रेंट पर ले रहे हैं घर, कितना ब्रोकरेज चार्ज देना है सही? ब्रोकर फीस के क्‍या हैं नियम, एक्‍सपर्ट से जानें

Kirayanam-2: ‘दिल्‍ली के द्वारका में अपने घर में रहने वाली पूजा ने ब्रोकर के जरिए नोएडा की एक हाईराइज सोसायटी में रहने के लिए टू बीएचके फ्लैट ढूंढा. जिसका किराया 20 हजार रुपये महीना था. उन्‍होंने यहां शिफ्ट करते समय 20 हजार रुपये एडवांस रेंट और 20 हजार रुपये सिक्‍योरिटी के रूप में कुल 40 हजार रुपये मकान मालिक को दिए. जबकि एक महीने का किराया यानि 20 हजार रुपये पूजा को ब्रोकर को देने पड़े. यह ब्रोकर की पहले से फिक्‍स फीस थी’….. ‘दूसरा मामला नोएडा अथॉरिटी की एलआइजी-एमआइजी फ्लैट की सोसायटी का है, जहां उसी सोसायटी में दो घर छोड़कर घर बदलने के लिए रीमा ने ब्रोकर को 15 दिन का किराया दिया. ऐसा इसलिए करना पड़ा क्‍योंकि 4 महीने तक ढूंढने के बाद भी अपनी सोसायटी में उन्‍हें घर नहीं मिल पा रहा था. आखिरकार ब्रोकरेज देने के बाद ही बात बनी.’

ये हाल सिर्फ नोएडा का नहीं है, बल्कि पूरे दिल्‍ली-एनसीआर का है. आपने अगर यहां रेंट पर घर लिया होगा तो ब्रोकरेज चार्ज पक्‍का दिया होगा. आजकल हर रिहायशी या कमर्शियल क्षेत्र में आपको प्रॉपर्टी डीलर लिखी हुई ब्रोकरों और प्रॉपर्टी दलालों की दुकानें आराम से दिखाई दे जाएंगी या आपको किसी सार्वजनिक जगह, दुकान या घरों के बाहर कॉन्‍टेक्‍ट नंबर का पर्चा टंगा हुआ दिखाई देगा और उस नंबर को मिलाएंगे तो मकान मालिक नहीं ब्रोकर आपसे बात करेंगे. वे भले ही आपसे बस रेंट की बात करेंगे लेकिन आपके दिमाग में साफ होना चाहिए कि जितना एक महीने का रेंट होगा उसका 100 फीसदी या कहीं कहीं 50 फीसदी आपको उन्‍हें देना ही होगा. दिल्‍ली, नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद जैसे शहरों में ब्रोकर या दलालों का ऐसा जाल है कि आप चाहकर भी ब्रोकरों को किनारे रखकर घर किराए पर नहीं ले सकते.

हालांकि ब्रोकरेज शुल्‍क को लेकर एक चीज साफ है कि कहीं पूरे एक महीने का रेंट तो कहीं 15 दिन का रेंट ये दलाल ब्रोकरेज के रूप में वसूलते हैं. आपकी मजबूरी है कि आपको इन्‍हीं के माध्‍यम से घर मिलेगा लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्‍या ब्रोकरेज को लेकर देश में कोई नियम है? कहीं पूरे महीने का तो कहीं आधे महीने, आखिर ब्रोकर को कितनी फीस देनी चाहिए? क्‍या इस ब्रोकरेज फीस को लेकर शिकायत की जा सकती है? आइए एक्‍सपर्ट से जानते हैं..

ब्रोकरेज को लेकर क्‍या है नियम?
आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस ब्रोकरेज शुल्‍क से लाखों किराएदार परेशान हैं, हजारों प्रॉपर्टी डीलर पैसा कमा रहे हैं, उस ब्रोकरेज की राशि को लेकर कोई नियम नहीं हैं.

क्‍या कहता है कानून?
कंज्‍यूमर कोर्ट की रिटायर्ड जज प्रेमलता कहती हैं कि भारत में कई तरह के लॉ हैं, एक कॉन्‍ट्रैक्‍ट लॉ भी है, जिसमें किराएदार, मकान-मालिक आदि के बीच में होने वाले समझौते आदि के नियम दर्ज हैं लेकिन ब्रोकरों और ब्रोकरेज को लेकर कोई नियम-कानून नहीं है. ये ब्रोकरों की लॉबी पर निर्भर करता है कि वे क्‍या ब्रोकरेज फीस मार्केट में फिक्‍स कर देते हैं और वह चलती रहती है.

