रिवाज या टॉर्चर? गर्म लोहे की सीक से दागे जाते हैं बच्चे, सालों से चली आ रही है ये आदिवासी परंपरा

प्रभंजन कुमार/जमशेदपुर: भारत में अलग-अलग धर्म के लोग रहते हैं. हर धर्म के अपने नियम होते हैं. यहां एक त्यौहार को कई नामों से मनाया जाता है. भारत में अभी मकर संक्रांति मनाई गई. इसे कई जगह पोंगल के नाम से, कई जगह लोहड़ी के नाम से भी मनाया जाता है. हर धर्म का त्यौहार मनाने का तरीका अलग रहता है. झारखंड के जमशेदपुर में रहने वाले एक आदिवासी समुदाय में मकर संक्रांति के अगले लिए अखंड जतरा मनाया जाता है.

अखंड जतरा मनाने की इन आदिवासियों की परंपरा काफी पुरानी है. इसे मनाने के लिए समाज के बच्चों को ऐसी तकलीफ दी जाती है, जो शायद ही कोई दूसरा मां-बाप चाहेगा. लेकिन इस समाज में महिलाएं खुद अपने बच्चों को ये दर्द सहने के लिए लेकर जाती हैं. मकर संक्रांति के अगले दिन यहां के बच्चों की नाभि के पास लोहे की गर्म सींक से चार बार दागा जाता है. इसके पीछे ख़ास मान्यता है.

रिवाज या टॉर्चर?
अखंड जतरा में इस समाज के लोग अपने बच्चों के पेट पर लोहे की गर्म सलाखें दागते हैं. बच्चों की नाभि के पास चार बार इससे निशान बनाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि ये रिवाज बच्चों को आने वाले संकट और बीमारियों से दूर रखता है. इतना ही नहीं, कई बड़े भी इस रिवाज को करते हैं. जिन लोगों की हड्डियों में दर्द रहता है, वो भी अपनी नाभि के पास गर्म सरिये से दाग लगवाते हैं.

चीखते हैं बच्चे
रिवाज के मुताबिक़, मकर संक्रांति के अगले दिन माएं अपने बच्चों को लेकर गांव के पुजारी के घर जाती हैं. यहां वैध अपने आँगन में जलती आग में ही लोहे के सरिये को गर्म करते हैं. उसके बाद इसे बच्चे के पेट में सटाया जाता है. पेट में दागने से पहले वैध उसपर तेल लगाता है. फिर सरिया गर्म कर उसे पेट पर दागता है. इस दौरान बच्चा काफी तेज चीखता भी है. रिवाज को लेजर ग्रामीणों का कहना है कि ये काफी पुरानी परंपरा है और इसे दादा-परदादा के समय से फॉलो किया जा रहा है.

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