल्डरों पर बकाया था. घर ख़रीदार पूछते रहे कि अथॉरिटी अपना बकाया बिल्डर से नहीं ले पाई, इसमें घर ख़रीदारों का क्या कसूर है. हमारी रजिस्ट्री क्यों रोकी गई. अथॉरिटी गोलमोल जवाब देती रही. न बिल्डरों से वसूली कर सकी और न उन प्रोजेक्टों में घरों की रजिस्ट्री शुरू हो पाई.
इस दौरान एक बात जो हुई, वह यह कि लोग एकजुट होने लगे. हर जगह विरोध प्रदर्शन करने लगे और अपनी बात रखने लगे. सोशल मीडिया पर कैंपेन शुरू हो गया. 53 हफ़्ते से ग्रेटर नोएडा वेस्ट की एकमूर्ति पर घर ख़रीदार हर रविवार को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हैं.
नेफ़ोवा संस्था से जुड़े दीपांकर कुमार बताते हैं कि ऐसा लगता है कि घर न लिया हो, युद्ध के मैदान में चले गए हों. दीपांकर कुमार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट से सड़क तक आज तक संघर्ष कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट की वजह से आम्रपाली के घर ख़रीदारों को घर मिलना शुरू हुआ, लेकिन कई प्रोजेक्ट के घर ख़रीदार आज भी इंतज़ार कर रहे हैं. वहीं महेश यादव का कहना है कि बिल्डरों पर अथॉरिटी कोई कार्रवाई नहीं करती, आम लोगों को परेशान करने के लिए रजिस्ट्री रोक दी गई है. घर ख़रीदार पुरुषोत्तम का कहना है कि बिल्डरों के लिए सबस आसान काम है कि खुद को दिवालिया घोषित करवा दो और फिर घर ख़रीदारों को भटकने के लिए छोड़ दो.
2017 के बाद हालात थोड़े बदले हैं. घर ख़रीदारों के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई दौर की बैठकें की है. उन्होंने समस्याओं को सुना है और अधिकारियों को निर्देश भी दिए. 2020 में एक कमेटी बनाई गई, जी-20 शेरपा अमिताभ कांत के नेतृत्व में. कमेटी तमाम रुके प्रोजेक्ट को कैसे फिर से शुरू किया जाए और घर ख़रीदारों की समस्या कैसे हल हो, इसका रास्ता सुझाने के लिए बनाई गई. कमेटी ने अधिकारियों, बैंकों, बिल्डरों के साथ ही घर ख़रीदारों के साथ कई दौर की बैठकें कीं. इसके बाद कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी. इस रिपोर्ट में रास्ते बताए गए, जिससे लाखों लोगों को उनके घर का मालिकाना हक़, यानी रजिस्ट्री मिले, इसके साथ ही रुके प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए बिल्डरों को भी कुछ राहत के साथ मौका दिया जाए. अमिताभ कांत कमेटी ने माना कि घर ख़रीदारों की रजिस्ट्री को बिल्डरों के बकाये की वजह से न रोका जाए. उसे लेने के लिए अलग रास्ते अपनाए जाएं.
उत्तर प्रदेश सरकार की कैबिनेट ने अमिताभ कांत कमेटी की सिफ़ारिशों को मंज़ूरी की बात कही है. कैबिनेट की मीटिंग के बाद जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई है, उसमें लिखा है कि लीगेसी स्टॉल्ड रीयल एस्टेट प्रोजेक्ट्स की समस्याओं के निदान के लिए श्री अमिताभ कांत (पूर्व CEO, नीति आयोग) भारत सरकार की अध्यक्षता में गठित समिति दिनांक 31-3-2023 द्वारा की गई संस्तृतियों को क्रियान्वित किया जाना है. इसमें यह भी जानकारी दी गई है कि NCR में बिल्डरों की ख़राब वित्तीय स्थिति की वजह से 2.40 लाख घर बन नहीं पा रहे हैं. उम्मीद करनी चाहिए कि जल्द से जल्द इस दिशा में काम हो और लाखों लोगों को इंसाफ़ मिले.
नोट : लेखक खुद एक घर ख़रीदार हैं…
मिहिर गौतम NDTV इंडिया में न्यूज़ एडिटर हैं…
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.