रावण
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अलीगढ़ के चंडौस कस्बे में 84 वर्ष से लगातार रावण दहन के 12 दिन बाद रामलीला मंच पर ही रावण का त्रियोदशी संस्कार एवं ब्रह्मभोज का कार्यक्रम किया जा रहा है। 5 नवंबर को 84वीं बार इसका आयोजन किया गया। जिसमें 13 ब्राह्मणों को भोज करा कर दान देकर विदा किया गया। रावण की आत्मा के लिए शांति प्रार्थना की गई। यहां का ये कार्यक्रम आसपास के इलाके में चर्चा का विषय है।
चंडौस कस्बे में वर्ष 1939 पंडित गवेंद्र प्रसाद शास्त्री, सौप्रसाद गुप्ता व लाला देवीलाल ने रामलीला का आयोजन शुरू कराया था। रामलीला आयोजन कमेटी ने शुरुआत से ही रावण दहन के 12 दिन बाद उसका त्रयोदशी संस्कार करना शुरू कर दिया था। कमेटी द्वारा प्रति वर्ष रामलीला मंच पर ही लंकाधिपति की आत्मा की शांति के लिए वैदिक परंपरा के अनुसार पूरा त्रयोदशी संस्कार होता है।
जिसमें पूजन करने के बाद हवन होता है। इसके बाद तेरह ब्राह्मणों को भोज कराया जाता है। उनको दक्षिणा देकर पांव छूकर को ससम्मान विदा किया जाता है। यह परंपरा चंडौस की रामलीला कमेटी 84 वर्षों से निभा रही है। कई बार रामलीला आयोजन कमेटी बदल जाती है, लेकिन परंपरा नहीं बदलती है। हर वर्ष रामलीला के बाद इसका आयोजन होता है।
मैंने आठ वर्ष तक रावण का किरदार निभाया है। जब से रामलीला शुरू हुई है, तभी से ही रावण का त्रयोदशी संस्कार हो रहा है। कई बार मैं खुद भी इस भोज में शामिल रहा हूं। -ऋषि शर्मा, भाजपा सभासद एवं रावण का किरदार निभाने वाले कलाकार।
बीते 84 वर्ष से रामलीला हो रही है। हमारे पूर्वज दशहरा के 12 दिन बाद रावण का त्रियोदशी संस्कार एवं ब्रह्मभोज करते थे। उसी परंपरा को निभाते हुए रविवार को रावण का त्रियोदशी संस्कार किया गया है। -सुनील शर्मा, अध्यक्ष रामलीला आयोजन कमेटी चंडौस।
दशकों से कस्बे में दशहरा के 12 दिन बाद रावण का त्रियोदशी संस्कार एवं ब्रह्मभोज होता आ रहा है। रामलीला कमेटी इसका आयोजन करती है। उसी परंपरा के तहत इस बार रविवार को इसका आयोजन हुआ। -विनोद गुप्ता, प्रबंधक रामलीला आयोजन कमेटी चंडौस।