परमजीत कुमार/देवघर:- देशभर के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक बाबा बैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग शामिल है. इस ज्योतिर्लिंग का सबसे खास महत्व यह है कि यह ज्योतिर्लिंग होने के साथ-साथ शक्तिपीठ भी है. 51 शक्तिपीठ में से बाबा बैजनाथ धाम एक शक्तिपीठ के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यहां माता सती का हृदय गिरा था. इसके कारण बैद्यनाथ धाम को हृदय पीठ भी कहा जाता है. यहां कई ऐसी अनोखी परंपरा है, जो किसी भी ज्योतिर्लिंग में आपको देखने को नहीं मिलेगी. फिर चाहे वह भगवान शिव और माता पार्वती के मंदिर के दोनों शिखर में गठबंधन की परंपरा हो, थापा परंपरा हो या फिर पंचशूल की परंपरा हो.
वहीं सभी ज्योतिर्लिंग में त्रिशूल विराजमान है, लेकिन देवघर के बाबा बैजनाथ धाम मंदिर के शिखर पर पंचशूल विराजमान है और साल में एक बार इस पंचशूल की पूजा भी की जाती है. लोकल 18 से बात करते हुए बैद्यनाथ मंदिर के तीर्थ पुरोहित ने पंचशूल के महत्व पूजा के बारे में बताया.
क्या कहते हैं देवघर के तीर्थ पुरोहित
तीर्थ पुरोहित प्रमोद श्रृंगारी ने लोकल 18 के संवाददाता से बातचीत करते हुए कहा कि शास्त्र में ऐसा उल्लेख है कि बाबा बैद्यनाथ धाम पूर्वोत्तर के क्षेत्र में विराजमान हैं और यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जहां बाबा बैद्यनाथ के साथ मां भगवती भी विराजमान हैं. इस मंदिर परिसर में बैद्यनाथ मंदिर के साथ कुल 22 मंदिर हैं, जिसके शिखर पर पंचशूल विराजमान है. यह पंचशूल महाशिवरात्रि के कुछ दिन पहले यानी एकादशी के दिन से उतारा जाता है और इस पंचशूल की विधिवत पूजा आराधना कर महाशिवरात्रि के दिन फिर से सभी मंदिरों में लगाया जाता है. जिस दिन पंचशूल को उतारा जाता है, इसे स्पर्श करने के लिए हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ती है. कहा जाता है कि इस पंचशूल के स्पर्श मात्र से ही व्यक्ति के सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं.
पंचशूल का ये है महत्व
भगवान शिव का सबसे प्रिय अस्त्र त्रिशूल माना जाता है. लेकिन देवघर के बैद्यनाथ धाम में पंचशूल भगवान शिव का अस्त्र है, जिसकी पूजा महाशिवरात्रि के दिन की जाती है. आमतौर पर त्रिशूल की पूजा करने से मानव जीवन के तीन कष्ट हैं रोग, दुख और भय समाप्त होते हैं. लेकिन देवघर में पंचशूल के दर्शन मात्र से ही मानव जीवन के पांच कष्ट रोग, दुख, भय, काल और दरिद्र सब समाप्त हो जाते हैं.
रावण से जुडी पंचशूल की कहानी
तीर्थ पुरोहित पंचशूल के पीछे की कथा बताते हुए कहते हैं कि लंकापति रावण ने अपने गुरु शुक्राचार्य से पंचवक्त्रम निर्माण की विद्या सीखी थी. इसी कारण रावण ने लंका के चारों ओर पंचशूल लगाया था. पंचशूल लगाने से रावण की शक्ति बढ़ गई. रावण ने उसी पंचशूल को बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष पर भी लगाया था, ताकि मंदिर को कोई क्षति न पहुंचे. बाद में अगस्त मुनि ने श्रीराम को पंचशूल ध्वस्त करने की विधि बताई थी.
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FIRST PUBLISHED : February 29, 2024, 20:56 IST
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.