रिटायर्ड शिक्षक ने पथरीली जमीन को बनाया उपजाऊ, सोना उगल रहे खेत, इतनी कमाई

दीपक कुमार/ बांका: इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है. इस प्रणाली के जरिए किसान फसल उगाने के साथ कृषि से जुड़े अन्य कर रहे हैं. इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग किसानों के लिए कम लागत में अधिक कमाई करने का जरिया बना गया है. बांका जिले में एक ऐसे ही प्रगतिशील किसान है, जो शिक्षक पद से रिटायर्ड होने के बाद रिटायमेंट का सारा पैसा खेती में हीं लगा दिया. जिंदगी भर की गाढ़ी कमाई से पथरीली जमीन को ना सिर्फ उपजाऊ बनाया बल्कि बुढ़ापे का सहारा और कमाई का जरिया भी बना लिया. उनकी ये मेहनत रंग लाने लगा है और पथरीली जमीन हरियाली में तब्दील हो गया है.

कमाई भी अब अच्छी-खासी हो रही है. जी हां, हम बात कर रहे हैं बांका जिले के चांदन प्रखंड अंतर्गत केरवा गांव निवासी रिटायर्ड दिव्यांग शिक्षक विजय कुमार सिंह की, जो समेकित कृषि प्रणाली के जरिए अपनी खेती कर रहे हैं और सालाना 8 लाख तक का मुनाफा कमा रहे हैं.

रिटायरमेंट के बाद शुरू की पथरीली जमीन में खेती करना
रिटायर्ड दिव्यांग शिक्षक विजय सिंह ने बताया कि उनके पास 250 एकड़ जमीन है. जिसमें अधिकांश पथरीली और बंजर भूमि है. शिक्षक के पद से रिटायर होने होने के बाद सारा फोकस खेती पर ही लगा दिया. लगभग 100 एकड़ जमीन को उपजाऊ बनाने में कामयाब हो गए हैं. जिंदगी भर की गाढ़ी कमाई को लगाकर पथरीली जमीन को उपजाऊ बनाया. इसमें बागवानी से लेकर फसलों की खेती और मछली व गोपालन भी कर रहे हैं.

उन्होंने बताया कि फसल को जंगली जानवर से बचाने के लिए चार लाख लगाकर कटीली तार का घेरा लगाया है. धान, गेहूं सहित अन्य रबी फसलों के साथ सब्जी की भी खेती अलावा बागवानी की बात की जाए तो 2 हजार सागवान, 1500 सखुआ, 50 से अधिक आम 15 से अधिक नीबूं का पौधा लगाए हैं. बागवानी लगाने के काम लगातार चल रहा है. उन्होंने बताया कि पथरीली भूमि पर सब्जी की खेती कर रहे हैं. जिसमें आलू, गोभी, मिर्च, बैगन, गोभी, गाजर, टमाटर सहित अन्य सब्जी शामिल है.

मछली पालन के लिए खुदवाया है चार तालाब
किसान विजय सिंह ने बताया कि बागवानी और जैविक सीजनल सब्जी की खेती के अलावा मछली पालन भी कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि चार तालाब खुदवाया है, जिसमें एक नर्सरी तालाब भी है. इसमें छोटी मछलियों को रखा जाता है. वहीं बड़े तालाब में फिंगर साइज मछलियों को डालकर पाला जाता है. आधा केजी से लेकर डेढ़ केजी तक होने के बाद तालाब से निकालकर स्थानीय बाजार में बिक्री कर देते हैं. उन्होंने बताया कि आहार में घास-फूस ही खाकर मछलियां बढ़ती है. जो मछलियां 6 महीने में तैयार हो जाती हैं. यहां तैयार होने में सालभर का वक्त लगता है. जैविक तरीके से पालन के कारण हीं अधिक वक्त लगाता है.

सालाना आठ लाख तक की हो जाती है कमाई
विजय सिंह ने बताया कि तीन तालाब में रोहू, कातल, मिरगन, रूपचंद सहित अन्य वैरायटी के पछली का पालन भी कर रहे हैं. ये मछलियां 150 रुपए से लेकर 200 रुपए किलो तक बिकती है. उन्होंने बताया कि इसके अलावा गोपालन भी कर रहे हैं. 10 गाय है, जिसमें साहिवाल और देसी नस्ल है. रोजाना 40 लीटर दूध का उत्पादन होता है, जो 50 रूपए लीटर में बिक जाता है. यहां 8 से 10 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं. जिनको 8 हजार प्रतिमाह मजदूरी के तौर पर देते हैं. सब खर्च काटकर सालाना 7 से 8 लाख की कमाई हो जाती है.

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