विकाश पाण्डेय/सतना. ऋषियों की तपोभूमि और भगवान राम के वनवास स्थल चित्रकूट में होने वाले दीपोत्सव पर्व का अलग ही महत्त्व है. इस पर्व के महत्त्व को यहां से समझा जा सकता है कि आसपास ही नहीं बल्कि देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां दीप दान करने आते हैं. मान्यता है कि भगवान राम लंका विजय के पश्चात चित्रकूट पहुंचे. भगवान राम के आगमन की खबर सुन सम्पूर्ण चित्रकूट वाशी सहित ऋषि मुनियों ने उनके स्वागत में दीप मालाएं जलाई. भगवान राम और माता सीता चित्रकूट पहुंच कर माता मंदाकिनी के तट पर पूजन कर दीप दान किया और लोगों का उत्साहवर्धन किया तभी से यहां के दीप दान की प्रथा निरंतर चली आ रही है.
पण्डित रमाशंकर जी ने बताया कि धर्म और अधर्म की लड़ाई में भगवान राम की विजय के पश्चात जब श्री राम अयोध्या लौट रहे थे. तब उनका पहला पड़ाव चित्रकूट धाम था. यही मां मंदाकिनी के तट पर भगवान राम और माता सीता ने गंगा और विंध्याचल पर्वत को दिए वचन को पूर्ण किया और मंदाकनी के तट पर पूजन कर दीप दान किया. विंध्याचल पर्वत के पुत्र कामदगिरि को बड़ाई देने उनका दर्शन किया इसीलिए दिवाली में श्रद्धालु चित्रकूट आकर मंदाकनी में स्नान कर पहला दीप दान कर कामदगिरि के दर्शन और परिक्रमा के लिए जाते हैं.
दिवाली में लगता है पांच दिन का मेला
चित्रकूट में दीवाली का मेला 5 दिन का होता है, जो धनतेरस से शुरू होता है और भाई दूज तक चलता है. इस बीच चित्रकूट में 20 से 25 लाख श्रद्धालु दीप दान करने आते हैं. लोगों की मान्यता है कि भगवान राम आज भी मंदाकिनी के तट पर दीप दान करते हैं.
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FIRST PUBLISHED : November 9, 2023, 14:37 IST