रेवंत रेड्डी: पहले ABVP, फिर BRS, दिलचस्‍प है तेलंगाना का CM बनने तक की यात्रा

हैदराबाद. कांग्रेस की तेलंगाना इकाई के दृढ़-निश्चयी अध्यक्ष अनुमूला रेवंत रेड्डी राज्य के नए मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालेंगे, तो यह जमीनी स्तर के एक नेता की जीवटता और चुनावी लड़ाई को अपनी पार्टी के पक्ष में अंजाम तक पहुंचाने का एक उत्कृष्ट उदाहरण होगा. रेड्डी को शक्तिशाली बीआरएस, जिसका तेलंगाना की राजनीति पर दबदबा था, और महत्वाकांक्षी भाजपा, जो विकल्प के रूप में उभरने के लिए कड़ी मेहनत कर रही थी, दोनों को चुनौती देकर तेलंगाना में कांग्रेस को सत्ता में लाने का श्रेय दिया जा रहा है.

रेवंत रेड्डी ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की थी. तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रेड्डी (56) भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) के मुखर आलोचक रहे हैं. वह प्राय: बीआरएस और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के राजनीतिक हमलों का शिकार रहे हैं. बीआरएस नेता उन पर पार्टी बदलने को लेकर निशाना साधते रहे हैं. 2015 के ‘नोट के बदले वोट’ मामले में उन्हें गिरफ्तार किया गया था और उस समय उन्हें तेलुगू देशम पार्टी के अध्यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू का ‘एजेंट’ बताया गया था.

ABVP से शुरू किया राजनीतिक करियर
एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध छात्र संगठन एबीवीपी की उनकी पृष्ठभूमि को लेकर उन पर निशाना साधते रहे हैं. रेड्डी पहले कुछ समय के लिए बीआरएस (तब तेलंगाना राष्ट्र समिति) में रह चुके हैं. वह 2006 में जिला परिषद चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीते थे. वह 2007 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अविभाजित आंध्र प्रदेश में विधान परिषद में निर्वाचित हुए. रेड्डी तेलुगू देशम पार्टी (TDP) में शामिल हो गए थे और पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के करीबी थे. उन्होंने 2009 में टीडीपी के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीता था और 2014 में तेलंगाना के अलग राज्य बनने पर भी उन्होंने चुनाव में जीत दर्ज की थी.

2018-18 में कांग्रेस से जुड़े
वह 2015 में विधान परिषद चुनाव में एक विधायक को टीडीपी के पक्ष में मतदान करने के लिए रिश्वत देने की कोशिश करते हुए कथित रूप से कैमरे में कैद हो गए थे. रेड्डी को हैदराबाद की एक जेल में भेज दिया गया था और बाद में उन्हें जमानत मिल गई. वह 2018 के विधानसभा चुनाव में बीआरएस उम्मीदवार से हार गए थे. उन्होंने टीडीपी छोड़कर 2017-18 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की उपस्थिति में दिल्ली में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी.

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रेड्डी के पार्टी अध्‍यक्ष बनने पर क्‍या हुआ?
रेड्डी 2019 के लोकसभा चुनाव में तेलंगाना की मल्काजगिरि संसदीय सीट से कांग्रेस सांसद के रूप में निर्वाचित हुए. उन्हें 2021 में कांग्रेस में ‘जूनियर’ नेता होने के बावजूद प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई. इससे प्रदेश कांग्रेस इकाई में अनेक वरिष्ठ नेता असंतुष्ट दिखे. रेड्डी के सामने चुनौतीपूर्ण हालात के बीच कांग्रेस का भविष्य संवारने का कठिन कार्य था और वह पार्टी नेताओं को एकजुट करने में लग गए. तेलंगाना में 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के 12 विधायकों का 2019 में बीआरएस में शामिल हो जाना भी रेड्डी के लिए असहज करने वाला घटनाक्रम था.

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मुश्किल वक्‍त पर पार्टी के लिए किया काम
तेलंगाना में बंडी संजय कुमार को भाजपा की कमान मिलने के बाद 2020 और 2021 में दो विधानसभा उपचुनावों और ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में भगवा दल को बड़ी सफलता मिली और कांग्रेस को एक बार फिर झटका लगा. हालांकि रेड्डी कड़ी चुनौतियों के बावजूद कांग्रेस को सफलता दिलाने की मशक्कत करते रहे और इस साल मई में कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस को थोड़ी ऊर्जा मिली. इसके बाद तेलंगाना की जनता में कांग्रेस को लेकर धारणाएं बदलने के साथ पार्टी का ग्राफ बढ़ता दिखाई दिया. मुख्यमंत्री केसीआर की बेटी के. कविता पर दिल्ली आबकारी नीति मामले में लगे आरोपों ने भी कांग्रेस को बल प्रदान किया.

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