क्‍या कहती है आरडब्‍ल्‍यूए फेडरेशन
फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोएिशन के पूर्व अध्‍यक्ष एन पी सिंह कहते हैं कि आरडब्‍ल्‍यूए और अपार्टमेंट ऑनर्स एसोसिएशंस ही अपार्टमेंट या सोसायटीज को मेनटेन रखती हैं लेकिन ब्रोकरों को लेकर इनके पास भी कोई अधिकार नहीं होता. कोई भी व्‍यक्ति रजिस्‍ट्रेशन कराके प्रॉपर्टी डीलर या ब्रोकर बन सकता है. अगर कोई ब्रोकर ब्रोकरेज फी के रूप में 1 महीने का किराया लेता है या 15 दिन का लेता है, यह उसके और उससे डील कर रहे ग्राहक के ऊपर निर्भर है. न ही ये आरडब्‍ल्‍यूए या एओए के अंतर्गत आते हैं, ऐसे में इनके खिलाफ ब्रोकरेज फीस को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती और न ही इस फीस को बंद किया जा सकता है.

क्‍या कहते हैं एडवोकेट..
दिल्‍ली हाईकोर्ट में सिविल मामलों के एडवोकेट निशांत राय कहते हैं कि भारत में ब्रोकर्स एक्‍ट तो है लेकिन रेंटल प्रॉपर्टी पर ये कितना ब्रोकरेज चार्ज ले सकते हैं, ये बात कहीं पर भी नहीं लिखी हुई. यही वजह है कि अलग-अलग जगहों पर रेंटल प्रॉपर्टीज में अलग-अलग मात्रा में ब्रोकरेज शुल्‍क देना पड़ता है. कहीं ये किराएदार से ही 15 दिन का लेते हैं, कहीं महीने भर का तो कहीं किराएदार और मकान मालिक दोनों से आधे आधे महीने का ब्रोकरेज शुल्‍क लेते हैं. हालांकि एक और बड़ी बात है कि इस प्रैक्टिस पर लगाम के लिए कहीं कोई नियम न होने के चलते इन पर कोई एक्‍शन भी नहीं होता.

क्‍या कहते हैं ब्रोकर?
ब्रोकरेज को लेकर नोएडा में पिछले 15 साल से रजिस्‍टर्ड ब्रोकर एके वाजपेयी बताते हैं कि ब्रोकरेज शुल्‍क को लेकर कोई लिमिट फिक्‍स नहीं है. यह नेगोशिएबल है और बातचीत के आधार पर कम या ज्‍यादा हो जाता है. हालांकि ऐसा सिर्फ 1 महीने की किराया राशि में होता है. मिनिमम 15 दिन का रेंट चार्ज तो ब्रोकरेज के रूप में लिया ही जाता है, लेकिन चूंकि ब्रोकर प्रॉपर्टी मालिक और किराएदार को आपस में मिलवाता है और पूरी जिम्‍मेदारी के साथ सौदा कराता है तो उसकी यह फीस जायज है.

वे कहते हैं कि प्रॉपर्टी बिल्‍डर या ब्रोकर भी रजिस्‍टर्ड होते हैं. रजिस्‍ट्रेशन कराने के बाद ये ब्रोकरेज शुल्‍क वसूल सकते हैं. रेरा के आने के बाद से प्राइवेट बिल्‍डरों के फ्रॉड को देखते हुए ब्रोकर्स को रजिस्‍ट्रेशन कराने के लिए कहा भी गया है. हालांकि बहुत सारे दलाल या प्रॉपर्टी डीलर बिना रजिस्‍ट्रेशन के काम कर रहे हैं.

(किरायानाम सीरीज की अगली स्‍टोरी में पढ़‍िए- 11 महीने का होता है रेंट एग्रीमेंट, क्‍या उससे पहले भी निकाल सकता है मकान मालिक?)

Tags: Delhi news, Greater Noida Latest News, Rent

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