विकाश कुमार/चित्रकूट: वनीय क्षेत्र होने के कारण चित्रकूट में लकड़ी प्रचुर मात्रा में पायी जाती है. बहुत बड़ी संख्या में इस जनपद के कारीगर लकड़ी के खिलौने बनाने में संलिप्त हैं. इस जनपद में निर्मित लकड़ी के खिलौने प्रदेश के अन्य भागों में मेले और प्रदर्शनियों में विक्रय हेतु भेजे जाते हैं. जनपद की काष्ठकला का देश भर में अपना अलग स्थान है. पारंपरिक शैली को आधुनिकता के रंग में सजाकर यहां के शिल्पकारों ने इस कला को नए आयाम दिये हैं. फर्नीचर से लेकर दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुओं का लकड़ी से निर्माण यहां किया जाता है. लेकिन आज तस्वीर बिल्कुल इसके उलट है.
चित्रकूट की पहचान को खिलौने बनाने वाले अपनी अदभुत कला सेपहचाना जाता था. यहां की कलादेश और विदेश में बिखेरते थे. लेकिन दुर्भाग्य देखिए इन लकड़ी के खिलौने बनाने वाले कारीगरों पर विकास की मार और चाइनीज खिलौनों की भरमार ने इनको आज भुखमरी की कगार पर ला दिया है. आपको बता दें कि चित्रकूट कभी लकड़ी के खिलौने के नाम से भी जाना जाता था. इस जनपद में लगभग डेढ़ सौ परिवार लकड़ी के खिलौने बनाता था. यहां के लकड़ी के खिलौने देश-विदेश में अपनी धूम मचा रखी थी. इन खिलौनों को बनाने वाले कारीगरों को स्टेट और नेशनल ही नहीं बल्कि इंटरनेशनल लेवल परकई पुरस्कार मिल चुके हैं.
धर्मनगरी से हस्तशिल्प उद्योग हो रहा विलुप्त
आज यह हस्तशिल्प उद्योग विलुप्त हो चुका है. केवल एक ही दो परिवार इस उद्योग को जिंदा किए हुए हैं. कारीगर बलराम सिंहकी माने तो पहले वह लकड़ी के 50 प्रोडक्ट बनाते थे. लेकिन अब चुनिंदा प्रोडक्ट ही बनाते हैं, क्योंकि वन विभाग की तरफ से अब उनको लकड़ी मिलने में भी दिक्कत आ रही है. बाजार में उन प्रोडक्टों का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है. चाइनीज सामानों के आगे यह प्रोडक्ट महंगी साबित हो रहे है.
कारीगरों ने सरकार से की मांग
उनकी सरकार से मांग है अगर सरकार उन्हें संसाधन और प्रशिक्षण उपलब्ध करा दे तो एक बार फिर चित्रकूट का लकड़ी हस्तशिल्प उद्योग देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में धूम मचा देगा. साथ ही सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिल जाएगा. फिलहाल उत्तर प्रदेश सरकार ने इस हस्तशिल्प उद्योग को वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के तहत इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए शामिल किया है. अब देखना यह होगा कि आखिर कब तक यह उद्योग अपने पुराने विख्यात रूप में आता है.
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FIRST PUBLISHED : September 24, 2023, 15:23 IST